बिलक़ीस की न्याय की लड़ाई गुजरात की दो अधिकारियों के ज़िक्र के बिना अधूरी है

साल 2002 में बिलक़ीस के साथ हुई ज़्यादती के बाद गुजरात की दो अधिकारियों- गोधरा की तत्कालीन डीएम जयंती रवि और गोधरा सिविल अस्पताल की डॉक्टर रोहिणी कुट्टी ने उस समय के तमाम राजनीतिक-प्रशासनिक दबावों के बीच जिस ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाई, वो वाकई एक मिसाल है. 

किसान आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास भाजपा का आज़माया हुआ तरीका है

कृषि क़ानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे किसानों को ‘खालिस्तानी’ घोषित करना भाजपा के उसी प्रोपगेंडा की अगली कड़ी है, जहां उसकी नीतियों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को ‘देश-विरोधी’, ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ या ‘अर्बन नक्सल’ बता दिया जाता है.

तनिष्क के बहाने बशीर चूड़ीवाले की याद…

जहां टाटा हिंदू बहू और मुस्लिम सास के प्रेम का सामना करने से डर गया, वहीं बशीर चूड़ीवाले अपने शहर की हिंदू बहू-बेटियों के प्रति अपने स्नेह के लिए आज भी आम लोगों की स्मृति में ज़िंदा हैं.

सुशांत-कंगना का सुर्ख़ियों में बने रहना मीडिया की छद्म जनमत निर्माण की बढ़ती ताक़त की बानगी है

मीडिया के पास कुछ हद तक जनमत निर्माण की ताक़त हमेशा से थी, मगर उसकी एक सीमा थी, उनके द्वारा उठाए मुद्दे में कुछ दम होना ज़रूरी होता था. आज हाल यह है कि मीडिया में भारत-चीन सीमा विवाद से ज़्यादा तवज्जो कंगना रनौत विवाद को दी जा रही है.

क्या कोरोना के दौर में बिहार में चुनाव कराना लोगों की ज़िंदगी से खिलवाड़ करना नहीं है

यह सही है कि समय पर चुनाव करवाना चुनाव आयोग की ज़िम्मेदारी है, मगर जिस राज्य में महामारी का आलम ये हो कि मुख्यमंत्री ही तीन महीने बाहर न निकलें, वहां सात करोड़ मतदाताओं के साथ एक माह तक चुनाव प्रक्रिया चलाना बीमारी के जोखिम को और बढ़ा सकता है.

नई शिक्षा नीति बाज़ार के रास्ते के बचे रोड़े हटाने की कवायद भर है

अगर सरकार शिक्षा व्यवस्था में सुधार को लेकर गंभीर है, तो उसे इस पर संसद में बहस चलानी चाहिए. किसी बड़ी नीति में बदलाव के लिए हर तरह के विचारों पर जनता के सामने चर्चा हो. इस तरह देश की विधायिका को उसके अधिकार से वंचित रख शिक्षा नीति बदलना देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा है.

मध्य प्रदेश: सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ आए आदिवासी बोले, सरकार के कागज़ों के मकड़जाल में नहीं फंसेंगे

बीते दिनों मध्य प्रदेश के बैतूल में नागरिकता क़ानून और एनआरसी के विरोध में इकठ्ठा हुए आदिवासियों ने कहा कि जिस जंगल में उनके पुरखों के अंश गड़े है, वे उस जगह पर अपने हक़ का इससे बड़ा और क्या सबूत दे सकते हैं.

क्या भाजपा अंग्रेज़ों की फूट डालो-राज करो की नीति पर चल रही है?

सीएए-एनआरसी के ख़िलाफ़ हो रहे प्रदर्शनों में लंबे समय बाद हिंदू-मुस्लिम एकता वापस नज़र आ रही है, जिससे सत्तारूढ़ भाजपा में बेचैनी देखी जा सकती है. ऐसी ही बैचेनी 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज़ों में दिखी थी, जिससे निपटने के लिए उन्होंने फूट डालो-राज करो की नीति अपनाई थी.

अगर पुलिस राज आ गया तो क्या न्याय मिलेगा?

संविधान निर्माताओं ने व्यवस्था के तीन भाग किए थे- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका, ताकि किसी एक के हाथ में सारी शक्तियां न जाएं. लेकिन आज ऐसी परिस्थितियां बना दी गई हैं कि हम इस व्यवस्था के मरने पर सवाल उठाने की बजाय उस पर खुशी मना रहे हैं.

सीएए और एनआरसी देश के हर नागरिक के एहसास और आज़ादी का अपमान हैं

जिस नागरिकता क़ानून को गांधी जी और भारतीयों ने आज से 113 साल पहले विदेशी धरती पर नहीं माना, उस औपनिवेशिक सोच से निकले सीएए और एनआरसी को हम आज़ाद भारत में कैसे स्वीकार कर सकते हैं?

अयोध्या: आस्था का एक प्रतीक गिराकर उस पर दूसरा प्रतीक खड़ा करना शांति का रास्ता नहीं है

एक धर्म की आस्था की निशानी को जमींदोज़ कर उस पर दूसरे धर्म के आस्था का प्रतीक स्थापित करने से स्थायी शांति आएगी, ऐसा भ्रम पालना हानिकारक साबित होगा.

क्या प्रधानमंत्री मोदी गांधी के विचारों की हत्या कर रहे हैं?

गांधी के विचार उनकी मृत्यु के बाद भी संघ की कट्टरता की विचारधारा के आड़े आते रहे, इसलिए अपने पहले कार्यकाल में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधी के सारे मूल्यों को ताक में रखकर उनके चश्मे को स्वच्छता अभियान का प्रतीक बनाकर उन्हें स्वच्छता तक सीमित करने का अभियान शुरू कर दिया था.

अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों की काट के लिए गुजरात के ‘खाम’ को दोहराना होगा

गुजरात का विकास मॉडल एक भ्रम था. गुजरात दंगों के बाद मुस्लिम को अलग-थलग करने का जो प्रयोग शुरू हुआ, मोदी-शाह उसी के सहारे केंद्र में सत्ता में आए. आज यही गुजरात मॉडल सारे देश में अपनाया जा रहा है. 370 का मुद्दा उसी प्रयोग की अगली कड़ी है, जिसे मोदी शाह महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में भुनाने जा रहे हैं.

हिंदी बनाम अन्य भाषाओं की लड़ाई में क्या हम प्रतिभाओं का गला घोंट रहे हैं?

जिस देश में यह कहावत हो कि ‘कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी’, वहां हिंदी बनाम तमिल या अन्य प्रांतीय भाषाओं का विवाद ही ग़लत है.

विरोध करना कब से लोकतंत्र और देश विरोधी हो गया?

हॉन्ग कॉन्ग और कश्मीर दोनों ही इस समय इतिहास के एक जैसे दौर से गुजर रहे हैं; दोनों की स्वायत्तता के नाम पर की गई संधि खतरे में है और उनसे संधि करने वाले देशों की सरकार इन संधियों से मुकर रही हैं.

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