महाराष्ट्र: आंबेडकर जयंती मनाने की अनुमति लाने वाले युवक की ‘उच्च’ जाति के लोगों ने हत्या की

महाराष्ट्र के नांदेड़ ज़िले के बोंदर हवेली गांव में रहने वाले आंबेडकरवादी युवक अक्षय भालेराव ने गांव में बीते 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती मनाने के लिए ग्रामीणों को पुलिस से अनुमति दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी, जिससे गांव का बहुसंख्यक मराठा समुदाय उनसे चिढ़ा हुआ था.

महाराष्ट्र: नांदेड़ में कथित तौर पर आंबेडकर जयंती मनाने के लिए दलित युवक की हत्या

वीडियो: महाराष्ट्र के नांदेड़ ज़िले में कथित तौर पर डॉ. बीआर आंबेडकर की जयंती मनाने के लिए एक 24 वर्षीय दलित युवक की हत्या कर दी गई. घटना दो दिन पहले ज़िले के बोंदर हवेली गांव में हुई. इस संबंध में 7 युवकों को गिरफ़्तार किया गया है.

असली देशद्रोही वे हैं जो सत्ता का दुरुपयोग कर भारतीयों को आपस में बांटते हैं: सोनिया गांधी

संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक लेख में कहा कि सत्तारूढ़ दल संवैधानिक संस्थानों का दुरुपयोग कर रहा है, उन्हें नष्ट कर रहा है और स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय की इनकी नींव को कमज़ोर कर रहा है.

बाबासाहेब की मूर्तियों से मोह और विचारों से द्रोह का सिलसिला कहां ले जाएगा?

आज बाबासाहेब की शिक्षा, संदेश व विचारों के बजाय मूर्तियां अहम हो चली हैं. ये मूर्तियां चीख सकतीं तो उन पर तो ज़रूर चीखतीं, जो बाबासाहेब की जयंती व निर्वाण दिवस पर साल में दो दिन उन पर फूलमाला अर्पित कर उनकी विरासत के प्रति अपने कर्तव्यों की इतिश्री मान लेते हैं.

ओडिशा: आंबेडकर जयंती रैली पर हमला करने वाले बजरंग दल के कार्यकर्ता अब तक गिरफ़्तार नहीं

ओडिशा के बरगढ़ क्षेत्र में 14 अप्रैल को आंबेडकर जयंती वाले दिन भीम आर्मी के नेतृत्व में एक बाइक रैली का आयोजन हुआ था. आरोप है इस रैली पर बजरंग दल के 40-50 कार्यकर्ताओं ने लाठी-डंडों और चाकुओं से हमला कर दिया था, जिसमें 25 लोग घायल हो गए थे. आंबेडकरवादियों ने आरोप लगाया है कि पुलिस उन पर समझौता करने का दबाव बना रही है.

‘बीते दो सालों में मेरे और आनंद के लिए ज़िंदगी ठहर गई है…’

एल्गार परिषद मामले में आरोपी बनाए गए सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षाविद डॉ. आनंद तेलतुम्बड़े ने अप्रैल 2020 में अदालत के आदेश के बाद एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. दो साल बाद भी उनके ख़िलाफ़ लगाए गए आरोप साबित होने बाक़ी हैं. उनकी पत्नी रमा तेलतुम्बड़े ने इन दो सालों का अनुभव साझा किया है.

बाबा साहेब के सपनों को साकार करने के लिए जातिवादी व्यवस्था के विरुद्ध मुहिम तेज़ करनी होगी

कोई भी राजनीतिक दल जाति व्यवस्था के अंत का बीड़ा नहीं उठाना चाहता है, न ही कोई सामाजिक आंदोलन इस दिशा में अग्रसर है. बल्कि, जाति आधारित संघों का विस्तार तेज़ी से हो रहा है. यह राष्ट्र एवं समाज के लिए एक घातक संकेत है.

बंधुत्व के बिना स्वतंत्रता और समानता हासिल करना असंभव है

जाति एक ऐसी बाधा है जो एक समाज का निर्माण नहीं होने देती. राष्ट्र बनकर भी नहीं बन पाता क्योंकि हम एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी नहीं होते. एकजुटता या बंधुत्व के अभाव में सामाजिक संपदा का निर्माण भी नहीं हो पाता.

आज के समय में जाति के विरोध में कोई भी आंदोलन होता नहीं दिखता: आनंद तेलतुम्बड़े

आंबेडकर जयंती के मौके पर लेखक तेलतुम्बड़े ने कहा, 'आंबेडकर को हर कोई अपने अपने ढंग से समझता है. आज के समय में हर राजनीतिक दल उन्हें अपना बताने की कोशिश में हैं लेकिन आंबेडकर के विचारों पर कोई नहीं चलना चाहता.'

आंबेडकर को जितना अस्वीकार वर्तमान राजनीति ने किया है, उतना किसी और ने नहीं किया

जब कोई फल पक जाता है, तब उसे तोड़ने के लिए सभी लपक पड़ते हैं. उसी तरह आज राजनीति में आंबेडकर चहेते हो गए हैं, लेकिन आंबेडकर दिखने में चाहे जितने आकर्षक हों, अपनाने में उतने ही कठिन हैं. वर्तमान राजनीतिक दल इस बात को जानते हैं इसीलिए वे 14 अप्रैल और 6 दिसंबर पर उनका नाम तो लेते हैं लेकिन उनकी वैचारिक तेजस्विता से डरते हैं.

आंबेडकर के रेडिकल पक्ष से कौन डरता है?

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के रेडिकल पक्ष को नज़रअंदाज़ करने के पीछे की राजनीति बहुत पुरानी है. शासक जमातें उत्पीड़ित तबकों से आने वाले नेताओं को सीमित करके प्रस्तुत करती हैं.

जब चुनाव हार गए थे बाबा साहब भीमराव आंबेडकर

जन्मदिन विशेष: भारत के जिस संविधान का भीमराव आंबेडकर को निर्माता कहा जाता है उसके लागू होने के बाद 1952 में हुए देश के पहले लोकसभा चुनाव में वे बुरी तरह हार गए थे.

आंबेडकर: संविधान अच्छे हाथों में रहा तो अच्छा, बुरे हाथों में गया तो ख़राब साबित होगा

जन्मदिन विशेष: आज हम अपनी राजनीति में नियमों, नीतियों, सिद्धांतों, नैतिकताओं, उसूलों व चरित्र के जिन संकटों से दो-चार हैं, उनके अंदेशे भीमराव आंबेडकर ने तभी भांप लिए थे.

क्या भय और पक्षपात के बिना न्याय कर पाएंगे आदित्यनाथ?

सहारनपुर और फतेहपुर की हिंसा अगर पिछली सरकार के दौर में हुई होती, तो भाजपा समाजवादी पार्टी के खिलाफ ