विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में मरने वालों की संख्या-चादरें छिपाते तंत्र की प्रतिबद्धता

मुर्दे इतने अधिक हो गए कि लाशों को ठिकाने लगाने का सिस्टम बैठ गया. अब वे हिसाब मांगेगी. मृत्यु का, आंसू का, असहाय और अकेले पड़ने का, लुटने का, अस्पताल से लेकर अंतिम यात्राओं तक अपना आत्म सम्मान खोने का. जितना ढंकेंगे, चुप कराएंगे, झूठ बोलेंगे, सच उतना ही साफ होकर सामने आता जाएगा.

कोविड संकट: ज़िंदा लोग इंतज़ार कर रहे हैं, लाशें पूछ रही हैं देश का इंचार्ज कौन है

कोरोना संक्रमण मोदी सरकार की स्क्रिप्ट के हिसाब से नहीं आया था और इसीलिए इसका कोई तसल्लीबख़्श जवाब उसके पास नहीं है.

क्या देश और सरकार के लिए सत्य भी राम नाम की तरह पवित्र है

वह देश और उसकी जनता कितने दुर्भाग्यशाली होते होंगे, जिनकी चुनी हुई सरकार ही उनसे सच छिपाती फिरे. जहां राम नाम सत्य है कहा जाता होगा, पर उसका अर्थ गहरा और पवित्र नहीं होता होगा.

साल 2020 में देश को किस नज़र से देख रही है युवा आबादी

आज सवाल ये नहीं है कि बच्चे इस बार इम्तिहानों में पास होंगे या नहीं, सवाल ये है कि यह देश और हम हिंदुस्तानी उनकी निगाहों में कितना फेल होते जा रहे है.

लॉकडाउन: घोषणाओं से दिल भले बहल जाएं, पेट कैसे भरेंगे

मज़दूरों के नाम पर हो रही बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बीच यह स्पष्ट दिख रहा है कि सरकार और समाज के पास न तो उनके लिए सरोकार है, न सम्मान की भाषा और व्यवहार. न ही वह गरिमा और आंख का पानी बचा है, जिसके साथ एक मनुष्य दूसरे को मनुष्य समझते हुए देखता है.