क्या एक फिल्म के पोस्टर से ‘आहत’ हुए लोगों की वास्तव में काली में आस्था है

एक स्त्री निर्देशक जब काली की छवि को अपनी बात कहने के लिए चुनती है तो वह लैंगिक न्याय और स्वतंत्रता में उसकी आस्था का प्रतीक है. क्या इंटरनेट पर आग उगल रहे तमाम ‘आस्थावान’ स्त्री स्वतंत्रता के इस उन्मुक्त चित्रण से भयभीत हो गए हैं? या उन्हें काली की स्वतंत्रता के पक्ष में स्त्रियों का बोलना असहज कर रहा है?

जेएनयू में टूटे शीशों की रात

जो लोग जेएनयू गेट पर लाठियां लेकर खड़े थे और भीतर जो लोग लाठियां लेकर शिक्षकों और छात्र-छात्राओं की लिंचिंग पर उतारू थे, उनकी मंशा को समझना क्या इतना मुश्किल है?

क्या उर्दू-फ़ारसी के निकलने से क़ानूनी भाषा आम लोगों के लिए आसान हो जाएगी?

हिंदी से फ़ारसी या अरबी के शब्दों को छांटकर बाहर निकाल देना असंभव है. एक हिंदी भाषी रोज़ाना अनजाने ही कितने फ़ारसी, अरबी या तुर्की के शब्द बोलता है, जिनके बिना किसी वाक्य की संरचना तक असंभव है.