भाजपा शासित राज्यों में गोशालाओं में बदइंतज़ामी के चलते लगातार गायों की मौत हो रही है, लेकिन वे गाय के प्रति अपना ‘प्रेम’ उजागर करने में नित नये क़दम बढ़ाते रहते हैं.
महागुन सोसाइटी में हुई मज़दूर वर्ग की हिंसा तो नज़र आती है मगर इस सोसाइटी में रहने वाले संपन्न तबके द्वारा इन मज़दूरों पर की जा रही हिंसा किसी को दिखाई नहीं पड़ती.
प्रधानमंत्री ने कहा, गोरक्षा को कुछ असामाजिक तत्वों ने अराजकता फैलाने का माध्यम बना लिया है. देश की छवि पर भी इसका असर पड़ रहा है.
नोएडा सेक्टर 78 के महागुन अपार्टमेंट की घटना. परिजनों का आरोप है कि महिला को मकान मालकिन ने रातभर बंदी बनाकर रखा.
ममता न तो अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के आरोपों-अफवाहों पर लगाम कस पा रही हैं और न ही बहुसंख्यक उग्रता पर. आखिर सांप्रदायिकता को रोकने में बहुसंख्यक वोटों की सरकारों की तरह अल्पसंख्यक वोटों की सरकारें भी क्यों लाचार नज़र आती हैं?
जिस पैगम्बर के व्यवहार ने उनपर रोज़ कूड़ा फेंकने वाली औरत को बदलने पर मजबूर कर दिया, उन्हीं के कुछ अनुयायी एक फेसबुक पोस्ट मात्र पर हिंसक हो जाते हैं.
अपने हिंदू दोस्तों को ईद की दावत दी. सबने चिकन-मटन खाने से मना कर दिया. ये वही दोस्त थे जो इसके पहले सिर्फ़ इस शर्त पर आते थे कि चिकन-मटन खाने को मिलेगा.
‘एक ऐसी सरकार जो ‘सबका विकास’ के वादे पर सत्ता में आई थी, अब समाज के सबसे कमज़ोर लोगों को सुरक्षा देने को लेकर अनिच्छुक नज़र आ रही है.’
तकनीक के अधकचरे इस्तेमाल ने दरअसल एक अधकचरी पढ़ी-लिखी हिंसा को भी जन्म दिया है. इस हिंसा का शिकार हर वैसा वर्ग और व्यक्ति हो रहा है, जो एक मदमाती सत्ता से सवाल पूछता है.
हरियाणा के खंदावली गांव के किशोर जुनैद की ईद के दो दिन पहले चलती ट्रेन में पीटकर हत्या कर दी गई थी, जिसके विरोध में गांव वालों ने ईद नहीं मनाई.
चंद्रशेखर ने कहा, 'पुलिस ने भीम आर्मी पर नक्सली होने, नक्सलियों से धन लेने, आतंकवादियों से संबंध होने का आरोप लगाया. मैं कहता हूं कि अगर ऐसा है तो वे सबूत दें'
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार ने जयपुर में आयोजित संघ के एक प्रशिक्षण कार्यक्रम में गाय, गोमांस और अन्य मुद्दों पर बयान दिए.
नरेंद्र मोदी सरकार के पिछले तीन साल के राज में ऐसा बहुत कुछ हुआ जिसने मुसलमानों में असुरक्षा और भय की तीव्र भावना पैदा करने का काम किया.
वह कैसी सोच है जिसे पूरी दुनिया में केवल एक गाय ही रक्षा करने योग्य लगती है. सड़क के किनारे सोया थका-हारा मज़दूर नहीं, पुल के नीचे मिट्टी में पलते दुर्बल बच्चे नहीं, अस्पतालों के बाहर बैठे रोगी नहीं.
मुसलमानों के एक तबके में भाजपा को लेकर स्वीकार्यता बढ़ी है, लेकिन भाजपा की तरफ़ से ऐसा कुछ भी देखने को नहीं मिला है कि मुसलमानों के लिए कुछ किया हो.