उत्तर प्रदेश: भदोही में 64 दिनों से आंदोलनरत सफ़ाईकर्मी, 12 साल में एक भी नियुक्ति नहीं हुई

साल 2008 में उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में सफ़ाईकर्मियों की भर्ती शुरू हुई थी, लेकिन भदोही ज़िले में चयन प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण प्रक्रिया रोक दी गई थी. अभ्यर्थियों द्वारा फ़िर इलाहाबाद हाईकोर्ट याचिका दायर की गई. जिसके बाद साल 2014 में शासन ने इस प्रक्रिया को निरस्त कर चयन पर रोक लगा दी थी.

पिछले 10 वर्ष में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 631 लोगों की मौत हुई: आरटीआई

सूचना के अधिकार कानून के तहत राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग ने बताया है कि पिछले 10 वर्षों में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान सबसे ज़्यादा मौत तमिलनाडु में हुई. इसके बाद उत्तर प्रदेश और फिर दिल्ली तथा कर्नाटक में मौते हुई हैं.

डीएलएफ कैपिटल ग्रीन्स: ‘उन्हें सीवर में जबरन उतारा गया, हादसे के बाद किसी ने ख़बर तक नहीं दी’

ग्राउंड रिपोर्ट: पश्चिम दिल्ली के मोती नगर इलाके में स्थित डीएलएफ कॉम्प्लेक्स में सीवेज टैंक साफ करते समय दम घुटने की वजह से पांच लोगों की मौत हो गई थी. मृतकों के परिजनों का आरोप है कि हाउसकीपिंग के लिए रखे गए कर्मचारियों को टैंकों की सफाई के लिए मजबूर किया गया था.

सीवर में श्रमिकों की मौत असल में सरकार और ठेकेदारों द्वारा की गई हत्याएं हैं: बेज़वाड़ा विल्सन

देश में मैला ढोने वाले सफाई कर्मचारियों की स्थिति पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के समन्वयक मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन का नज़रिया.

‘जब तक जातिवाद का सफाया नहीं होगा तब तक स्वच्छ भारत की बात भी कैसे हो सकती है’

वीडियो: मैला ढोने के कार्य से जुड़े श्रमिकों की वर्तमान स्थिति और पुनर्वास पर सफाई कर्मचारी आंदोलन के समन्वयक और मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन से सृष्टि श्रीवास्तव की बातचीत.

सफाईकर्मियों की मौत के लिए सरकारों में इच्छाशक्ति की कमी ज़िम्मेदार है: बेज़वाड़ा विल्सन

सफाई कर्मचारी आंदोलन के अध्ययन के मुताबिक, पिछले पांच वर्षों में 1470 सीवर सफाईकर्मियों की जान गई. इस दौरान दिल्ली में 74 सफाईकर्मियों की मौत सीवर साफ करते समय हुई.

क्यों कानून बनने के 24 साल बाद भी मैला ढोने की प्रथा समाप्त नहीं हुई?

मैला ढोने के कार्य से जुड़े श्रमिकों के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना के पहले के वर्षों में 100 करोड़ रुपए के आसपास आवंटित किया गया था, जबकि 2014-15 और 2015-16 में इस योजना पर कोई भी व्यय नहीं हुआ.