एक ऑनलाइन कार्यक्रम में नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि देश में कड़े सुधार नहीं ला सकते क्योंकि यहां ‘बहुत ज़्यादा लोकतंत्र’ है. उनके इस बयान से मुकरने के बाद कुछ मीडिया संस्थानों ने इस बारे में प्रकाशित की गई ख़बर हटा ली, हालांकि सामने आए कुछ वीडियो में वे ऐसा कहते नज़र आ रहे हैं.
मीडिया मालिक अख़बारों और न्यूज़ चैनलों को सुधारने के लिए कुछ करें या न करें, लेकिन यह तो तय है कि जब तक हर रोज़, हर न्यूज़रूम में प्रतिरोध की आवाज़ें मौजूद रहेंगी, तब तक भारतीय पत्रकारिता बनी रहेगी.
समिति के सदस्य और आवास मंत्री ने निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में अगर संभाजी के ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज है तो यह बड़ा मुद्दा नहीं, क्योंकि मैं भी कई सारे मामलों का सामना कर रहा हूं.
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा कि भारत को अपनी मुस्लिम आबादी का ध्यान रखना चाहिए जो ख़ुद को इस देश से जुड़ा हुआ और भारतीय मानते हैं.
कई मीडिया संस्थानों ने अमित शाह की संपत्ति में 300 फीसदी की बढ़ोत्तरी और स्मृति ईरानी की डिग्री से जुड़ी ख़बर छापी थी, जिसे बिना कोई वजह बताए हटा लिया गया.
अगर संपादक मंत्री से कहकर किसी नियुक्ति में कोई बदलाव करवा सकते हैं, तो क्या इसके एवज में मंत्रियों को अख़बारों की संपादकीय नीति प्रभावित करने की क्षमता मिलती है?