अली सरदार जाफ़री: अवध का अलबेला शायर

अली सरदार जाफ़री को उनके अद्भुत साहित्य सृजन के साथ जीवट भरे स्वतंत्रता संघर्ष और अप्रतीम फिल्मी करिअर के लिए तो जाना ही जाता है. उर्दू व हिंदवी की नज़दीकियों, उर्दू में छंदमुक्त शायरी को बढ़ावा देने, सर्वहारा की दर्दबयानी और साम्यवाद के फलसफे के लिए भी याद किया जाता है.

जब नेहरू ने कहा कि पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म हो रहे हैं तो क्या हम भी यहां वही करें?

नेहरू स्वतंत्रता आंदोलन से निकले ऐसे नायक हैं, जिनकी विचारधारा और पक्षधरता में कोई विरोधाभास नहीं है.

उत्तर प्रदेश: समाजवादी पार्टी अपनी लगातार हार से कोई सबक क्यों नहीं सीख रही है

अखिलेश यादव का कहना सही है कि अब भाजपा हर हाल में जीतने के लिए चुनावों में लोकतंत्र को ही हराने पर उतर आती है. लेकिन इसी के साथ बेहतर होगा कि वे समझें कि उनकी व पार्टी की अपील का विस्तार किए बिना वे उसे यह सब करने से कतई नहीं रोक सकते.

अल्लामा इक़बाल: आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं…

जन्मदिन विशेष: अपनी शायरी में इक़बाल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे बेलौस होकर पढ़ने या सुनने वालों के सामने आते हैं. बिना परदेदारी के और अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए...

वे नेताओं की दुश्मनी के नहीं, सहयोग के परस्पर लेन-देन के दिन थे

उस दौर में हमारी राजनीति इतनी पतित हुई ही नहीं थी कि नेताओं द्वारा अपने प्रतिद्वंद्वियों को दुश्मनों के रूप में देखा जाता, दुश्मन की तरह उनकी लानत-मलामत की जाती और उन्हें कमतर दिखाने या गिराने की कोशिश में ख़ुद को उनसे भी नीचे गिरा लिया जाता.

भाजपा से ज़्यादा हिंदुत्ववादी होकर क्या पाएगी आम आदमी पार्टी

कई जानकार कह रहे हैं कि अरविंद केजरीवाल के नोट-राग ने ज़रूरी मुद्दों व जवाबदेहियों से देशवासियों का ध्यान भटकाकर लाभ उठाने में भाजपा की बड़ी मदद की है. ये जानकार सही सिद्ध हुए तो केजरीवाल की पार्टी की हालत ‘माया मिली न राम’ वाली भी हो सकती है.

बिखराव के बीज बोते हुए सद्भाव का खेल खेलते रहने में संघ को महारत हासिल है

संघ की स्वतंत्रतापूर्व भूमिकाओं की याद दिलाते रहना पर्याप्त नहीं है- उसके उन कृत्यों की पोल खोलना भी ज़रूरी है, जो उसने तथाकथित प्राचीन हिंदू गौरव के नाम पर आज़ादी के साझा संघर्ष से अर्जित और संविधान द्वारा अंगीकृत समता, बहुलता व बंधुत्व के मूल्यों को अपने कुटिल मंसूबे से बदलने के लिए बीते 75 वर्षों में किए हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सिर्फ भाषा बदली है, विचार नहीं

बीते कुछ दिनों से आरएसएस नेताओं की भाषा बदली दिख रही है लेकिन बदलाव संघ के एजेंडा पर कभी रहा नहीं है. यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि संघ ने ‘अराजनीतिक होने की राजनीति’ करते हुए अपने स्वयंसेवकों को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया है और कैसे वे लोकतंत्र व संविधान के गुणों व मूल्यों से खिलवाड़ कर रहे हैं.

हेट स्पीच पर मोदी सरकार चुप है क्योंकि वही इसकी सबसे बड़ी लाभार्थी है

सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच की बात करके देश की दुखती नब्ज़ पर हाथ रखा है, लेकिन जहां तक उसके 'केंद्र के मूकदर्शक बने बैठने' वाले सवाल की बात है, तो यह पूछने वाले को भी पता है और देश भी जानता है कि ऐसा सिर्फ इसलिए है क्योंकि सरकार व उसे चला रही पार्टी ही हेट स्पीच की सबसे बड़ी लाभार्थी हैं.

गणेश प्रतिमा विसर्जन के दौरान मौतें: कई सवाल जिन्हें जवाब की दरकार है

बीते सप्ताह गणेशोत्सव के बाद प्रतिमा विसर्जन के दौरान विभिन्न राज्यों में तीस से अधिक मौतें हुईं. अफ़सोस की बात यह है कि इन मौतों को अचानक हो गए हादसों का परिणाम नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह मानने के एक नहीं, अनेक कारण हैं कि बचाव के पर्याप्त उपाय करके ऐसी अप्रिय घटनाओं को रोका जा सकता था.

राजपथ को ग़ुलामी का प्रतीक क्यों समझा गया?

नाम बदलकर बदलाव का भ्रम रचना दरअसल ऐसा करने वालों द्वारा यह स्वीकार लेना है कि उनके पास अपने काम से कोई बदलाव लाने का न बूता बचा है, न विवेक. अन्यथा अब तक वे इतना तो समझ ही गए होते कि ग़ुलामी के प्रतीकों की उनकी समझ कितनी नासमझी भरी है.

केंद्र सरकार का दस लाख नौकरियों का वादा: झांसा या 2024 के लिए चुनावी पासा

अगर मोदी सरकार हर साल दो करोड़ नौकरियां देने के 2014 के लोकसभा चुनाव के अपने वादे पर ईमानदारी से अमल करती, तो इन आठ सालों में सोलह करोड़ युवाओं को नौकरियां मिल चुकी होतीं! अब एक ओर बेरोज़गारी बेलगाम होकर एक के बाद एक नए कीर्तिमान बना रही है, दूसरी ओर उसके प्रति सरकार की ‘गंभीरता’ का आलम यह है कि समझ में नहीं आता कि उसे लेकर सिर पीटा जाए या छाती.

क्या कीजिएगा, न वे विदेश नीति बरत पाते हैं, न सर्व धर्म समभाव!

भाजपा देर से ही सही नूपुर शर्मा व नवीन जिंदल के विरुद्ध इतनी सख़्त हो गई कि पैगंबर मोहम्मद को लेकर दिए उनके बयानों से ख़ुद को अलग करती हुई उन्हें ‘शरारती तत्व’ क़रार दे रही है. सवाल ये है कि क्या वह अब तक उनका बचाव करते आ रहे नेताओं के साथ भी ऐसी सख़्ती बरतेगी और इनकी तरह उन्हें भी माफ़ी मांगने को मजबूर करेगी?

‘न्यू इंडिया’ का नया उत्तर प्रदेश

पहले कभी किसी शहर में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री वगैरह का दौरा होता है तो माना जाता है कि कम से कम उस दिन वहां सफाई, पानी, बिजली आपूर्ति के साथ शांति व्यवस्था भी चाक-चौबंद रहेगी. लेकिन यूपी में अब सब  इतना ‘बदल’ गया है कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के दौरे पर उपद्रव और मुख्यमंत्री-उपमुख्यमंत्री के दौरे के वक़्त हत्याएं तक हो जा रही हैं और किसी भी स्तर पर इसकी शर्म नहीं महसूस की जा रही.

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