पांच साल पहले हमने कहा था कि हम नये तरीके से ऐसे मीडिया का निर्माण करना चाहते हैं जो पत्रकारों, पाठकों और जिम्मेदार नागरिकों का संयुक्त प्रयास हो. हम अपने इस सिद्धांत पर टिके रहे हैं और यही आगे बढ़ने में हमारी मदद करेगा.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि मिस्र में बीते चार साल से मीडिया घरानों पर कड़ी कार्रवाई की जा रही है, असंतुष्ट आवाजों को इस हद तक दबाया जा रहा है कि वहां पत्रकार होना एक अपराध बन गया है.
साल 2015 से डॉयचे वेले द्वारा यह सालाना सम्मान मीडिया के क्षेत्र में मानवाधिकार और बोलने की आज़ादी के प्रति प्रतिबद्धता से काम करने के लिए दिया जाता रहा है. इस बार यह विश्व भर के उन पत्रकारों को दिया जा रहा है, जिन्होंने कोरोना संकट के दौरान उनके देशों में सत्ता द्वारा उत्पीड़न और कार्रवाई का सामना किया है.
कांग्रेस ने विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर अपने संदेश में आरोप लगाया कि भाजपा लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को नष्ट करने पर आमादा है. हम सभी पत्रकारों से कहना चाहेंगे कि डरो मत.
पत्रकारों के संगठनों का आरोप है कि कई मीडिया संस्थानों ने कोविड-19 की वजह से लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को नौकरी से हटाने, वेतन में कटौती करने और उन्हें बिना वेतन के छुट्टी पर जाने के नोटिस दिए हैं.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट के मुताबिक कश्मीर में उत्पन्न हुई स्थिति की वजह से भारत की रैकिंग पर काफी प्रभाव पड़ा है. ये रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है जब हाल ही में कश्मीर के दो पत्रकारों पर यूएपीए कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है.
तमिलनाडु की मुख्य विपक्षी पार्टी डीएमके अध्यक्ष एमके स्टालिन ने अनेक पत्रकारों के संक्रमित लोगों के संपर्क में आने पर चिंता जताते हुए सरकार तथा अन्य लोगों से अपील की है कि लॉकडाउन समाप्त होने तक सभी संवाददाता सम्मेलन स्थगित कर दिये जाएं तथा राज्य सरकार सभी पत्रकारों की कोरोना जांच युद्धस्तर पर कराए.
मुंबई के मामलों के सामने आने के बाद ही सूचना और प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि अखबार और मीडिया प्रतिष्ठानों को एक सलाह जारी की जा रही है. देश में कोरोना वायरस से सर्वाधिक प्रभावित राज्य महाराष्ट्र अब तक संक्रमण के 4,666 मामले सामने आ चुके हैं और 232 लोग जान गंवा चुके हैं.
देश में एक लंबी और मुश्किल लड़ाई के बाद हासिल किए गए लोकतांत्रिक अधिकार ख़तरे में हैं क्योंकि सत्ताधारी दल द्वारा उनका दुरूपयोग किया जा रहा है.
इस हफ़्ते की शुरुआत में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि मीडिया कोरोना वायरस संबंधी कोई भी जानकारी छापने या दिखाने से पहले सरकार से इसकी पुष्टि कराए. इसके बाद अदालत ने मीडिया को निर्देश दिया कि वे ख़बरें चलाने से पहले उस घटना पर आधिकारिक बयान लें.
जून महीने में ऑस्ट्रेलियाई ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन के मुख्यालय और न्यूज़ कॉर्प के एक पत्रकार के घर पर छापेमारी के बाद ऑस्ट्रेलिया के 'राइट टू नो कोएलिशन' अभियान के तहत अख़बारों ने यह क़दम उठाया है.
सरकार के हस्तक्षेप या प्रबंधन के दबाव का आरोप लगाना एक कमज़ोर बहाना है- मीडिया पेशेवरों ने स्वयं ही ख़ुद को अपने आदर्शों से दूर कर लिया है. वे बेआवाज़ को आवाज़ देने या सत्ताधारी वर्ग से जवाबदेही की मांग करने वाले के तौर पर अपनी भूमिका नहीं देखते हैं. अगर वे खुद व्यवस्था का हिस्सा बन जाएंगे, तो वे व्यवस्था से सवाल कैसे पूछेंगे?
सामूहिक रूप से 2.6 करोड़ मासिक पाठक वर्ग वाले तीनों बड़े अख़बार समूहों का कहना है कि मोदी के पिछले महीने लगातार दूसरी बार भारी बहुमत से चुनकर सत्ता में आने से पहले ही उनके करोड़ों रुपये के विज्ञापनों को बंद कर दिया गया.
आपातकाल के 44 साल बाद इन सेंसर-आदेशों को पढ़ने पर उस डरावने माहौल का अंदाज़ा लगता है जिसमें पत्रकारों को काम करना पड़ा था, अख़बारों पर कैसा अंकुश था और कैसी-कैसी ख़बरें रोकी जाती थीं.
रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स की ओर से जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 140वें स्थान पर है. 2018 में अपने काम की वजह से भारत में कम से कम छह पत्रकारों की मौत हुई थी.