जामिया मिलिया इस्लामिया में छात्र-छात्राएं धरने पर क्यों बैठे हैं?

नई दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के कुछ छात्र-छात्राएं पिछले 10 दिन से धरने पर बैठे हैं. विश्वविद्यालय में हुए एक कार्यक्रम के विरोध में ये प्रदर्शन हो रहा है. छात्रों का आरोप है कि कार्यक्रम में इज़राइल को कंट्री पार्टनर बनाया गया था, जबकि प्रशासन का कहना है कि इसमें इज़राइल का सिर्फ़ एक व्यक्ति शामिल हुआ था.

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जामिया में धरना प्रदर्शन के दौरान जुटे छात्र-छात्राएं. (फोटो: धीरज मिश्रा)

नई दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के कुछ छात्र-छात्राएं पिछले 10 दिन से धरने पर बैठे हैं. विश्वविद्यालय में हुए एक कार्यक्रम के विरोध में ये प्रदर्शन हो रहा है. छात्रों का आरोप है कि कार्यक्रम में इज़राइल को कंट्री पार्टनर बनाया गया था, जबकि प्रशासन का कहना है कि इसमें इज़राइल का सिर्फ़ एक व्यक्ति शामिल हुआ था.

जामिया में धरना प्रदर्शन के दौरान जुटे छात्र-छात्राएं. (फोटो: धीरज मिश्रा)
जामिया में धरना प्रदर्शन के दौरान जुटे छात्र-छात्राएं. (फोटो: धीरज मिश्रा)

नई दिल्ली: देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में से एक नई दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया में एक कार्यक्रम को लेकर पिछले कई दिनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे छात्र-छात्राओं को पीटने और उनके खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी करने का मामला सामना आया है.

जामिया के ये छात्र-छात्राएं बीते 14 अक्टूबर से ही विश्वविद्यालय के आर्किटेक्चर विभाग द्वारा कराए गए ‘ग्लोबल हेल्थ ज़ेनिथ: कॉन्फ्लूएंस 19’ कार्यक्रम को लेकर धरने पर बैठे थे.

छात्र-छात्राओं का दावा है कि इस कार्यक्रम में इजराइल कंट्री पार्टनर था. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि कार्यक्रम में इजराइल कंट्री पार्टनर नहीं था बल्कि उसमें इजराइल के एक वक्ता शामिल थे.

धरने पर बैठने वाले पांच छात्रों के खिलाफ विश्वविद्यालय प्रशासन ने अनुशासन तोड़ने के आरोप में कारण बताओ नोटिस जारी किया था.

हालांकि बुधवार को प्रशासन ने छात्रों को जारी किया गया कारण बताओ नोटिस वापस ले लिया है. प्रशासन की ओर से कहा गया है कि इनके खिलाफ अब कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी.

विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस बात का भी आश्वासन दिया कि अब किसी भी कार्यक्रम में इजराइल के व्यक्ति के शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी.

मालूम हो कि जामिया हमेशा से ही फिलिस्तीन का समर्थन करता आया है और वहां के लोगों के अधिकारों का पक्षधर रहा है.

ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) की ओर से कहा गया कि छात्र-छात्राएं कैंपस में इजराइल को आमंत्रण देने के विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे, क्योंकि उनका मानना है कि इजराइल ने फिलिस्तीन में बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन का विरोध कर रहा है.

आइसा की ओर से कहा गया कि जिस दिन ‘ग्लोबल हेल्थ ज़ेनिथ: कॉन्फ्लूएंस 19’ कार्यक्रम हुआ उसी दिन छात्र-छात्राओं ने फिलिस्तीन के लोगों के समर्थन में अंसारी ऑडिटोरियम के बाहर प्रदर्शन शुरू किया था.

बहरहाल इसके बाद बीते 22 अक्टूबर को इस विरोध प्रदर्शन ने तब हिंसक रूप ले लिया जब छात्रों ने नोटिस वापस लेने की मांग करते हुए कुलपति कार्यालय का घेराव किया.

इस दौरान दो छात्र को गंभीर चोट आईं. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है. वहीं कुछ अन्य छात्र घायल हैं. छात्रों का आरोप है कि प्रशासन ने उन पर बाहर से गुंडों को बुलाकर हमला करवाया और विरोध प्रदर्शन जल्द खत्म करने की धमकी दी.

