अंग्रेज़ गांधी को ‘आंदोलनजीवी’ बताकर मज़ाक उड़ाते, तो क्या हम आज़ाद होते

काश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बातें बनाने के बजाय समझते कि आंदोलन तो होते ही सत्ताओं की निरंकुशता पर लगाम लगाने के लिए हैं और उन्हें ख़त्म करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि ख़ुद पर उनका अंकुश हमेशा महसूस किया जाता रहे.

1974 में नरेंद्र मोदी ने आंदोलनजीवियों को सरकार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतारा था…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को राज्यसभा में कहा कि कुछ समय से देश में एक नई जमात पैदा हुई है, आंदोलनजीवी. वकीलों, छात्रों, मज़दूरों के आंदोलन में नज़र आएंगे, कभी पर्दे के पीछे, कभी आगे. ये पूरी टोली है जो आंदोलन के बिना जी नहीं सकते और आंदोलन से जीने के लिए रास्ते ढूंढते रहते हैं.

क्या स्मार्ट सिटी का सपना देख रहे भारत में लोकनायक के गांव की सुध लेना वाला कोई नहीं?

लोकनायक जयप्रकाश नारायण का पैतृक गांव सिताब दियारा देश के विभिन्न गांवों की बदहाली और सरकारों के उपेक्षापूर्ण रवैये की बड़ी मिसाल है. आदर्श ग्राम योजना के तहत भाजपा सांसद राजीव प्रताप रूडी द्वारा इसे गोद लेने के बावजूद इसकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.

सरकार चाहती है देश का युवा समझे कि प्रतिरोध करना राष्ट्रद्रोह और ग़ैर-लोकतांत्रिक है

हमारी राष्ट्रीय राजनीति और भाजपा कांग्रेस विरोधी आंदोलन यानी प्रतिरोध का ही नतीजा हैं, लेकिन इसके बारे में कोई बात नहीं करता. ख़ुद भाजपा भी नहीं. वे चाहते हैं कि हम इमरजेंसी के बारे में जानें लेकिन उतना, जितने से उन्हें नुकसान न पहुंचे.

…द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मरद गया नसबंदी में

चुनावी नारों की भारत की राजनीति में बड़ी भूमिका रही है. जुमलेबाजी के इस दौर में एक निगाह डालते हैं उन नारों पर जो नेता से लेकर जनता के बीच काफी चर्चित रहे.