भारत जैसे समृद्ध देश में जहां सभी धर्मों के लोग सम्मान से रहते हैं और आपके द्वारा प्रेरित हमारा संविधान सबको बराबरी का हक़ देता हैं. यहां धर्म के आधार पर शरणार्थियों में विभेद हो रहा है और नागरिकता प्रदान करने में संकीर्ण दायरे से धार्मिक आधार को देखा जाने लगा है बापू! इस नए क़ानून के बाद आपके सहयात्रियों द्वारा गढ़ी गई संविधान की प्रस्तावना बेगानी सी लग रही है.
जयंती विशेष: जिस दौर में गांधी को ‘चतुर बनिया’ की उपाधि से नवाज़ा जाए, उस दौर में ये लाज़िम हो जाता है कि उनकी कही बातों को फिर समझने की कोशिश की जाए और उससे जो हासिल हो, वो सबके साथ बांटा जाए.
आज हमारे सामने ऐसे नेता हैं जो केवल तीन काम करते हैं: वे भाषण देते हैं, उसके बाद भाषण देते हैं और फिर भाषण देते हैं. सार्वजनिक राजनीति से करनी और कथनी में केवल कथनी बची है. गांधी उस कथनी को करनी में तब्दील करने के लिए ज़रूरी हैं.
नेमेथ लास्लो की अचूक नैतिकता गांधी के संदेश के मर्म को पकड़ लेती है, 'सत्याग्रह-सत्य में निष्ठा-का अर्थ है राजनीति का संचालन स्वार्थ या हित साधन से नहीं, बल्कि सत्य से प्रेम के द्वारा हो.'
महात्मा गांधी से मिलने के बाद चार्ली चैप्लिन के शब्द थे, ‘अंततः जब वे (गांधी) पहुंचे और अपने पहनावे की तहें संभालते हुए टैक्सी से उतरे तो स्वागत में जयकारे गूंज उठे. उस छोटी तंग गरीब बस्ती में क्या अजब दृश्य था जब एक बाहरी शख़्स एक छोटे-से घर में जन-समुदाय के जयघोष के बीच दाख़िल हो रहा था.’
आरएसएस अगर आज़ादी की लड़ाई के बारे में बात करे तो वो क्या बताएगा? अगर वो सावरकर के बारे में बताएगा तो अंग्रेजों को लिखे गए सावरकर के माफ़ीनामे सामने आ जाते हैं.
'नेता साबरमती के संत गीत की आलोचना कर बापू और अहिंसक आंदोलन के प्रति अपनी नफ़रत दिखा रहे हैं. अगर दिक्कत है तो इस गीत को प्रतिबंधित क्यों नहीं करा देते.'
अब यह हम पर निर्भर है कि क्या हम ये होने देंगे या अपने दौर के लिए एक नया गांधी रचेंगे.
गांधी गाय को माता मानते हुए भी उसकी रक्षा के लिए इंसान को मारने से इनकार करते हैं. उनके ही देश में गोरक्षकों ने पीट-पीट कर मारने का आंदोलन चला रखा है.
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और उनके विचार पर इतिहासकार और ‘गांधी एक असंभव संभावना’ के लेखक सुधीर चंद्र से अजय आशीर्वाद की बातचीत.