लोकसभा चुनाव 2024
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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बीते माह भारतीय स्टेट बैंक ने चुनावी बॉन्ड से जुड़ा डेटा चुनाव आयोग को सौंपा था, लेकिन अब वही डेटा जब सूचना के अधिकार के तहत मांगा गया तो बैंक ने इसे आरटीआई अधिनियम के तहत छूट प्राप्ट जानकारी बताकर देने से इनकार कर दिया.
सीएसडीएस-लोकनीति द्वारा जनता के बीच चुनावी मुद्दों को लेकर किए गए एक सर्वे में लोगों ने बेरोज़गारी, महंगाई और विकास को 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए सबसे अधिक प्रासंगिक तीन मुद्दे माना है.
इंदौर प्रशासन ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति का हवाला देते हुए बुधवार को होने वाली ईसाई समुदाय की प्रार्थना सभा की अनुमति रद्द कर दी थी क्योंकि इंदौर लोकसभा क्षेत्र के एक सहायक चुनाव अधिकारी ने कहा था कि हिंदू लोग सभा का विरोध कर रहे हैं. शीर्ष अदालत ने अनुमति रद्द करने को अनुचित बताया है.
गुजरात सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर कहा है कि बौद्ध धर्म को एक अलग धर्म माना जाना चाहिए और हिंदू धर्म से बौद्ध, जैन और सिख धर्म में परिवर्तित होने के लिए गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 के प्रावधानों के तहत संबंधित डीएम की पूर्व मंज़ूरी लेनी होगी.
तमिलनाडु में वंशवादी राजनीति और भ्रष्टाचार पर प्रधानमंत्री के आरोपों का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि अगर भ्रष्टाचार की कोई यूनिवर्सिटी बने, तो मोदी इसके चांसलर बनने के लिए सही व्यक्ति होंगे, क्योंकि चुनावी बॉन्ड से लेकर पीएम केयर्स फंड और दागी नेताओं के भगवाकरण की भाजपा की 'वॉशिंग मशीन' तक, भाजपा भ्रष्ट है.
वीडियो: आगामी 19 अप्रैल को अरुणाचल प्रदेश में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी होने हैं. हालांकि, सीएम पेमा खांडू समेत भाजपा के दस प्रत्याशी ऐसे हैं जिनके निर्वाचन क्षेत्र में उनके ख़िलाफ़ कोई नामांकन ही नहीं हुआ है और वे मतदान से पहले ही 'जीते' हुए माने जा रहे हैं. क्या ऐसा होना लोकतंत्र में जनता के उसके प्रतिनिधि चुनने के अधिकार के लिए ख़तरा है? प्रदेश की राजनीति पर द वायर की वरिष्ठ पत्रकार संगीता बरुआ पिशारोती से
नीरज शेखर की राजनीति समाजवादी पार्टी से शुरू हुई थी, वो दो बार सपा की टिकट पर सांसद भी रहे हैं, लेकिन 2019 में भाजपा उन्हें अपने पाले में ले आई और इस बार उन्हें टिकट देकर पार्टी ने परिवारवाद को खुद ही आत्मसात कर लिया.
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मणिपुर हिंसा शुरू होने के 79 दिन तक चुप्पी न तोड़ना, उनकी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव के चलते संसद में मजबूरन बोलना और आज तक हिंसाग्रस्त राज्य का दौरा न करना इस बात का पर्याप्त प्रमाण हैं कि उनके हिंसा में 'समय से हस्तक्षेप' के दावे में कोई सच्चाई नहीं है.