साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से 1993 के बाद से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से काम पर रखे गए सिर पर मैला ढोने वाले लोगों की संख्या के बारे में स्थिति रिपोर्ट दायर करने को कहा था. हालांकि याचिकाकर्ता ने कहा कि 40 से अधिक राज्यों में से केवल 13 ने ही हलफ़नामा दाख़िल किया है.
राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में सामाजिक न्याय व अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास अठावले ने कहा कि पिछले पांच सालों में नालों और टैंकों की सफाई के दौरान 340 लोगों की जान गई है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन एवं अन्य द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन में कहा गया है कि भारत में सफाईकर्मियों की आर्थिक स्थिति गंभीर है और यह जातिगत व्यवस्था से संबंधित रोजगार है. इसीलिए हाथ से मैला सफाई की प्रथा अब भी जारी है.
इन सफाईकर्मियों को मास्क, सुरक्षा बेल्ट, दस्ताने और जूते मुहैया नहीं कराए गए थे. वहीं पुलिस ने इस मामले में 'मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम' के तहत मामला दर्ज करने से मना कर दिया है.
देश में मैला ढोने वाले सफाई कर्मचारियों की स्थिति पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के समन्वयक मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन का नज़रिया.
वीडियो: मैला ढोने के कार्य से जुड़े श्रमिकों की वर्तमान स्थिति और पुनर्वास पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के समन्वयक और मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन से सृष्टि श्रीवास्तव की बातचीत.
संसद की एक समिति ने केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को फटकार लगाते हुए कहा है कि मैला ढोने के काम में लगे लोगों के पुनर्वास हेतु स्व-रोजगार योजना का बजट आवंटन बढ़ाया जाए.
मैला ढोने के कार्य से जुड़े श्रमिकों के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना के पहले के वर्षों में 100 करोड़ रुपए के आसपास आवंटित किया गया था, जबकि 2014-15 और 2015-16 में इस योजना पर कोई भी व्यय नहीं हुआ.