वामपंथी दल आज़ादी के बाद विकसित अपनी वह छवि नहीं बचा पाए हैं, जिसमें उन्हें सत्ता का सबसे प्रतिबद्ध वैचारिक प्रतिपक्ष माना जाता था. वे परिस्थितियों के नाम पर कभी इस तो कभी उस बड़ी पार्टी की पालकी के कहार की भूमिका में दिखने लगे.
केंद्र की मोदी सरकार में सत्ता का जो स्वरूप दिखाई दे रहा है, कुछ वैसा ही स्वरूप माकपा शासित राज्यों में दिखाई देता था.