क्रांति के लिए ख़ूनी लड़ाइयां ज़रूरी नहीं, क्रांति यानी अन्याय आधारित व्यवस्था में आमूल बदलाव

विशेष: साल 1929 में 8 अप्रैल को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केंद्रीय असेंबली में बम फेंका था. बम फेंकने के बाद उन्होंने गिरफ़्तारी दी और उनके ख़िलाफ़ मुक़दमा चला. 6 जून, 1929 को दिल्ली के सेशन जज लियोनॉर्ड मिडिल्टन की अदालत में दिया गया भगत सिंह का ऐतिहासिक बयान...

भगत सिंह की हंसी के वारिस

भगत सिंह की पवित्र भूमि, उनका स्वर्ग भारत आज उन्हीं की परिभाषा के मुताबिक नर्क बना दिया गया है. उसे नर्क बना देने वाली ताकतें ही भारत की मालिक बन बैठी हैं. भगत के धर्म को मानने वाले क़ैद में हैं, उन्हीं की तरह. और भगत सिंह की तरह ही उनसे उनकी हंसी छीनी नहीं जा सकी है.

इस युवा दिवस पर किन युवाओं को याद करें…

यह युवा दिवस किनके नाम है? महेश राउत के, जिन्होंने महाराष्ट्र के आदिवासियों के लिए अपनी युवता समर्पित की और आज दो साल से जेल में हैं या अन्य जेलों में बंद नताशा, देवांगना, इशरत, मीरान, आसिफ़, शरजील, ख़ालिद, उमर जैसों के नाम, जिन्होंने समानता के उसूल के लिए अपनी जवानी गर्क करने से गुरेज़ नहीं किया?

भगत सिंह, दिनकर और पाश: सितंबर के तीन जांबाज़

वीडियो: सितंबर शहीद भगत सिंह, कवि रामधारी सिंह दिनकर और कवि अवतार सिंह संधू ‘पाश’ के जन्म का महीना है. इन तीनों शख़्सियतों को याद कर रही हैं द वायर की दामि​नी यादव.

बटुकेश्वर दत्त: जिन्हें इस मृत्युपूजक देश ने भुला दिया क्योंकि वे आज़ादी के बाद भी ज़िंदा रहे

बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारी को आज़ादी के बाद ज़िंदगी की गाड़ी खींचने के लिए कभी एक सिगरेट कंपनी का एजेंट बनकर भटकना पड़ता है तो कभी डबलरोटी बनाने का काम करना पड़ता है.

जेएनयू की एक सड़क का नाम ‘सावरकर मार्ग’ किया गया, छात्र संघ ने बताया शर्मनाक

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ की अध्यक्ष ओईशी घोष ने कहा कि यह जेएनयू की विरासत के लिए शर्मनाक है कि इस विश्वविद्यालय में इस आदमी का नाम डाल दिया गया है.

भगत सिंह को बचाने का गांधी ने कोई प्रयास नहीं किया था: प्रधान आर्थिक सलाहकार

गुजरात यूनिवर्सिटी में 'द रिवाल्यूशनरीज: ए रिटेलिंग ऑफ इंडियाज हिस्ट्री' पर भाषण देते हुए भारत सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल ने कहा कि अगर प्रथम विश्व युद्ध के लिए वे भारतीय सैनिकों को ब्रिटिश सेना में भेजने को तैयार थे तब उन्हें उसी तरह का काम करने को लेकर भगत सिंह से दिक्कत क्यों थी?

मैं मोहनदास करमचंद गांधी अब राष्ट्रपिता नहीं कहलाना चाहता…

आज राष्ट्र को वास्तविक पिता की ज़रूरत है, मेरे जैसे सिर्फ नाम के पिता से काम नहीं चलने वाला है. आज बड़े-बड़े फ़ैसले हो रहे हैं. छप्पन इंच की छाती दिखानी पड़ रही है. ऐसा पिता जो पब्लिक को कभी थप्पड़ दिखाए तो कभी लॉलीपॉप, पर अपने तय किए रास्ते पर ही राष्ट्र को ठेलता जाए. मैं ऐसे राष्ट्रपिता की ज़रूरत कैसे पूरी कर सकता हूं?

भगत सिंह को गांधी या नेहरू का विकल्प बताना भगत सिंह के साथ अन्याय करना है

ऐसा लगता है कि भगत सिंह के प्रति श्रद्धा वास्तव में गांधी-नेहरू से घृणा का दूसरा नाम है. जिनके वैचारिक पूर्वज ख़ुद को बचाते हुए अपने अनुयाइयों को भगत सिंह से दूर रहने की सलाह देते हुए दिन गुज़ारते रहे, उन्होंने अपनी कायर हिंसा को उचित ठहराने के लिए आज भगत सिंह को एक ढाल बना लिया है.

दिल्ली विश्वविद्यालय में एबीवीपी ने बोस और भगत सिंह के साथ लगाई सावरकर की मूर्ति, विवाद

दिल्ली विश्वविद्यालय के अन्य छात्र संगठन एनएसयूआई और आइसा ने विरोध करते हुए कहा है कि सावरकर को नेताजी सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह के समकक्ष नहीं रखा जा सकता. उन्होंने 24 घंटों के भीतर मूर्तियां नहीं हटाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू करने की धमकी दी.

मुस्लिम औरतों को धर्म के पिंजरे में सुरक्षित रहने की गारंटी कौन दे रहा है?

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इस्लामिक यूथ फेडरेशन ने एक तस्वीर जारी की है, जिसमें औरतों को इस्लाम के पिंजरे में क़ैद पंछी की शक्ल दी गई. बताया गया कि ये पिंजरा ही वो महफ़ूज़ जगह है, जहां औरतें न सिर्फ़ नेकियां कमा सकती हैं बल्कि तमाम 'ज़हरीली' विचारधाराओं से बची रह सकती हैं.

अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ाया, अब हम उनके विचारों की हत्या कर रहे हैं: भगत सिंह के भतीजे

भगत सिंह के भतीजे मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) श्योनान सिंह ने कहा कि क्रांति वह नहीं है कि आप किसी पर दाढ़ी रखने, मस्जिद जाने या राम मंदिर बनाने के लिए दबाव डालें. क्रांति एक विचार होती है जिससे अधिकतर लोग सहमत होते हैं और एक ऐसी व्यवस्था को बदलने का प्रयास करते हैं जो काम नहीं कर रही होती है. अपनी पीठ थपथपाना देशभक्ति नहीं है.

पाकिस्तान ने शादमान चौक का नाम बदलकर भगत सिंह चौक किया

शादमान चौक पर 23 मार्च 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ाया था. उस दौरान यह चौक एक जेल का हिस्सा था.

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