बिहार: ‘सरकार रूपया का मदद देहलस लेकिन ओसे बेटी थोड़े न लौट के आई’

मुज़फ़्फ़रपुर और आसपास के क्षेत्रों में अमूमन अगस्त-सितंबर में चमकी बुखार का भीषण प्रकोप देखने को मिलता है, पर इस बार मामले भी कम आए और मौतें भी कम हुईं. हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि बावजूद इसके बिहार को चमकी बुखार से निपटने के लिए अभी और तैयारी करनी होगी.

मीडिया बोल: मुज़फ़्फ़रपुर की मौतें, सत्ता की बेफ़िक्री और मीडिया का मिजाज़

बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर में चमकी बुखार से हो रही बच्चों की मौतों पर सरकार की बेफ़िक्री और मेनस्ट्रीम मीडिया की स्तरहीन पत्रकारिता पर जेएनयू के प्रोफेसर डॉ. विकास बाजपेयी और वरिष्ठ पत्रकार बिराज स्वैन से चर्चा कर रहें हैं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश.

चमकी बुखार: अगर नीतीश सरकार ने समय रहते तैयारी की होती, तो बच्चों की जानें बच सकती थीं

ग्राउंड रिपोर्ट: मुज़फ़्फ़रपुर और आस-पास के जिलों में चमकी बुखार का प्रकोप अप्रैल से शुरू होता है और जून के महीने तक मानसून आने तक बना रहता है. इस लिहाज़ से लोगों को जागरूक करने के लिए और अन्य आवश्यक तैयारियां जनवरी माह से शुरू हो जानी चाहिए थीं लेकिन गांवों में जाने पर जागरूकता अभियान के कोई चिह्न दिखाई नहीं देते.