भारत को स्विस बैंक खातों की पहली लिस्ट मिली, अगला ब्यौरा सितंबर, 2020 में

स्विट्जरलैंड द्वारा साझा की गई सूचना में पहचान, खाता और वित्तीय जानकारी शामिल है. इनमें निवासी के देश, नाम, पते और कर पहचान नंबर के साथ वित्तीय संस्थान, खाते में शेष और पूंजीगत आय का ब्यौरा दिया गया है.

The logo of the Swiss National Bank (SNB) is seen at the entrance of the SNB in Bern December 18, 2014. REUTERS/Ruben Sprich

स्विट्जरलैंड द्वारा साझा की गई सूचना में पहचान, खाता और वित्तीय जानकारी शामिल है. इनमें निवासी के देश, नाम, पते और कर पहचान नंबर के साथ वित्तीय संस्थान, खाते में शेष और पूंजीगत आय का ब्यौरा दिया गया है.

The logo of the Swiss National Bank (SNB) is seen at the entrance of the SNB in Bern December 18, 2014.  REUTERS/Ruben Sprich
स्विस नेशनल बैंक का लोगों. (फाइल फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: भारत को सूचनाओं के स्वत: आदान-प्रदान (एईओआई यानी कि ऑटोमैटिक एक्सचेंज ऑफ इन्फॉर्मेशन) की नई नियमित व्यवस्था के तहत स्विट्जरलैंड के बैंकों में भारतीय नागरिकों के खातों के पहले ब्यौरे उपलब्ध करा दिए गए हैं.

दोनों देशों के बीच सूचनाओं के स्वत: या स्वचालित आदान प्रदान की इस व्यवस्था से भारत को विदेशों में अपने नागरिकों द्वारा जमा कराए गए कालेधन के खिलाफ लड़ाई में काफी मदद मिलने की उम्मीद है.

स्विट्जरलैंड के संघीय कर प्रशासन (एफटीए) ने 75 देशों को एईओआई के वैश्विक मानदंडों के तहत वित्तीय खातों के ब्योरे का आदान-प्रदान किया है. भारत भी इनमें शामिल है.

एफटीए के प्रवक्ता ने कहा कि भारत को पहली बार एईओआई ढांचे के तहत खातों के बारे में जानकारी प्रदान की गई है.

इसमें उन खातों की सूचना दी जाएगी जो अभी सक्रिय हैं. इसके अलावा उन खातों का ब्यौरा भी उपलब्ध कराया जाएगा जो 2018 में बंद किए जा चुके हैं.
प्रवक्ता ने कहा कि इस व्यवस्था के तहत अगली सूचना सितंबर, 2020 में साझा की जाएगी.

हालांकि, सूचनाओं के इस आदान प्रदान की कड़े गोपनीयता प्रावधान के तहत निगरानी की जाएगी. एफटीए के अधिकारियों ने भारतीयों के खातों की संख्या या उनके खातों से जुड़ी वित्तीय संपत्तियों का ब्यौरा साझा करने से इनकार किया.

कुल मिलाकर एफटीए ने भागीदार देशों को 31 लाख वित्तीय खातों की सूचना साझा की है. वहीं स्विट्जरलैंड को करीब 24 लाख खातों की जानकारी प्राप्त हुई है.

साझा की गई सूचना के तहत पहचान, खाता और वित्तीय सूचना शामिल है. इनमें निवासी के देश, नाम, पते और कर पहचान नंबर के साथ वित्तीय संस्थान, खाते में शेष और पूंजीगत आय का ब्यौरा दिया गया है.

स्विट्जरलैंड सरकार ने अलग से बयान में कहा कि इस साल एईओआई के तहत 75 देशों के साथ सूचना का आदान-प्रदान किया गया है. इनमें से 63 देशों के साथ यह परस्पर आदान-प्रदान है.

करीब 12 देश ऐसे हैं जिनसे स्विट्जरलैंड को सूचना तो प्राप्त हुई है लेकिन उसने उनको कोई सूचना नहीं भेजी है क्योंकि ये देश गोपनीयता और डेटा सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय अनिवार्यताओं को पूरा नहीं कर पाए हैं.

इन देशों में बेलीज, बुल्गारिया, कोस्टा रिका, कुरासाओ, मोंटेसेराट, रोमानिया, सेंट विन्सेंट, ग्रेनेडाइंस और साइप्रस शामिल हैं.

इसके अलावा बरमूडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, केमैन आइलैंड, तुर्क्स एंड कैकोज आइलैंड आदि देशों ने सूचना नहीं मांगी है, इसलिए उन्हें खातों का ब्यौरा साझा नहीं किया गया है.

एफटीए ने बैंकों, न्यासों और बीमा कंपनियों सहित करीब 7,500 संस्थानों से ये आंकड़े जुटाए हैं. पिछले साल की तरह इस बार भी सबसे अधिक सूचनाओं का आदान-प्रदान जर्मनी को किया गया है. बयान में कहा गया है कि एफटीए वित्तीय संपत्तियों के बारे में कोई सूचना नहीं देता है.

भारत के नागरिकों के बारे मे साझा की गई सूचनाओं के बाबत एफटीए प्रवक्ता ने कहा कि सांख्यिकी आंकड़े भी गोपनीयता के प्रावधान के तहत आते हैं.

एफटीए ने कहा कि अगले साल इस व्यवस्था के तहत 90 देशों के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान किया जाएगा. स्विट्जरलैंड में एईओआई को कानूनी आधार पर पहली बार एक जनवरी, 2017 को लागू किया गया थाा.

आदान-प्रदान के जरिए हासिल सूचनाओं के जरिए कर अधिकारी इस बात का पता लगा सकते हैं कि क्या करदाता ने अपने कर रिटर्न में विदेशों में अपने वित्तीय खाते का सही ब्यौरा दिया है.

इस व्यवस्था के तहत पहली बार सूचना का आदान-प्रदान सितंबर, 2018 में 36 देशों के साथ किया गया था. आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन का वैश्विक मंच एईआईओ के क्रियान्वयन की समीक्षा करता है.

विशेषज्ञों का कहना है कि इन सूचनाओं के आधार पर भारत बेहिसाब धन रखने वाले लोगों के खिलाफ केस का ठोस मामला बना सकता है.

कई अधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस सूची में ज्यादातर उद्योगपतियों के नाम हैं. इनमें प्रवासी भारतीय (एनआरआई) भी शामिल हैं जो दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ कुछ अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देशों में बस चुके हैं.