बीए समाजशास्त्र की छात्रा अख़्तरिस्ता ने बताया, ‘चूंकि हमारे विरोध प्रदर्शन को करीब 10 दिन हो गए थे और प्रशासन ने हमसे बात नहीं की थी, इसलिए हमने वीसी ऑफिस तक मार्च निकाला था. वीसी ने हमसे बात करने के बजाय अपने गुंडों से हमें पिटवाया है. वैसे तो वीसी नजमा अख़्तर फेमिनिज़्म की बात करती हैं, लेकिन कल बाहर के लोगों को बुलाकर यहां पर लड़कियों को बेल्ट और चेन से पिटवाया गया.’

वहीं एक अन्य छात्र एलएलबी थर्ड ईअर के सैफुल ने कहा, ‘हम सिर्फ इतनी मांग कर रहे थे कि पांच बच्चों के खिलाफ गैरकानूनी तरीके से जो कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है उसे वापस लिया जाए. जब प्रशासन ने हमारी बात नहीं मानी तो हम वीसी ऑफिस तक आ गए. इसकी वजह से इन्होंने ने हम लोगों को बर्बर तरीके से पिटवाया. मेरा एक साथी शाह आलम आईसीयू में भर्ती है.’

22 अक्टूबर को हुई घटना के संबंध में कई तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किए गए हैं जिसमें अस्पताल में भर्ती हुए छात्र और परिसर में की गई तोड़-फोड़ को देखा जा सकता है.

हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र-छात्राओं के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि ये लड़ाई दो विभागों के बीच हुई थी और इसमें उनका कोई हाथ नहीं है.

जामिया के पीआरओ अहमद अज़ीम ने द वायर से बातचीत में कहा, ‘छात्रों ने गमलों और पत्थरों से वीसी ऑफिस का पूरा रास्ता बंद कर दिया था ताकि वहां से कोई निकल न पाए. इसी परिसर में अंग्रेजी विभाग की एक अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस चल रही थी. इस कार्यक्रम के खत्म होने के बाद जब कुछ लोगों ने निकलने के लिए गमला हटाने की कोशिश की तो इन छात्रों के साथ कहा-सुनी हुई, जो बाद में मारपीट में तब्दील हो गई.’

अज़ीम ने प्रदर्शनकारियों को एजेंडा प्रभावित बताते हुए कहा कि विरोध प्रदर्शन कराने वाले छात्र-छात्राएं जिन लोगों की फोटो जामिया प्रशासन का गुंडा बताते हुए सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं, वे सभी जामिया के बोनाफाइड छात्र हैं. हम बिना प्रक्रिया का पालन किए उन पर कैसे कार्रवाई कर सकते हैं.

उन्होंने कहा, ‘इन प्रदर्शनकारियों को सिर्फ छात्र नहीं कहा जा सकता है, इनमें से काफी लोग मोटिवेटेड हैं. इन लोगों ने पूरे मामले को इमोशनल मामला बना दिया है, इसलिए इतने छात्र-छात्राएं इकट्ठा हो गए हैं.’

इजराइल कनेक्शन को लेकर हुए विवाद पर उन्होंने कहा कि उस कार्यक्रम में इजराइल कंट्री पार्टनर नहीं था, बल्कि इजराइल के एक व्यक्ति उसमें वक्ता थे, इसका मतलब ये नहीं है कि उनके साथ हमारा कोई सहयोग था.

विश्वविद्यालय ने कहा कि वे छात्र-छात्राओं से बात करेंगे और संभावित हल निकालने की कोशिश करेंगे.

छात्र-छात्राओं का कहना है कि सिर्फ यही एकमात्र मामला नहीं है, बल्कि आए दिन जामिया में विरोध प्रदर्शन करने की वजह से छात्र-छात्राओं के खिलाफ कार्रवाई की जाती है, उनके घरों पर फोन किया जाता है और कारण बताओ नोटिस थमा दिया जाता है.

एमए सोशल वर्क के छात्र गफ़्फ़ार ने कहा, ‘जामिया में छात्र-छात्राओं के पोलिटिसाइज न होने की बड़ी वजह ये है कि यहां पर शिक्षक से लेकर प्रशासन तक छात्र-छात्राओं को इस हद तक डरा कर रखता है कि कोई सवाल न कर सके. किसी चीज का विरोध करने पर तुरंत घर पर फोन कर दिया जाता है, लेटर भेज दिया जाता है. यह सही नहीं है.’

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