आरएसएस से जुड़े संगठन ने नीति आयोग को किसान और मज़दूर विरोधी बताया

भारतीय मज़दूर संघ के अनुसार, नीति आयोग कमज़ोर तबके का नहीं ब​ल्कि मज़बूत कॉरपोरेट लॉबी का समर्थन कर रहा है.

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भारतीय मज़दूर संघ के अनुसार, नीति आयोग कमज़ोर तबके का नहीं बल्कि मज़बूत कॉरपोरेट लॉबी का समर्थन कर रहा है.

NIti Aayog Reuters
(फोटो: रॉयटर्स)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठन भारतीय मज़दूर संघ ने नीति आयोग को किसान और मज़दूर विरोधी बताते हुए इसके पुनर्गठन की मांग की है. भारतीय मज़दूर संघ का 18वां तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में संपन्न हुआ.

22 से 24 मई तक हुए इस कार्यक्रम में मज़दूर संघ ने एक प्रस्ताव पारित करते कहा कि नीति आयोग देश के कमज़ोर तबके के प्रति समर्पित होने के बजाए मज़बूत कॉरपोरेट लॉबी का समर्थन करता नज़र आ रहा है.

दैनिक जागरण की रिपोर्ट के मुताबिक मज़दूर संघ का कहना है, ‘नीति आयोग से देश का विकास नहीं हो सकता है. यह राष्ट्र के लिए हितकारी नहीं है. इसलिए राष्ट्र के विकास के मॉडल को आगे रखते हुए इसका पुनर्गठन किया जाना चाहिए.’

मज़दूर संघ के पूर्व अध्यक्ष सीके संजीनरायन द्वारा पेश की गई और क्षेत्र संगठन मंत्री पवन कुमार द्वारा समर्थित प्रस्ताव में आशंका ज़ाहिर की गई है कि आयोग एफडीआई और मल्टीनेशनल कंपनियों को बढ़ावा देगा और यहां के उद्योगों को बंद करा देगा.

रिपोर्ट के अनुसार, अधिवेशन में भारतीय मज़दूर संघ के 44 औद्योगिक महासंघ और 26 प्रादेशिक इकाइयों से संबंधित 5300 यूनियनों के तकरीबन पांच हज़ार प्रतिनिधि शामिल हुए.

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार मज़दूर संघ ने कहा, ‘नीति आयोग एक खर्चीली संस्था है, जिसमें बुद्धिजीवी असंतुलित हैं. ये लोग सरकार ही नहीं, पूरे देश को दिग्भ्रमित कर रहे हैं.’

मजदूर संघ के मुताबिक, ‘सरकार को ऐसे लोग सलाह दे रहे हैं, जो आम आदमी और असली भारत से पूरी तरह से कटे हुए हैं. नीति आयोग देश में भ्रमित और दिशाहीन सुधारों को लागू कराने वाली संस्था है. इन सुधारों में देश के आम आदमी को पूरी तरह से नकारा गया है.’

मजदूर संघ ने कहा, ‘सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए कि इस तरह के दोषयुक्त संस्थान को थिंकटैंक के नाम पर बने रहना चाहिए या नहीं.’

संगठन ने कहा कि नीति आयोग की ओर से कर्मचारियों के प्रॉविडेंट फंड में जमा की जाने वाली राशि में कटौती का प्रस्ताव गरीब मज़दूरों की सामाजिक सुरक्षा को चोट पहुंचाने वाला है.

दैनिक जागरण की रिपोर्ट में बताया गया है कि तीन दिवसीय अधिवेशन में शामिल हुए भारतीय मज़दूर संघ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के. लक्ष्मा रेड्डी ने कहा, ‘श्रम कानून में जो सुधार किए जाएं वे अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए लेकिन सरकार कॉरपोरेट घरानों के दबाव में आकर श्रम कानूनों में बदलाव कर रही है जो कि उचित नहीं है.’

उन्होंने कहा, ‘किसानों को उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा है और किसान आत्महत्या कर रहे हैं. इससे सरकार की छवि ख़राब हो रही है. फिर भी नीति आयोग किसानों को सब्सिडी देना बंद करना चाहती है. वह किसानों के हित में कोई सुझाव भी नहीं देता है.’

उन्होंने आगे कहा कि मेक इन इंडिया के नाम पर खुदरा कारोबार में भी विदेशी पूंजी लगाने की कोशिश हो रही है, जो कि ग़लत है.

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