आए दिन देशभक्ति को नए सिरे से परिभाषित क्यों किया जा रहा है?

सरकार के हर फ़ैसले और बयान को देशभक्ति का पैमाना मत बनाइए. सरकारें आएंगी, जाएंगी. देश का इक़बाल खिचड़ी जैसे फ़ैसलों का मोहताज नहीं.

‘वंदे मातरम’ गाने को देशभक्ति की कसौटी बताने वाले भाजपाई ख़ुद क्यों नहीं गा पाते?

अब भाजपा को अपने नेताओं के लिए 'वंदे मातरम' और 'जन गण मन' की कक्षाएं चलवानी चाहिए. जब देखो ये नेता लोग 'देशभक्ति' के टेस्ट में फेल होते रहते हैं.

‘न खाऊंगा, न खाने दूंगा’ के अश्वमेध में भ्रष्टाचारी सुखराम की आहुति

लोहा लोहे को काटता है ये तो सुना ही था. अब हिमाचल प्रदेश में भ्रष्टाचार के लिए बदनाम वीरभद्र सिंह को निपटाने के लिए महाभ्रष्ट सुखराम और उनके सुपुत्र भाजपा का साथ देंगे.

मृणाल पांडे के बचाव में ‘गधा विमर्श’ क्यों?

वैशाखनंदन शब्द की उत्पति पर दर्जनों पोस्ट लिखकर ‘गधा विमर्श’ का ऐसा माहौल बना दिया गया है गोया जो वैशाखनंदन न समझ पाए वो भी उन्हीं के उत्तराधिकारी हैं.