अर्णब को फटकारते हुए कोर्ट ने कहा- भाषणबाजी कम कीजिए, तथ्य दिखाइए

शशि थरूर मानहानि मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अर्णब गोस्वामी और उनके समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी से जवाब मांगा.

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अर्णब गोस्वामी (फोटोः पीटीआई)

शशि थरूर मानहानि मामले की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने अर्णब गोस्वामी और उनके समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी से जवाब मांगा.

Arnab Goswami
अर्णब गोस्वामी

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अर्णब गोस्वामी और हाल ही में शुरू हुए समाचार चैनल रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ़ कांग्रेस सांसद शशि थरूर की मानहानि याचिका पर सोमवार को जवाब तलब किया.

शशि थरूर ने इस याचिका में पत्रकार और उनके चैनल द्वारा कथित रूप से उनके बारे में की गई मानहानि वाली टिप्पणियों के एवज़ में उनसे दो करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति और मुआवज़े की मांग की है. ये टिप्पणियां थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत से संबंधित ख़बर चलाते वक़्त की गई थी.

न्यायमूर्ति मनमोहन ने अर्णब और चैनल को नोटिस जारी कर सुनवाई की अगली तारीख़ 16 अगस्त तक उनसे जवाब मांगे हैं. उन्होंने कहा, शब्दाडंबर बंद कीजिए. आप अपनी स्टोरी दिखा सकते हैं, तथ्य दिखा सकते हैं लेकिन उनका अपमान नहीं कर सकते. यह ग़ैरज़रूरी है.

न्यायमूर्ति ने कहा कि पत्रकार और उनका समाचार चैनल यह कहते हुए खबरें दिखा सकता है कि ये तथ्य पुष्कर की मौत की जांच से संबंधित हैं, लेकिन तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सदस्य को अपराधी नहीं कह सकता.

अदालत ने यह भी कहा कि सिर्फ इसलिए कि थरूर उनके शो में नहीं आ रहे हैं या साक्षात्कार नहीं दे रहे हैं, यह इस बात को कहने का आधार नहीं हो सकता कि वह भाग रहे हैं, जैसा समाचार चैनल ने कहा. अदालत ने थरूर की ओर से जवाब नहीं आने के संबंध में कहा कि किसी व्यक्ति को मौन रहने का अधिकार है और कोई नहीं समझा है कि कैसे हमारा क़ानून काम करता है.

अदालत ने थरूर की याचिका पर गोस्वामी और उनके चैनल को नोटिस जारी करते हुए यह टिप्पणियां कीं. थरूर ने उनकी पत्नी की मौत से संबंधित ख़बर का प्रसारण करते वक़्त उनके ख़िलाफ़ कथित तौर पर की गई मानहानिकारक टिप्पणियों के लिए दो करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति की मांग की है.

अदालत ने कोई भी अंतरिम आदेश नहीं दिया जिसके तहत चैनल को समाचार के प्रसारण से रोका जा सके, लेकिन कहा, ‘चाहे जो भी उकसावा हो, आप (गोस्वामी) उन्हें नेता का मुखौटा धारण किए हुए अपराधी नहीं कह सकते हैं. यह ग़ैरज़रूरी और अनुमान पर आधारित है.’

अर्णब और चैनल की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने कहा कि वे अपने द्वारा दिए गए हर एक बयान को तर्कसंगत साबित करेंगे इसलिए रोक लगाने संबंधी अंतरिम आदेश की कोई ज़रूरत नहीं है.

थरूर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने कहा कि उनका बचाव किया जाना चाहिए और चैनल व पत्रकार को यह निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे उनके (थरूर) ख़िलाफ़ दिए गए बयानों के पीछे तर्क बताएं.

दलील के दौरान खुर्शीद ने कहा कि गत छह मई से जब चैनल शुरू हुआ, तब से ही यह चैनल सुनंदा की मौत से संबंधित ख़बरों का प्रसारण रोजाना तीन से पांच घंटे कर रहा है और सांसद के ख़िलाफ़ मानहानिकारक बयान दे रहा है.

वकील ने कहा कि चैनल और पत्रकार ने थरूर को दोषी बताया है और कहा गया कि उन्हें गिरफ्तार किया जाना चाहिए.

अदालत ने कहा कि एक पत्रकार को जांच करने का अधिकार है, उस पर रोक नहीं लगाई जा सकती, लेकिन इसे संयमित और संतुलित किया जाना चाहिए. इस पर थरूर के वकील ने कहा कि इस मामले में संतुलन से विचलन हुआ है क्योंकि रिपोर्टिंग एकतरफा थी.

चैनल ने दूसरी तरफ कहा कि उसने सिर्फ जांच से संबंधित तथ्यों को प्रसारित किया है.

थरूर के वक़ीलों मुहम्मद अली ख़ान और गौरव गुप्ता द्वारा दायर की गई याचिका में दावा किया गया है कि रिपब्लिक टीवी पर सुनंदा पुष्कर की मौत के मामल में प्रसारित की रिकॉर्डिंगों को जानबूझकर दर्शकों को ख़ुश करने और बिना बात के एक विवाद खड़ा करने के उद्देश्य से सनसनीखेज़ तरीके से दिखाया गया, जिससे उनके (थरूर के) सार्वजनिक जीवन और छवि को क्षति पहुंचाई जा सके.

याचिका में लिखा है, ‘ये कहना ग़लत नहीं है कि प्रतिवादी (अर्नब गोस्वामी और टीवी चैनल) द्वारा प्रसारित न्यूज़ रिपोर्ट और कथित खुलासे का उद्देश्य दर्शकों को ये यकीन दिलाना था कि मरने वाले की हत्या या तो वादी (थरूर) द्वारा या उसके इशारे पर की गई. इस तरह के प्रसारण से हत्या के इस मामले में चल रही जांच को ग़लत तरह से प्रभावित करने की क्षमता है.

बीते 26 मई को थरूर ने अर्णब गोस्वामी और रिपब्लिक टीवी के ख़िलाफ़ दिल्ली उच्च न्यायालय में दीवानी मानहानि मुकदमा दायर कर दो करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति और मुआवज़े की मांग की थी.

थरूर ने उच्च न्यायालय से यह मांग भी की थी कि जब तक दिल्ली पुलिस की जांच पूरी नहीं हो जाती तक टीवी चैनल द्वारा उनकी पत्नी की मौत से संबंधित किसी भी कार्यक्रम के प्रसारण पर रोक लगाई जाए.

यह मामला आठ मई से 13 मई के बीच टीवी चैनल द्वारा सुनंदा पुष्कर की मौत से संबंधित समाचार के प्रसारण का था.

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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