11 अगस्त को झारखंड के अधिकतर हिंदी अख़बारों में छपे एक सरकारी विज्ञापन में गांधी के नाम से धर्मांतरण के संबंध में वो बातें लिखी गईं, जो उन्होंने कभी कही ही नहीं थीं.
पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी समेत आठ लोग सोमवार को 'दलित अत्याचार और निदान' विषय पर प्रेस कॉन्फ्रेंस और गोष्ठी करने जा रहे थे, तभी उत्तर प्रदेश पुलिस ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया.
इसी प्रदर्शन में 125 किलो का साबुन लेकर शामिल होने आ रहे गुजरात के 45 दलित कार्यकर्ताओं को झांसी स्टेशन पर रविवार शाम पुलिस ने हिरासत में लिया था.
गुजरात से दस ज़िलों के दलित-आदिवासी कार्यकर्ता योगी आदित्यनाथ को महात्मा बुद्ध का संदेश देने आ रहे थे, झांसी में यूपी पुलिस ने उन्हें रोक लिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सवा क्विंटल का साबुन देने आ रहे 45 गुजराती दलित-आदिवासी कार्यकर्ताओं को यूपी पुलिस ने झांसी में रोककर हिरासत में ले लिया. हिरासत में लिए गए लोगों में दलित और आदिवासी समाज के लोग हैं, जिनमें आठ महिलाएं भी हैं. गुजरात के दस ज़िलों के दलित-आदिवासी सामाजिक
अंग्रेजी पत्रकारिता में आपको खुलेआम खुद को समलैंगिक बताने वाले लोग ज्यादा मिल जाएंगे, बनिस्बत ऐसे लोगों के जो खुल कर अपना दलित होना कुबूल करते हों.
भारत के प्रधानमंत्री सबको घर उपलब्ध करवाने का वायदा करते हैं, वहीं मध्य प्रदेश सरकार आदिवासियों के बने बनाए घर तोड़ रही है.
अवैध खनन माफिया और नक्सलियों के बीच एक साझेदारी है- दोनों ही चाहते हैं कि छतीसगढ़ के जो ज़िले पिछड़े और दूरस्थ हैं, वे वैसे ही बने रहें क्योंकि इनके ऐसे बने रहने में ही इनका फायदा है.
छत्तीसगढ़ में फेसबुक पोस्ट पर निलंबित की जाने वाली जेल अधिकारी वर्षा का कहना है कि उन्होंने सीबीआई, सुप्रीम कोर्ट और सरकार के दस्तावेजों के हवाले से ही सब कुछ लिखा था.
सांसद समेत अन्य लोग फर्ज़ी कागज़ातों के ज़रिये दलित और आदिवासियों के अधिकार छीन रहे हैं.
मृतक के परिवार ने पुलिस पर हिरासत में यातना देने का आरोप लगाया है. गुजरात राज्य में नए गो-संरक्षण क़ानून के तहत यह पहला मामला दर्ज़ हुआ था.
सहायक जेल अधीक्षक वर्षा डोंगरे ने अपनी एक फेसबुक पोस्ट में राज्य के आदिवासियों की स्थिति, मानवाधिकार हनन और नक्सल समस्या को लेकर सरकार की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए थे.
‘मैंने स्वयं बस्तर में 14 से 16 वर्ष की आदिवासी बच्चियों को देखा है, जिनको थाने में नग्न कर प्रताड़ित किया गया था, उनकी कलाइयों और स्तनों पर करंट लगाया गया था.’
बस्तर में चलने वाले नक्सल राज की खूनी कहानी हर गांव में आपको सुनने को मिलेगी. बंदूक और हिंसा की राजनीति का नतीजा यह हुआ है कि शांतिपूर्ण जीवन के आदी आदिवासियों का जीवन बिखर चुका है.
सीजीनेट स्वर जन पत्रकारिता में क्षेत्र में काम करने वाला एनजीओ है. ये आदिवासियों को समस्याओं को उन्हीं की भाषा में रिकॉर्ड करके ब्लूटूथ के ज़रिये प्रसारित करता है. सीजीनेट स्वर के संस्थापक शुभ्रांशु चौधरी से मीनाक्षी तिवारी की बातचीत.
क्या बस्तर में भी भारतीय संविधान लागू है? क्या माओवाद से लड़ाई के नाम पर ग्रामीणों के फ़र्ज़ी एनकाउंटर, महिलाओं के बलात्कार, सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हमले और जेल आदि सब जायज़ हैं, जबकि माओवाद तो ख़त्म होने की जगह बढ़ रहा है?