वकील अश्विनी उपाध्याय ने एक याचिका में मांग की है कि विधि आयोग को ‘सांविधिक संस्था’ घोषित कर एक महीने के भीतर इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति की जाए. उपाध्याय का कहना है कि सितंबर 2018 से विधि आयोग नेतृत्वविहीन है और काम नहीं कर रहा है.
बड़ी संख्या में नागरिकों, विशेष रूप से हाशिये के समुदायों से आने वालों को बेक़सूर होने के बावजूद एक लंबा समय जेल में बिताना पड़ा है. फिर भी कोई प्रमुख राजनीतिक दल इस मुद्दे को उठाना नहीं चाहता.
यूनीफॉर्म सिविल कोड के नाम पर चैनलों और अखबारों में कितनी बहस चलाई गई और मुसलमानों के प्रति नफ़रत का वट वृक्ष खड़ा किया जाता रहा. इस डिबेट में पहले भी कुछ नहीं था, अब भी कुछ नहीं है.
विधि आयोग ने विवाह, तलाक, गुजारा भत्ता से संबंधित कानूनों तथा महिलाओं और पुरुषों की विवाह योग्य उम्र में बदलाव के सुझाव दिए हैं.
आयोग ने कहा कि देशभक्ति का कोई एक पैमाना नहीं है. लोगों को अपने तरीके से देश के प्रति स्नेह प्रकट करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए.
विधि आयोग ने क्रिकेट समेत अन्य खेलों पर सट्टे को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर प्रणालियों के तहत नियमित कर देय गतिविधियों के रूप में अनुमति दी जाने की सिफ़ारिश की है.
याचिका में दी गई दलील, संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीने के अधिकार में यह भी शामिल है कि क़ैदी की सज़ा पर सम्मानजनक अमल हो ताकि मृत्यु कम पीड़ादायक हो.
विधि आयोग ने आतंकवाद के मामलों को छोड़कर अन्य सभी अपराधों के लिए फांसी की सज़ा ख़त्म करने की सिफारिश की है. राज्यसभा को बुधवार को यह जानकारी दी गई.