पुलिस प्रताड़ना के ख़िलाफ़ कोर्ट का आदेश, कहा- एलजीबीटी समुदाय को हाशिए पर नहीं छोड़ सकते

पुलिस प्रताड़ना के ख़िलाफ़ दो समलैंगिक महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर मद्रास हाईकोर्ट ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय के संबंधों के प्रति समाज में परिवर्तन की ज़रूरत है. असली समस्या क़ानूनी मान्यता की नहीं बल्कि सामाजिक स्वीकृति की है. हमारा मानना है कि सामाजिक स्तर पर बदलाव होने चाहिए.

केंद्र ने समलैंगिक शादी पर सुनवाई का किया विरोध, कहा- विवाह सर्टिफिकेट के बिना कोई मर नहीं रहा

समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई है. इससे पहले केंद्र सरकार ने अदालत में ऐसे विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि हमारा समाज, हमारा कानून और हमारे नैतिक मूल्य इसकी मंजूरी नहीं देते. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में अपने एक फैसले में समलैंगिक यौन संबंध को सहमति प्रदान की थी, लेकिन इसमें समलैंगिकों की शादी का ज़िक्र नहीं था.

केंद्र ने दिल्ली हाईकोर्ट से कहा- हमारा समाज समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देता

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि हमारे क़ानून, हमारी न्याय प्रणाली, हमारा समाज और हमारे मूल्य समलैंगिकों के बीच विवाह को मान्यता नहीं देते. हिंदू मैरिज एक्ट के तहत विवाह के लिए महिला और पुरुष होना जरूरी है.

विरोध के बावजूद राज्यसभा ने ट्रांसजेंडर विधेयक को मंज़ूरी दी

राज्यसभा में चर्चा के दौरान तृणमूल कांग्रेस, टीआरएस, कांग्रेस और बसपा समेत विभिन्न दलों के नेताओं ने ट्रांसजेंडर विधेयक को प्रवर समिति के समक्ष भेजने की मांग की, जिसे ख़ारिज कर दिया गया. बीते अगस्त महीने में संसद के पिछले सत्र के दौरान लोकसभा में इसे पारित किया जा चुका है.

खुद से अलग लोगों के ख़िलाफ़ जहर उगलने का माध्यम बन गई है स्वतंत्रता: जस्टिस चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि विडंबना यह है कि एक वैश्विक रूप से जुड़े समाज ने हमें उन लोगों के प्रति असहिष्णु बना दिया है, जो हमारे अनुरूप नहीं हैं. स्वतंत्रता उन लोगों पर जहर उगलने का एक माध्यम बन गई है, जो अलग तरह से सोचते हैं, बोलते हैं, खाते हैं, कपड़े पहनते हैं और विश्वास करते हैं.

ट्रांसजेंडर्स द्वारा भीख मांगने को अपराध घोषित करने वाला प्रावधान विधेयक से हटाया गया

ट्रांसजेंडर्स विधेयक से उस प्रावधान को भी हटा दिया गया है जिसके तहत ट्रांसजेंडर व्यक्ति को अपने समुदाय का होने की मान्यता प्राप्त करने के लिए जिला स्क्रीनिंग कमेटी के समक्ष पेश होना अनिवार्य था.

माओवादियों से संबंध के आरोप में गिरफ़्तार वकील सुधा भारद्वाज को मिला हार्वर्ड से सम्मान

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ़्तारी के सात महीने बाद सुधा भारद्वाज को हार्वर्ड लॉ स्कूल की एक पोर्ट्रेट एक्ज़िबिट में जगह मिली है. कॉलेज द्वारा यह सम्मान दुनिया भर से क़ानून के क्षेत्र में उल्लेखनीय काम करने वाली महिलाओं को दिया जाता है.

वीडियो: उर्दू साहित्य और समाज में समलैंगिकता का सवाल

विशेष: उर्दू साहित्य और समाज का समलैंगिकता को लेकर रवैया क्या हमेशा से ही तंग था? भारतीय समाज और इतिहास में समलैंगिकता को लेकर बनी वर्जनाओं (टैबू) के बारे में बता रही हैं यासमीन रशीदी.

मीडिया बोल, एपिसोड 66: सवर्ण भारत बंद, किसान-मज़दूर रैली और समलैंगिक आज़ादी का उल्लास

मीडिया बोल की 66वीं कड़ी में उर्मिलेश एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्णों द्वारा किए गए भारत बंद, दिल्ली में किसान और मज़दूर संगठनों की रैली और समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर लाने पर वरिष्ठ पत्रकार शैलेष और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रतन लाल से चर्चा कर रहे हैं.

धारा 377 पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से आरएसएस सहमत, लेकिन समलैंगिक विवाह का समर्थन नहीं

आरएसएस के प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने कहा कि समलैंगिक विवाह प्राकृतिक नहीं होते, इसलिए हम इस तरह के संबंध का समर्थन नहीं करते हैं.

जन गण मन की बात, एपिसोड 301: समलैंगिकता पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

जन गण मन की बात की 301वीं कड़ी में विनोद दुआ सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलैंगिकता को लेकर दिए गए ऐतिहासिक फैसले पर चर्चा कर रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को ठहराया गैर-आपराधिक, सहमति से समलैंगिक संबंध बनाना अपराध नहीं

शीर्ष अदालत ने कहा कि एलजीबीटी समुदाय को अन्य नागरिकों की तरह समान मानवीय और मौलिक अधिकार हैं. अदालतों को व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि गरिमा के साथ जीने के अधिकार को मौलिक अधिकार के तौर पर मान्यता दी गई है.

यदि कोई क़ानून मौलिक अधिकार का हनन करता है तो उसे निरस्त करना अदालत का कर्तव्य है: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 मामले में अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है. कोर्ट ने कहा अगर हमें लगता है कि कहीं मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है, तो ये मौलिक अधिकार अदालत को अधिकार देते हैं कि ऐसे क़ानून को निरस्त किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध मानने वाली धारा 377 के ख़िलाफ़ याचिका संविधान पीठ को सौंपी

आईपीसी की धारा 377 कहती है कि जो कोई भी किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौनाचार करता है तो इस अपराध के लिए उसे उम्रक़ैद की सज़ा होगी.