कांग्रेस के हिंदुत्व की होड़ में शामिल होने की विवशता भाजपा के लिए अमृतकाल साबित हुआ है

छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार द्वारा राम वनगमन पथ परियोजना के क्रियान्वयन का मक़सद समाज में लोगों के बीच जातिगत और लैंगिक भूमिकाओं की जड़ों को और भी मज़बूत करना था. इसका क्रियान्वयन हिंदुत्व सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के विस्तार के अलावा और कुछ भी नहीं था. असल में कांग्रेस का सॉफ्ट हिंदुत्व एक धूर्ततापूर्ण नाम है. 

दिल्ली विश्वविद्यालय: एक संभावनाशील प्रोफ़ेसर की बेदख़ली

पुस्तक समीक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में पिछले 14 सालों से एडहॉक कोटे से पढ़ा रहे और अब बेदख़ल कर दिए गए डॉ. लक्ष्मण यादव की हाल ही में प्रकाशित किताब ‘प्रोफ़ेसर की डायरी’ एडहॉक व्यवस्था की क्रूरता का पर्दाफ़ाश करती है. इन व्यवस्था ने ऐसा वर्ग विभाजन पैदा किया है, जहां संभावनाशील और मेहनतकश प्रोफ़ेसरों को शोषण की अंतहीन चक्की में झोंक दिया जाता है.

ज्ञानपीठ ने साहित्य से फेर ली पीठ

ज्ञानपीठ पुरस्कार की 2023 के लिए की गई ताज़ा घोषणा में चर्चित अमृतकाल की अनुगूंज साफ़ सुनी जा सकती है. अकादमियां तो सरकार की छाया में काम करती हैं इसलिए जब-तब शायद विचलित हो जाएं, मगर साहित्य समुदाय में ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा ने बड़ी हलचल पैदा की है. सवाल उठने लगे हैं कि क्या ज्ञानपीठ ने समझौते का रास्ता चुन लिया है?

नामवर सिंह: सत्य के लिए किसी से नहीं डरना चाहिए, गुरु से भी नहीं और वेद से भी नहीं

पुण्यतिथि विशेष: नामवर सिंह आधुनिक कविता और नई कहानी के अब तक के सबसे महत्वपूर्ण व्याख्याकार हैं. ऐसे व्याख्याकार, जिसने कविता के नए प्रतिमानों की खोज की तो तात्कालिकता के महत्व को भी रेखांकित किया. उनके व्याख्यानों की लंबी श्रृंखला ऐलान करती है कि उन्होंने हिंदी की वाचिक परंपरा को न केवल समृद्ध किया, बल्कि नई पहचान भी दी.

कृष्णा सोबती: क्या एक लेखक को उसकी लेखनी से जाना जा सकता है?

जन्मदिवस विशेष: साहित्य में स्त्री की उपस्थिति एक विचारणीय बात है. जिस प्रकार से कला-संस्कृति-समाज सब पुरुषों द्वारा परिभाषित और व्याख्यायित रहे हैं, ऐसे में स्त्री और उसकी भूमिका को भी प्राय: पुरुषों ने परिभाषित किया है. इसीलिए जब स्त्री और उसके इर्द-गिर्द निर्मित संसार को एक स्त्री अभिव्यक्त करती है तो एक अलग दृष्टि-एक अलग पाठ की निर्मिति होती है.

क्या हल्द्वानी में ‘मस्जिद-मदरसे’ के ध्वस्तीकरण और उससे उपजी हिंसा की न्यायिक जांच की जाएगी?

हल्द्वानी के बनभूलपुरा इलाके में कथित ‘अवैध मस्जिद और मदरसे’ के ध्वस्तीकरण ने ज़िला प्रशासन की कार्यप्रणाली की कथित ख़ामियों को उजागर किया है. उत्तराखंड की भाजपा नेतृत्व वाली सरकार को भी इस मामले में अपना पक्ष स्पष्ट करना है कि जहां तक अल्पसंख्यक अधिकारों का सवाल है, उनके अनुपालन में वह आज तक कितनी चुस्त रही है.

दिल्ली चलो मार्च: शंभू बॉर्डर पर किसानों ने कहा- एमएसपी पर क़ानून बनने तक वापस नहीं लौटेंगे

पंजाब-हरियाणा सीमा स्थित शंभू बैरियर का दृश्य 2020 में दिल्ली की सीमाओं पर हुए किसान आंदोलन की सटीक पुनरावृत्ति है. किसानों ने कहा कि पिछले आंदोलन के समय हमें एमएसपी पर क़ानून बनाने का आश्वासन दिया था, तो केंद्र सरकार क़रीब तीन साल तक क्यों बैठी रही. मोदी सरकार निश्चित रूप से अपने अहंकार के चरम पर है.

