बैंक क़र्ज़ की हेराफेरी के मामले मे ‘न्यू इंडिया’ में कुछ नहीं बदला

चाहे हीरा-व्यापार का मामला हो या बुनियादी ढांचे की कुछ बड़ी परियोजनाएं, काम करने का तरीका एक ही रहता है- परियोजना की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना और बैंकों व करदाताओं का ज़्यादा से ज़्यादा पैसा ऐंठना.

आर्थिक सुधारों के बाद से उद्योग घरानों ने ही बैंकों को लूटा है

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को आर्थिक संकट में उद्योगपतियों ने ही डाला है और कमाल की बात यह है कि निजीकरण के तहत इन बैंकों को एक तरह से उनके ही क़ब्ज़े में देने की बातें हो रही हैं.

सब कुछ बदलने का वादा करके आए मोदी ने भ्रष्ट आर्थिक नीतियों को ही आगे बढ़ाया

आज जब दुनिया में नाना प्रकार के खोट उजागर होने के बाद भूमंडलीकरण की ख़राब ​नीतियों पर पुनर्विचार किया जा रहा है, हमारे यहां उन्हीं को गले लगाए रखकर सौ-सौ जूते खाने और तमाशा देखने पर ज़ोर है.

प्रधानमंत्री जी, आम लोगों की मेहनत की कमाई से कॉरपोरेट लूट की भरपाई कब तक होती रहेगी?

पिछली सरकारों में व्यवस्था को अपने फ़ायदे के लिए तोड़ने-मरोड़ने वाले पूंजीपति मोदी सरकार में भी फल-फूल रहे हैं.

आर्थिक सुस्ती के बाद भी अरबपतियों की संपत्ति में 26 प्रतिशत का इज़ाफ़ा

फोर्ब्स ने जारी की अमीरों की सूची, मुकेश अंबानी लगातार दसवें साल सबसे अमीर, फोर्ब्स ने कहा आर्थिक प्रयोगों का अरबपतियों पर नाममात्र का असर.

आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया अधूरी, नई सोच की ज़रूरत: मनमोहन सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक विश्लेषण को येचुरी ने बताया जुमलानॉमिक्स. ग़ुलाम नबी आज़ाद बोले, मोदी टीवी के प्रधानमंत्री, हमारे प्रधानमंत्री ज़मीनी थे.

आदिवासियों के लिए इस आज़ादी का क्या मतलब है?

आदिवासी तो दुनिया बनने से लेकर आज़ाद ही हैं. बस्तर के इन जंगलों में तो अंग्रेेज़ भी नहीं आए. इसलिए इन आदिवासियों ने अपनी ज़िंदगी में न ग़ुलामी देखी है, न ग़ुलामी के बारे में सुना है.

‘फ़सल बीमा के लिए निजी कंपनियों को दिए 17,184 करोड़, किसानों को मिला सिर्फ़ 6808 करोड़’

कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने मोदी सरकार पर लगाया पूंजीपतियों को भारी मुनाफ़ा पहुंचाने का आरोप, बोले- मोदी ने अपने पूंजीपति दोस्तों का 1,54,000 करोड़ माफ़ किया और देश में 35 किसान रोज़ आत्महत्या कर रहे हैं.