भारत में सच बोलने वालों के लिए यह ख़तरनाक समय: एमनेस्टी इंटरनेशनल

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2014 और 2017 के बीच में मीडियापर्सन्स के ख़िलाफ 204 हमले दर्ज किए गए. प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों के बीच भारत की स्थिति 2017 में 136 से बढ़कर 2018 में 138 हो गई है.

भारत में सत्ताधारी पार्टी से सहमत न होने वाले पत्रकारों की प्रताड़ना चिंताजनक: आरडब्ल्यूबी

प्रेस की दशा-दिशा पर नज़र रखने वाली वैश्विक संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ओर कहा गया है कि पत्रकारों को प्रताड़ित किए जाने की घटनाओं के पीछे हिंदू राष्ट्रवादियों का हाथ है. इसमें हत्या भी हो सकती है, जैसा पत्रकार गौरी लंकेश के मामले में हुआ.

मीडिया बोल, एपिसोड 62: मीडिया की आज़ादी सत्ता को क्यों मंज़ूर नहीं है?

मीडिया बोल की 62वीं कड़ी में उर्मिलेश मीडिया की आज़ादी पर पूर्व पत्रकार व आप नेता आशुतोष और वरिष्ठ पत्रकार नीरेंद्र नागर से चर्चा कर रहे हैं.

यह अभिव्यक्ति की आज़ादी के लिए निराशाजनक दौर है

यह एक कठोर हक़ीक़त है कि अभिव्यक्ति की आज़ादी को बचाए रखने वाले हर क़ानून के अपनी जगह पर होने के बावजूद समाचारपत्रों और टेलीविज़न चैनलों ने बिना प्रतिरोध के आत्मसमर्पण कर दिया है और ऊपर से आदेश लेना शुरू कर दिया है.

एक्सक्लूसिव: एबीपी न्यूज़ से पत्रकारों के इस्तीफ़े के पहले पतंजलि ने चैनल से हटाए थे विज्ञापन

पतंजलि के प्रवक्ता ने एबीपी समाचार चैनल से विज्ञापन हटाने की बात स्वीकारते हुए वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी और मिलिंद खांडेकर के इस्तीफ़े में हाथ होने से इनकार किया.

अब मीडिया सरकार की नहीं बल्कि सरकार मीडिया की निगरानी करती है: पुण्य प्रसून बाजपेयी

विशेष: वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी बता रहे हैं कि न्यूज़ चैनलों पर नकेल कसने के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के भीतर बनाई गई 200 लोगों की ‘गुप्त फ़ौज’ क्या और कैसे काम करती है.

मुझे कहा गया कि न मोदी का नाम लूं, न ही उनकी तस्वीर दिखाऊं: पुण्य प्रसून बाजपेयी

बेस्ट ऑफ 2018: अपने इस लेख में मास्टरस्ट्रोक कार्यक्रम के एंकर रहे पुण्य प्रसून बाजपेयी उन घटनाक्रमों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं जिनके चलते एबीपी न्यूज़ चैनल के प्रबंधन ने मोदी सरकार के आगे घुटने टेक दिए और उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा.

क्या एबीपी न्यूज़ के पत्रकारों ने मोदी सरकार की आलोचना की कीमत चुकाई है?

सूत्रों के अनुसार चैनल में हुए इन बदलावों के बीच भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को पिछले हफ्ते संसद भवन में कुछ पत्रकारों से कहते सुना गया था कि वे ‘एबीपी को सबक सिखाएंगे.’

क्या आपातकाल को दोहराने का ख़तरा अब भी बना हुआ है?

आपातकाल कोई आकस्मिक घटना नहीं बल्कि सत्ता के अतिकेंद्रीकरण, निरंकुशता, व्यक्ति-पूजा और चाटुकारिता की निरंतर बढ़ती गई प्रवृत्ति का ही परिणाम थी. आज फिर वैसा ही नज़ारा दिख रहा है. सारे अहम फ़ैसले संसदीय दल तो क्या, केंद्रीय मंत्रिपरिषद की भी आम राय से नहीं किए जाते, सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रधानमंत्री कार्यालय और प्रधानमंत्री की चलती है.

प्रेस की आज़ादी के असली दुश्मन बाहर नहीं, बल्कि अंदर ही हैं

मोदी के चुनाव जीतने के बाद या फिर उससे कुछ पहले ही मीडिया ने अपनी निष्पक्षता ताक पर रखनी शुरू कर दी थी. ऐसा तब है जब सरकार और प्रधानमंत्री ने मीडिया को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ किया है. मीडियाकर्मियों की जितनी ज़्यादा अवहेलना की गई है, वे उतना ही ज़्यादा अपनी वफ़ादारी दिखाने के लिए आतुर नज़र आ रहे हैं.

मीडिया बोल, एपिसोड 47: ज़ालिम होता जनतंत्र और सीमित प्रेस की आज़ादी

मीडिया बोल की 47वीं कड़ी में उर्मिलेश अशांत क्षेत्रों में माओवादियों की हत्या और प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत के स्थान में आई गिरावट पर अधिवक्ता व मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और न्यूज़लॉन्ड्री की कंसल्टिंग एडिटर बिराज स्वैन से चर्चा कर रहे हैं.

मीडिया बोल, एपिसोड 44: ऑनलाइन मीडिया पर अंकुश की तैयारी

मीडिया बोल की 44वीं कड़ी में उर्मिलेश सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा न्यूज पोर्टल और मीडिया वेबसाइट्स को रेग्युलेट करने के लिए कमेटी बनाए जाने पर चर्चा कर रहे हैं.