ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी में बुंदेलखंड के सात ज़िलों में किसानों को कृषि बाज़ार मुहैया करवाने के उद्देश्य से 625.33 करोड़ रुपये ख़र्च कर ज़िला, तहसील और ब्लॉक स्तर पर कुल 138 मंडियां बनाई गई थीं. पर आज अधिकतर मंडियों में कोई ख़रीद-बिक्री नहीं होती, परिसरों में जंग लगे ताले लटक रहे हैं और स्थानीय किसान परेशान हैं.
दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर लकड़ियां एकत्र कर जलाई गईं और उसके चारों तरफ घूमते हुए किसानों ने नए कृषि क़ानूनों की प्रतियां जलाईं. इस दौरान प्रदर्शनकारी किसानों ने नारे लगाए, गीत गाए और अपने आंदोलन की जीत की प्रार्थना की. किसान एक महीने से ज्यादा समय से इन क़ानूनों के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं.
विवादित तीन कृषि क़ानूनों की संवैधानिकता जांचे बिना सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस पर रोक लगाने के क़दम की आलोचना हो रही है. विशेषज्ञों ने कहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का ये काम नहीं है. इससे पहले ऐसे कई केस- जैसे कि आधार, चुनावी बॉन्ड, सीएए को लेकर मांग की गई थी कि इस पर रोक लगे, लेकिन शीर्ष अदालत ने ऐसा करने से मना कर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की इस स्वीकारोक्ति से पहले पिछले कुछ महीनों में कई भाजपा नेता किसान आंदोलन में खालिस्तानियों के शामिल होने का आरोप लगा चुके हैं. यहां तक कैबिनेट मंत्री रविशंकर प्रसाद, पीयूष गोयल और कृषि नरेंद्र तोमर ने भी इस संबंध में माओवादी और टुकड़-टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया है.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नए कृषि क़ानूनों पर रोक लगाते हुए किसानों से बात करने के लिए समिति बनाने के निर्णय पर किसान संगठनों ने कहा कि वे इस समिति को मान्यता नहीं देते. जब तक क़ानून वापस नहीं लिए जाते तब तक वे अपना आंदोलन ख़त्म नहीं करेंगे.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि क़ानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच गतिरोध दूर करने के उद्देश्य से बनाई गई समिति में भाकियू के भूपेंद्र सिंह मान, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत, प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं. इन चारों द्वारा नए कृषि क़ानूनों का समर्थन किया गया है.
केंद्र के तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ कई याचिकाओं को सुनते हुए सीजेआई एसए बोबड़े ने कहा कि सरकार जिस तरह से मामले को संभाल रही है उससे वे बेहद निराश हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर सरकार कहे कि क़ानूनों को लागू करने पर रोक लगाएगी, तो अदालत इसके लिए समिति गठित करने को तैयार है.
तीन कृषि क़ानूनों को लेकर आंदोलनरत किसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच अब तक हुई आठ दौर की वार्ता में भी गतिरोध ख़त्म नहीं होने को अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्ला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की की व्यक्तिगत असफलता बताया है.
दिल्ली स्थित टिकरी बॉर्डर पर भारतीय किसान यूनियन उगराहां के आंदोलन में शामिल 65 वर्षीय मृतक वकील अमरजीत सिंह राय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम लिखे पत्र में कहा है कि कृपया कुछ पूंजीपतियों के लिए किसानों, मज़दूरों और आम लोगों की रोटी न छीनें और उन्हें सल्फास खाने के लिए मजबूर न करें.
राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के संयोजक और नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल ने कहा कि तीनों कृषि क़ानून किसान-विरोधी हैं और देश के अन्नदाताओं के सम्मान में उनकी पार्टी ने एनडीए से अलग होने का निर्णय लिया है.
विशेष रिपोर्ट: द वायर द्वारा प्राप्त किए गए आधिकारिक दस्तावेज़ों से पता चलता है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने मंडियों में लगने वाले इस तरह के टैक्स को सही ठहराया था और केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इसका समर्थन भी किया था. मंत्रालय ने कहा था कि मंडियों में मिलने वाली सेवाओं के लिए ये राशि वसूली जाती है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर आगामी नगर निकाय चुनाव के प्रचार के लिए बीते मंगलवार को एक जनसभा करने अंबाला गए थे. इस दौरान प्रदर्शनकारी किसानों के एक समूह ने उन्हें काले झंडे दिखाए और सरकार के खिलाफ नारेबाज़ी की थी.
वीडियोः कृषि क़ानूनों के विरोध में दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर किसानों के प्रदर्शन पर भारतीय किसान यूनियन (उगराहां) के झंडा सिंह के साथ द वायर के पॉलिटिकल एडिटर अजय आशीर्वाद की बातचीत.
कृषि क़ानूनों को लेकर किसानों और सरकार के बीच जारी गतिरोध को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक समिति का गठन करने का सुझाव दिया है. इसे लेकर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अपूर्वानंद का नज़रिया.
विशेष रिपोर्टः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में किसानों की हालत सुधारने के लिए गठित स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफ़ारिशें लागू करने का श्रेय एक बार फ़िर अपनी सरकार को दिया है. हालांकि द वायर द्वारा प्राप्त दस्तावेज़ों से पता चलता है कि मोदी सरकार में सिर्फ़ 25 सिफ़ारिशें ही लागू की गई है, जबकि यूपीए सरकार में 175 सिफ़ारिशें लागू की गई थीं.