यह साल हम सबने किस तरह काटा है…
बदसूरत से बदसूरत समय में जीवन में आस्था नहीं छोड़नी चाहिए. बदसूरती और नाइंसाफ़ी का दस्तावेज़ीकरण भी कितना ज़रूरी है. क्या हमारे दौर का भी दर्ज हो रहा है?
बदसूरत से बदसूरत समय में जीवन में आस्था नहीं छोड़नी चाहिए. बदसूरती और नाइंसाफ़ी का दस्तावेज़ीकरण भी कितना ज़रूरी है. क्या हमारे दौर का भी दर्ज हो रहा है?
कोरोना वायरस के चलते लगे लॉकडाउन का असर समाज के सभी वर्गों और सभी उम्र के लोगों पर पड़ रहा है. ऐसे ही एक मध्यमवर्गीय युवक की कहानी…
लॉकडाउन के दौरान कई स्तरों पर हो रहे नुकसानों में उन सामाजिक क्षतियों का ज़िक्र नहीं हो रहा है, जिनका सामना न्यूनतम संसाधनों के सहारे रह रहे निम्न आर्थिक वर्ग के परिवार कर रहे हैं.
छठ के इस वीडियो को देखकर शहर में अकेले रह रहे उच्च और मध्यमवर्ग के लोग अपने जीवन में आ रही कमी को महसूस करते हैं. यह सुख-सुविधा की कमी नहीं है. यह रौनक और संस्कृति के तत्त्वों की कमी है.
यह अर्थी कितना कुछ मांगती है! चार मज़बूत कंधे और वह भी लगभग बराबर ऊंचाई के. इसकी आड़ लेकर लोगों को बेटा चाहिए. उसी के कंधे का आसरा खोजा जाता है.