पिछली जनगणना के अनुसार देश में 20 लाख से ज़्यादा महिलाएं अपने पति से अलग रहती हैं, जिन्हें छोड़ा गया है. ऐसा क़ानून आना चाहिए जिससे न केवल मुस्लिम बल्कि इस तरह पत्नियों को छोड़ देने वाले सभी पतियों को सज़ा मिल सके.
पतियों द्वारा एक़तरफा तरीके से छोड़ी गई हर औरत की ज़िंदगी दयनीय है. पिछली जनगणना के अनुसार भारत में कुल 23 लाख परित्यक्त औरतें हैं, जो तलाक़शुदा औरतों की संख्या के दोगुने से ज़्यादा है.
विपक्ष ने कहा, तलाक़ एक दीवानी मामला, यह फौज़दारी अपराध नहीं हो सकता. इसे आपराधिक जुर्म बनाने का उद्देश्य महिलाओं का संरक्षण नहीं, मुस्लिमों को प्रताड़ित करना और राजनीतिक लाभ लेना है.
शीतकालीन सत्र की 13 बैठकों के दौरान 41 घंटे से अधिक समय तक उच्च सदन की कार्यवाही चली तो हंगामे के कारण कामकाज के 34 घंटों का नुकसान हुआ.
पितृसत्ता का प्रभाव देश के ज़्यादातर नागरिकों पर ही नहीं, बल्कि सरकार, प्रशासन और न्यायपालिका जैसे संस्थान भी इसके असर से बचे हुए नहीं हैं, जिन पर लैंगिक न्याय स्थापित कराने का दायित्व है.
'गाय, ट्रिपल तलाक, सेना, कश्मीर और पाकिस्तान को ज़ेरे-बहस लाकर सरकार अपनी नाकामी को छिपाने की कोशिश कर रही है. सरकार के सभी वादे झूठे साबित हुए हैं. आपको अच्छे दिन के बजाय बुरे दिन दे दिए गए हैं.'
'ट्रिपल तलाक़ इस्लाम का मूल तत्व नहीं है. कोई भी क़ानून जो अमानवीय हो, इस्लामिक नहीं हो सकता.'
जन गण मन की बात की 40वीं कड़ी में विनोद दुआ देश में पतियों द्वारा छोड़ दी गईं महिलाओं और प्रदूषण पर किए गए एक वैश्विक सर्वे पर चर्चा कर रहे हैं.