पश्चिम बंगाल: क्या राज्य में लंबा चुनावी कार्यक्रम भाजपा को भारी पड़ सकता है

पश्चिम बंगाल में आठ चरणों के मतदान कार्यक्रम को भाजपा की रणनीति का हिस्सा बताया जा रहा है, हालांकि ममता बनर्जी भी अप्रत्याशित रूप में लंबे इस मतदान कार्यक्रम का लाभ अपने उम्मीदवारों के लिए डटकर प्रचार के साथ ही हरेक दौर के लिए सापेक्ष रणनीति बनाने के लिए उठा सकती हैं.

क्या विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी का ब्रह्मास्त्र साबित होगा नंदीग्राम

टीएमसी नेताओं के लगातार पार्टी छोड़ने के बीच ममता बनर्जी अपने प्रतिद्वंदियों से बुरी तरह घिरी नज़र आ रही हैं. भाजपा के आक्रामक हमलों के बीच ममता ने टीएमसी के गढ़ नंदीग्राम से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. क्या यह दांव उनके राजनीतिक विरोधियों को पस्त कर पाएगा?

प्रधानमंत्री मोदी के परिवारवाद विरोधी अभियान में भाजपा नेता क्यों शामिल नहीं हैं

विवेकानंद जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजनीति में परिवारवाद पर निशाना साधते हुए इसे ख़त्म करने के लिए युवाओं को राजनीति में आने को कहा. हालांकि ऐसा कहते हुए उन्होंने भाई-भतीजावाद की भाजपाई परंपरा को आसानी से बिसरा दिया.

भाजपा के सामने कमज़ोर पड़े नीतीश कुमार क्या फिर जनता का विश्वास पा सकेंगे?

जदयू को फिसलने से रोकने में नाकाम रहे नीतीश कुमार क्या इस बार अपने अधूरे वादे पूरे कर पाएंगे या फिर इस पारी में वे भाजपा के एजेंडा के आगे घुटने टेकने को मजबूर होंगे?

नीतीश कुमार के बिहार विधानसभा चुनाव को अपना ‘अंतिम चुनाव’ बताने के क्या मायने हैं

नीतीश कुमार ने तीसरे चरण के चुनाव प्रचार के आख़िरी दिन कहा कि यह उनका अंतिम चुनाव है. क्या यह मतदान से पहले सीमांचल के अल्पसंख्यकों समेत उनके पारंपरिक मतदाताओं की सहानुभूति लेने का कोई चुनावी हथकंडा है या इसका कोई गहरा सियासी अर्थ है?

तेजस्वी को ‘जंगलराज का युवराज’ कहने के पीछे मोदी की क्या मंशा है

प्रधानमंत्री के गब्बर शैली के चुनावी डायलॉग्स में तेजस्वी यादव और महागठबंधन के लिए चेतावनी-सी छुपी लगती है. शायद वे अपने जुमलों के ज़रिये यह जता रहे हैं कि जनता उन्हें भले बहुमत देकर सत्ता सौंप दे, मगर मोदी सरकार उन्हें राज नहीं करने देगी.

बिहार चुनाव: क्या नीतीश को बलि का बकरा बनाने के लिए भाजपा ने उन्हें सीएम प्रत्याशी बनाया है?

नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनाने के बीजेपी की घोषणा के तीर का पहला लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कथित अजेय छवि को बरक़रार और हार का ठीकरा उनके सिर फोड़ना है. इसके अलावा चुनाव बाद स्पष्ट बहुमत न मिलने की दशा में नीतीश को किनारे कर एलजेपी के समर्थन और कांग्रेस तथा अन्य गठबंधनों से विधायक तोड़कर बीजेपी के नेतृत्व में अगली सरकार बनाना है.