आरोप है कि शरजील इमाम ने उत्तर-पूर्व को भारत से काट देने का उकसावा देते हुए भाषण दिए थे. उन्होंने इतना ही किया था कि सरकार पर दबाव डालने के लिए रास्ता जाम करने की बात कही थी. किसान अभी चारों तरफ़ से दिल्ली का रास्ता बंद करने की बात कह रहे हैं, जिससे सरकार पर दबाव बढ़े और वह अपना अड़ियलपन छोड़े. क्या इसे आतंकवादी कार्रवाई कहा जाएगा?
दिल्ली पुलिस ने लिखा है कि उमर ख़ालिद सेकुलरिज्म का चोला ओढ़कर चरमपंथ को बढ़ावा देता है. आपको भी यही लगता है तो कम से कम यह मांग तो कर ही सकते हैं कि दिल्ली पुलिस के अफसरों को फिल्म निर्देशक बन जाना चाहिए क्योंकि वे लोगों के अंदर छिपे अभिनेता को पहचान लेते हैं.
साल हुआ, संसद ने एक झूठ पर मुहर लगाई. एक साल झूठ का, धोखाधड़ी, क्रूरता और हिंसा का. एक साल सच्चाई का, ईमानदारी, सद्भाव और अहिंसा का.
पुलिस ने दिल्ली दंगों से जुड़े मामलों में जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद को 14 सितंबर और छात्र शरजील इमाम को 25 अगस्त को यूएपीए के तहत गिरफ़्तार किया था.
जो लोग ये कहते हैं कि अगर निर्दोष होगा तो अपने आप बाहर आ जाएगा, उनको मैं कह दूं, क्यों न आपको साल भर के लिए जेल में बंद कर दिया जाए? क्यों न देश के हर नागरिक को 18 साल का होते ही साल भर के लिए जेल में बंद कर दिया जाए. हम सब निर्दोष हैं, बाहर आ ही जाएंगे
केंद्र एवं राज्य सरकारों में काम कर चुके पूर्व लोक सेवकों के एक समूह ‘कॉन्स्ट्यूटिशनल कंडक्ट ग्रुप’ द्वारा गठित इस समिति के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर हैं. यह दिल्ली दंगों के संबंध में सरकार, पुलिस और मीडिया की भी भूमिका की जांच करेगी.
दिल्ली सरकार के गृह विभाग ने पांच अक्टूबर को ऐसे सात वीडियो क्लिप दिल्ली पुलिस को सौंपे हैं, जिसमें से कुछ में दिल्ली में हुए दंगों के दौरान दो पुलिसकर्मी कथित दंगाइयों के साथ मिलकर ईंट और अंडे फेंक रहे हैं.
दिल्ली दंगा मामले में सामने आए दो वॉट्सऐप ग्रुप में से एक ‘हिंदू कट्टर एकता ग्रुप’ है, जहां ‘मुल्लों को मारने’ के दावे किए गए हैं. दूसरी ओर दिल्ली प्रोटेस्ट सपोर्ट ग्रुप में सीएए विरोधी प्रदर्शन, हिंसा न करने और संविधान में भरोसा रखने की बातें हुई हैं. दिल्ली पुलिस ने दूसरे ग्रुप के कई सदस्यों को दंगों का साज़िशकर्ता बताया है.
दिल्ली दंगा मामले में दायर एक चार्जशीट में दावा किया गया था कि 8 जनवरी को हुई एक बैठक में डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे के समय हिंसा की योजना बनाई गई थी. पिछले दिनों एक अन्य आरोपपत्र में पुलिस ने इसे हटाते हुए कहा है कि सीएए विरोधी प्रदर्शन 2019 आम चुनाव में भाजपा की जीत से खोई ज़मीन पाने के लिए बड़े पैमाने दंगे करवाने की ‘आतंकी साज़िश’ का हिस्सा थे.
भाजपा नेता कपिल मिश्रा का दिल्ली दंगों से एक दिन पहले का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था, जिसमें वह एक डीसीपी के बगल में खड़े होकर दिल्ली पुलिस को अल्टीमेटम देते हुए तीन दिनों के भीतर ज़ाफ़राबाद और चांदबाग की सड़कें ख़ाली कराने को कह रहे थे. ऐसा नहीं होने पर सड़कों पर उतरने की बात कही थी.
गिरफ़्तारी पर कार्यकर्ताओं के एक समूह ने बयान जारी कर दिल्ली पुलिस की निंदा करते हुए कहा कि शांतिपूर्ण सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को निशाना बनाने के लिए पुलिस अपनी दुर्भावनापूर्ण जांच के ज़रिये उन्हें फंसा रही है.
जेएनयू के पूर्व छात्र कार्यकर्ता उमर ख़ालिद ने दिल्ली पुलिस आयुक्त एसएन श्रीवास्तव को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि पुलिस अधिकारी उन्हें फ़ंसाने के लिए उनके परिचितों को डरा-धमकाकर फ़र्ज़ी बयान देने को मजबूर कर रहे हैं.
माकपा नेता बृंदा करात और केएम तिवारी ने भड़काऊ भाषण देने के लिए भाजपा नेताओं अनुराग ठाकुर और प्रवेश सिंह वर्मा के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने के लिए दिल्ली की एक अदालत में याचिका दी थी. इसके लिए केंद्र सरकार से मंज़ूरी न मिलने के बाद कोर्ट ने इसे ख़ारिज कर दिया.
चुनाव आयोग ने एक स्पष्टीकरण जारी कर कहा कि वे अन्य सरकारी विभागों के साथ मतदाता सूची और फोटो परिचय पत्र साझा करने के साल 2008 के अपने दिशा-निर्देशों से किसी भी तरह नहीं भटका है.
फरवरी महीने में हुए दंगे और उसके बाद हुई ‘जांच’ का मक़सद सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराना है, जिससे उनके आंदोलन को बदनाम किया जा सके. साथ ही भविष्य में ऐसा कोई प्रदर्शन करने के बारे में आम नागरिकों में डर बैठाया जा सके.