यूं तो बेटियां मांओं से बहुत जुड़ी होती ही हैं, मगर सुधा भारद्वाज की बेटी होना कोई आसान नहीं. बिना किसी अपराध के ढाई साल से ऊपर हुए मां जेल में है और बाहर मायशा अलग लड़ाई लड़ रही है.
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज की वकील ने कहा कि वह दो साल से भी ज़्यादा समय से जेल में बंद हैं और अब तक आरोप भी तय नहीं हुए हैं. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेरिट के आधार पर आपके पास अच्छा मामला है. आप नियमित ज़मानत के लिए आवेदन क्यों नहीं करतीं.
सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज ने बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख़ कर ज़मानत का अनुरोध करते हुए कहा था कि वह मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हैं. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं होने की वजह से जेल में उनके कोरोना संक्रमित होने का जोख़िम है, क्योंकि जेल में कोरोना संक्रमण का मामला सामने आ चुका है.
भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ़्तार सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक सुधा भारद्वाज की बेटी ने बताया है कि जेल से मिली उनकी मां की मेडिकल रिपोर्ट में उन्हें हृदय संबंधी बीमारी से ग्रस्त बताया गया है, जो जेल जाने से पहले उन्हें नहीं थी. सुधा भारद्वाज के परिवार और सहयोगियों ने उनकी रिहाई पर जल्द सुनवाई की मांग की है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि भीमा गोरेगांव मामले में गिरफ़्तार कार्यकर्ताओं की रिहाई के लिए काम करने वाले नौ लोगों को स्पाइवेयर का निशाना बनाया गया था. उन्होंने मांग की है कि इसकी स्वतंत्र जांच हो और पता लगाया जाए कि क्या इन स्पाइवेयर अभियानों और किसी ख़ास सरकारी एजेंसी के बीच कोई संबंध है.
जेल में बंद वरवरा राव शुक्रवार शाम बेहोश हो गए, जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया. महामारी के दौर में भी अदालत ने उन्हें वे रियायत देने की ज़रूरत नहीं समझी है, जो अन्य बुज़ुर्ग क़ैदियों को दी जाती हैं.
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार राजनीतिक कार्यकर्ता और कवि वरवरा राव अगस्त, 2018 से जेल में बंद हैं. मामले की एक अन्य आरोपी सुधा भारद्वाज की जमानत अर्जी खारिज कर दी गई है.
मैं देख रहा हूं कि मेरा भारत बर्बाद हो रहा है, इस तरह के डरावने क्षण में एक उम्मीद के साथ लिख रहा हूं. आज बड़े पैमाने पर उन्माद को बढ़ावा मिल रहा और शब्दों के अर्थ बदल दिए गए हैं, जहां राष्ट्र के विध्वंसक देशभक्त बन जाते हैं और लोगों की निस्वार्थ सेवा करने वाले देशद्रोही.
भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा ने यूएपीए कानून की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसे कानून सामान्य न्याय की अवधारणा को बर्बाद कर देते हैं.
आनंद और गौतम या शोमा और सुधा का अर्थ है लगातार बहस. वह बहस जनतंत्र के शरीर में रक्त संचार की तरह है. उसके रुकने का मतलब जनतंत्र का मरना है. फिर क्या हम और आप ज़िंदा रह जाते हैं?
सीजेआई एसए बोबडे को लिखे पत्र में इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमें इस बात की पीड़ा है कि हमारी अदालतों ने उन लोगों को निरंतर कारावास की सज़ा दी है, जिन्होंने बे-आवाज़ और हाशिये के लोगों के अधिकारों की रक्षा करने की हिम्मत की है.
सुप्रीम कोर्ट में नागरिक अधिकारी कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और आनंद तेलतुम्बड़े के वकील की ओर से कहा गया है कि दोनों पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं और उन्हें समर्पण करने के लिए अधिक समय की ज़रूरत है.
भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में सप्रीम कोर्ट की पीठ ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बड़े को तीन सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा है. दोनों को अपने पासपोर्ट तत्काल जमा कराने का भी निर्देश दिया गया है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा कि एल्गार और भीमा-कोरेगांव दो अलग विषय हैं. मेरे दलित भाइयों से जुड़ा मुद्दा भीमा-कोरेगांव का है और इसे मैं केंद्र को नहीं सौंपूंगा. मैं यह साफ कर देना चाहता हूं कि दलित भाइयों के साथ कोई अन्याय नहीं होगा.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद के कथित माओवादी संपर्क मामले में नागरिक अधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत की अवधि चार सप्ताह के लिए बढ़ा दी ताकि वे सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकें.