इस्मत चुग़ताई: परंपराओं से सवाल करने वाली ‘बोल्ड’ लेखक

इस्मत कहा करती थीं, 'मैं रशीद जहां के किसी भी बात को बेझिझक, खुले अंदाज़ में बोलने की नकल करना चाहती थी. वो कहती थीं कि तुम जैसा भी अनुभव करो, उसके लिए शर्मिंदगी महसूस करने की ज़रूरत नहीं है, और उस अनुभव को ज़ाहिर करने में तो और भी नहीं है क्योंकि हमारे दिल हमारे होंठों से ज़्यादा पाक़ हैं...'

नंदिता दास की ‘मंटो’ में मैं मंटो को तलाश करता रहा

मंटो फिल्म में मुझे जो मिला वो एक फिल्म निर्देशक की आधी-अधूरी ‘रिसर्च’ थी, वर्षों से सोशल मीडिया की खूंटी पर टंगे हुए मंटो के चीथड़े थे और इन सबसे कहीं ज़्यादा स्त्रीवाद बल्कि ‘फेमिनिज़्म’ का इश्तिहार था.