चौधरी चरण सिंह: भारत रत्न और ख़िज़ां में बहार तलाशती सियासी अय्यारियों की जुगलबंदी

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न का अलंकरण क़ाबिले-तारीफ़ है; लेकिन अगर उनके विचारों की लय पर सरकार अपने कदम उठाती तो बेहतर होता. सरकार से ज़्यादा यह दारोमदार रालोद के युवा नेता पर है कि वह अपने पुरखे और भारतीय सियासत के एक रोशनख़याल नेता के आदर्शों को लेकर कितना गंभीर है.

भारत रत्न: चुनावी दुरुपयोग ने ख़िताब की प्रतिष्ठा को इसके न्यूनतम स्तर पर पहुंचा दिया है

अपने वक़्त में कर्पूरी ठाकुर और चौधरी चरण सिंह जैसे नेता सामाजिक समानता की जिस लड़ाई में मुब्तिला थे, उसमें उनके लिए निजी मान-अपमान या विभूषणों का कोई प्रश्न कहीं था ही नहीं. चरण सिंह जब उपप्रधानमंत्री थे, तब सरकार ने न सिर्फ भारत रत्न, बल्कि सारे पद्म पुरस्कारों को 'अवांछनीय' क़रार देकर बंद कर दिया था.

राजस्थान का सुरेंद्र पाल सिंह टीटी प्रकरण 76 साल पहले संविधान सभा में उठे सवाल याद दिलाता है

राजस्थान विधानसभा की श्रीकरणपुर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने अपने उम्मीदवार को जीत से पहले मंत्री बना दिया था. बाद में उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी ने हरा दिया. 1948 में संविधान सभा में सवाल उठा था कि क्या विधायकों, सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद फिर निर्वाचन प्रक्रिया से गुज़रना चाहिए.

फ़ैज़ाबाद: अयोध्या नगर निगम का एक अनाम-सा हिस्सा

नवाबों का शहर फ़ैज़ाबाद, अब उस अयोध्या नगर निगम का अनाम-सा हिस्सा है, जिसके ज़्यादातर वॉर्डों के पुराने नाम भी नहीं रहने दिए गए हैं. नवाबों के काल की उसकी दूसरी कई निशानियां भी सरकारी नामबदल अभियान की शिकार हो गई हैं. हालांकि अब भी ग़ुलामी के वक़्त के तमाम नाम नज़र आते हैं, जो सरकार को नज़र नहीं आते.

क्या उत्तराखंड के ज्वलंत मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए यूनिफॉर्म सिविल कोड का सहारा लिया गया है?

उत्तराखंड के सुदूर गांवों, तहसीलों और क़स्बों में आम आदमी और लिखे-पढ़े लोग भी पूरी तरह भ्रमित हैं कि बेशुमार समस्याओं से घिरे इस छोटे-से प्रदेश में अफ़रा-तफ़री में पारित हुए विवादास्पद यूनिफॉर्म सिविल कोड बिल से उनकी ज़िंदगी किस तरह से बदलेगी.

शैक्षणिक संस्थानों में जातिगत भेदभाव की जांच के लिए गठित यूजीसी समिति समाधान में विफल रही है

कथित संस्थागत जातिगत भेदभाव के कारण रोहित वेमुला और पायल तड़वी की आत्महत्या को लेकर उनकी माताओं द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर यूजीसी ने इस मामले को देखने के लिए 9 सदस्यीय समिति का गठन किया था. हालांकि समिति के सदस्यों के पास भेदभाव से निपटने का कोई ट्रैक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन वे भाजपा से निकटता रखते हैं.

128 बुलडोज़र कार्रवाइयों में मुसलमान थे निशाना, 600 से अधिक प्रभावित हुए: एमनेस्टी रिपोर्ट

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भारत में होने वाली ‘बुलडोज़र कार्रवाइयों’ को लेकर दो रिपोर्ट जारी करते हुए मुस्लिमों के घरों, कारोबार और उपासना स्थलों के व्यापक और ग़ैर-क़ानूनी विध्वंस को तत्काल रोकने का आह्वान किया है. रिपोर्ट बताती है कि भाजपा शासित मध्य प्रदेश में ‘सज़ा के तौर’ पर सर्वाधिक 56 बुलडोज़र कार्रवाइयां हुईं.

रथ यात्रा से भारत रत्न तक के लाल कृष्ण आडवाणी के सफ़र में हिंसा और ध्रुवीकरण साथ बने रहे

96 बरस वर्षीय लाल कृष्ण आडवाणी को भारत रत्न ऐसे समय दिया गया है, जब देश अगले लोकसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है और इसके केंद्र में नरेंद्र मोदी हैं. बेरहमी से दरकिनार किए जा गए अपने 'गुरु' को देश का सर्वोच्च सम्मान देकर नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया है.

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