कर्नाटक विधानसभा के बृहस्पतिवार से शुरू हो रहे बजट सत्र के पहले जल संसाधन मंत्री रमेश जारकिहोली के ख़िलाफ़ इस तरह के आरोप लगने से बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार आलोचनाओं से घिर गई थी. राज्य में विपक्षी कांग्रेस और जेडीएस मंत्री के इस्तीफ़े की मांग कर रहे थे.
कर्नाटक की विभिन्न अदालतों का यह फ़ैसला राज्य की भाजपा सरकार के 31 अगस्त 2020 के आदेश पर आधारित है. सरकार के क़दम से मैसूर से भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा, हिंदुत्ववादी संगठनों के 206 सदस्यों और 106 मुस्लिमों को राहत मिली है.
बीते पंद्रह दिनों में यह दूसरी बार है जब कर्नाटक हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की याचिका ख़ारिज की है. इससे पहले 23 दिसंबर को अदालत ने भूमि अधिसूचना वापस लेने के एक अन्य मामले में चल रही आपराधिक कार्रवाई रद्द करने के येदियुरप्पा के अनुरोध को नहीं माना था.
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा से जुड़ा यह मामला साल 2006 का है, जब वह उप-मुख्यमंत्री थे. उन पर कथित तौर पर सरकार द्वारा अधिग्रहित भूमि का एक हिस्सा निजी व्यक्तियों के लिए जारी करने का आरोप है. हाईकोर्ट ने मामले में पिछले पांच साल में जांच पूरी कर पाने में विफल होने पर लोकायुक्त पुलिस को लताड़ लगाई है.
कर्नाटक सरकार ने राज्य के गृह मंत्री बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली एक उप-समिति के सुझावों पर 31 अगस्त, 2020 को सत्ताधारी भाजपा के सांसदों और विधायकों पर दर्ज 61 मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया था.
भाजपा के विधान परिषद सदस्य एएच विश्वनाथ उन 17 विधायकों में शामिल हैं, जिन्हें कर्नाटक विधानसभा से अयोग्य घोषित किया गया था और इसी कारण एचडी कुमारस्वामी की अगुवाई वाली तत्कालीन जेडीएस-कांग्रेस गठबंधन सरकार गिर गई थी.
इससे पहले कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने कांग्रेस और जेडीएस के उन सभी 17 विधायकों को मंत्री पद देने का वादा किया था, जिन्होंने 2019 में भाजपा को सरकार बनाने में मदद की थी. 17 में से 15 सीटों पर पिछले साल दिसंबर में उपचुनाव हुआ था, जबकि दो सीटों पर तीन नवंबर को मतदान हो रहा है.
पुलिस महानिदेशक, पुलिस महानिरीक्षक, अभियोजन निदेशक और सरकारी मुकदमा और क़ानून विभाग ने सत्ताधारी भाजपा के सांसदों और विधायकों पर दर्ज मामलों को वापस न लेने की सिफ़ारिश की थी. वापस लिए गए मामलों में कर्नाटक के क़ानून मंत्री और पर्यटन मंत्री के ख़िलाफ़ दर्ज केस भी शामिल हैं.
मामला बेंगलुरु का है, जहां अस्पतालों द्वारा भर्ती करने से कथित तौर पर इनकार किए जाने के बाद महिला ने ऑटो रिक्शा में बच्चे को जन्म दिया. पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इन अस्पतालों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की है.
हाईकोर्ट ने कहा कि ऑनलाइन शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा जारी आदेश का कोई तार्किक आधार नहीं है. कोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि उनके आदेश का ये मतलब नहीं कि स्कूल ऑनलाइन शिक्षा को अनिवार्य बना सकते हैं या फिर इसके लिए अतिरिक्त फीस वसूल सकते हैं.
बीते 20 मई को जारी किए राज्य सरकार के आदेश में केंद्र सरकार के 2018 के निर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया है कि सभी सरकारी अधिकारी अनुसूचित जाति व जनजाति के सदस्यों के लिए ‘दलित’ या ‘हरिजन’ शब्द का उपयोग करने से बचेंगे क्योंकि इनका संविधान या क़ानून में कोई उल्लेख नहीं है.
मज़दूरों के हित निजी संपत्ति के मालिकों के हितों पर ही निर्भर हैं. सरकार सामाजिक व्यवस्था भी उन्हीं के लिए कायम करती है. अंत में यही कहा जाएगा कि उसने रेल भी मज़दूरों के हित में रद्द की हैं, उन्हें रोज़गार देने के लिए!
मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के साथ बैठक में ये आशंका जताई गई कि यदि मजदूर वापस लौट जाएंगे तो राज्य का निर्माण कार्य प्रभावित होगा. इसके चलते राज्य सरकार ने मजदूरों को उनके गृह राज्य पहुंचाने वाली ट्रेनों को रद्द करने का फैसला लिया है.
पिछले साल 19 दिसंबर को सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हिंसा और पुलिस पर हमले के आरोप में मैंगलोर पुलिस ने 22 लोगों को आरोपी बनाया था. बीते 17 फरवरी को कर्नाटक हाईकोर्ट ने ठोस सबूत नहीं होने की बात कहते हुए सभी 22 लोगों को जमानत दे दी थी.
कर्नाटक के बीदर में एक स्कूल में हुए नाटक को लेकर दर्ज हुई राजद्रोह की एफआईआर रद्द कराने के लिए एक मानवाधिकार कार्यकर्ता द्वारा शीर्ष अदालत में दायर याचिका में कहा गया था कि ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले शिकायत की जांच के लिए एक समिति बनाई जानी चाहिए.