'ग़रीबी हटाओ' के नारे के साथ उस साल इंदिरा की जीत ने कांग्रेस को नई ऊर्जा से भर दिया था. 1971 एक ऐतिहासिक बिंदु था क्योंकि इंदिरा गांधी ने लक्ष्य और दिशा का एक बोध जगाकर सरकार की संस्था में नागरिकों के विश्वास की बहाली का काम किया.
भारतीय इतिहास में 1971 एक ऐसे साल के तौर पर दर्ज है, जब मुश्किल यथार्थ के बीच भी भारत ने अपने बारे में अच्छा महसूस किया. यह सिर्फ उम्मीद का साल नहीं था, भारत में छिपे जीत के जज़्बे की आत्मपहचान का वर्ष भी था.
इस अपराध की साज़िश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.
पिछले पांच साल से देश को कांग्रेसमुक्त करने का आह्वान भाजपा नेताओं के द्वारा किया जाता रहा है, लेकिन न सिर्फ यह कि वह अप्रासंगिक नहीं हुई, बल्कि इस चुनाव में भी भाजपा के लिए वही संदर्भ बिंदु बनी रही. जनतंत्र की सबसे अधिक दुहाई देनेवाले समाजवादियों को जनसंघ या भाजपा के साथ कभी वैचारिक या नैतिक संकट हुआ हो, इसका प्रमाण नहीं मिलता.
चुनावी बातें: 1977 के लोकसभा चुनाव में जीत के बाद जनसंघ के सांसद चाहते थे कि बाबू जगजीवन राम के रूप में पहला दलित प्रधानमंत्री देकर देश को नया संदेश दिया जाए, लेकिन राजनीतिक जटिलताओं के चलते ऐसा हो न सका.
1957 के लोकसभा चुनाव में मथुरा से कांग्रेस और जनसंघ के उम्मीदवारों को पछाड़ते हुए स्वतंत्र रूप से लड़े राजा महेंद्र प्रताप सिंह विजयी हुए थे. अटल बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश में लखनऊ, बलरामपुर और मथुरा सीट से चुनाव लड़े थे और बलरामपुर से जीतकर लोकसभा पहुंचे थे.
चुनावी बातें: नेताओं की बदज़ुबानी के लिए उन्हें सबक सिखाने में मतदाताओं की उदासीनता भी ज़िम्मेदार है, लेकिन एक वो समय था जब 1962 में उत्तर प्रदेश की बलरामपुर लोकसभा सीट के मतदाताओं ने अटल बिहारी वाजपेयी जैसे वाकपटु नेता की अभद्र टिप्पणी के चलते उनकी जीती हुई बाज़ी पलटकर हार का मज़ा चखा दिया था.
आज की मास्टर क्लास में अपूर्वानंद उन लोगों के बारे में चर्चा कर रहे हैं जिन्हें गांधी हत्या को गांधी वध कहने में संकोच नहीं होता.
कांग्रेस नेता हरीश रावत ने कहा कि भाजपा बेईमान लोगों की पार्टी है जिन्हें न तो नीतियों की परवाह है और न ही मर्यादा की, वे मर्यादा पुरुषोत्तम राम के भक्त कैसे हो सकते हैं.
अगला आदेश तीन जजों की एक उपयुक्त पीठ द्वारा पारित किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की समयबद्ध सुनवाई की मांग वाली याचिका भी खारिज कर दी.
फैज़ाबाद से निकलने वाले हिन्दी दैनिक जनमोर्चा के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह की किताब ‘अयोध्या- रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद का सच’ बताती है कि अयोध्या विवाद में सारी पेचीदगियां राजनीति द्वारा अपनी स्वार्थ साधना के लिए इस मुद्दे के बेजा इस्तेमाल से पैदा हुई हैं.
राज्यसभा सांसद और शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादक संजय राउत ने कहा कि क्या वाजपेयी का निधन 16 अगस्त को ही हुआ था या उस दिन उनके निधन की घोषणा की गई जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का स्वतंत्रता दिवस का भाषण बाधित न हो.
जन गण मन की बात की 289वीं कड़ी में विनोद दुआ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के राजनीतिक जीवन पर चर्चा कर रहे हैं.
हाल ही में कांग्रेस नेता अशोक गहलोत के वायरल हुए वीडियो में किया गया दावा कितना सही है?
पूरब और पश्चिम के गाने को कर्नाटक के संदर्भ में समझते हुए दिखता है कि प्रणय निवेदन हेतु मनोज कुमार के हाथों में एक फाइल है, जिसमें विधायकों के दस्तख़त की कल्पना सहज ही की जा सकती है.