गाय और अन्य जानवरों के वध के लिए ख़रीद-फ़रोख़्त पर केंद्र सरकार के आदेश पर तीन अदालतों ने तीन तरह का आदेश दिया है तो राज्य सरकारों ने कड़ा विरोध जताया है.
वह कैसी सोच है जिसे पूरी दुनिया में केवल एक गाय ही रक्षा करने योग्य लगती है. सड़क के किनारे सोया थका-हारा मज़दूर नहीं, पुल के नीचे मिट्टी में पलते दुर्बल बच्चे नहीं, अस्पतालों के बाहर बैठे रोगी नहीं.
उच्च न्यायालय ने वध के लिए पशुओं की ख़रीद-बिक्री पर पाबंदी संंबंधी केंद्र की अधिसूचना पर मंगलवार को चार हफ्तों के लिए रोक लगा दी.
यह बेहद दुख की बात है कि तमाम गांवों में पशुओं की बड़ी संख्या में मौत होने के बावजूद अभी तक उनकी रक्षा के लिए कोई असरदार प्रयास नहीं हुए हैं.
प्रदेश के तूरा ज़िले के भाजपा अध्यक्ष ने कहा कि सरकार बनी तो गोमांस पर प्रतिबंध नहीं लगेगा बल्कि दाम घटाया जाएगा.
सरकार ने जीवों से जुड़ीं क्रूर परंपराओं पर भी प्रतिबंध लगाया है, जिसमें उनके सींग रंगना तथा उन पर आभूषण या सजावट के सामान लगाना भी शामिल है.
वर्तमान सरकार गाय को लेकर आवश्यकता से ज़्यादा चिंतित होने का दिखावा कर रही है, लेकिन वहीं हर साल डायरिया-कुपोषण से मरने वाले लाखों बच्चों को लेकर सरकार आपराधिक रूप से निष्क्रिय है.
देश के सांप्रदायिक पागलपन के माहौल में एक मुसलमान के ऊपर गाय के बछड़े का गिर जाना एक घटना तो है ही, एक बिंब,एक फैंटसी और एक प्रतीक भी है.
गोवंश चिकित्सा मोबाइल वैन सेवा के तहत बीमार गायों का इलाज करने के साथ उन्हें पशु चिकित्सालय पहुंचाया जाएगा.
जन गण मन की बात की 41वीं कड़ी में विनोद दुआ छत्तीसगढ़ के सुकमा में हुए नक्सली हमले और गोरक्षा के नाम पर चल रही गुंडागर्दी पर चर्चा कर रहे हैं.
बहुत जल्द इंसानों के आधार कार्ड की तरह गाय और गोवंश के लिए भी यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर जारी होगा. सोमवार को केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में ये सुझाव दिया है.
पंजाब गोसेवा आयोग के चेयरमैन के मुताबिक, एक लाख से अधिक गायें लावारिस घूम रही हैं. इन्हें गोशालाओं में पहुंचाया जाना चाहिए.
पूरे उत्तर प्रदेश में तथाकथित ‘अवैध बूचड़खाने’ वास्तव में सार्वजनिक म्युनिसिपल बूचड़चाने हैं, जो भीषण उपेक्षा के कारण बदहाली का शिकार हैं.
मुस्लिमों को यह कहना होगा कि वे यहां हैं और यहीं रहेंगे. उन्हें यह कहना होगा कि किसी को भी उन्हें इस देश को छोड़ कर जाने के लिए कहने का हक़ नहीं है. उन्हें यह कहना होगा कि वे यहां अपने मुस्लिमपन के साथ वैसे ही रहेंगे जैसे हिंदू अपने हिंदूपन के साथ रहते हैं.
आज़ादी के बाद किसान अपनी समस्याओं के निदान के लिए गांधी के बताए सत्याग्रह के मार्ग पर चल रहे हैं, पर सरकारों के लिए इसका कोई अर्थ नहीं रह गया है.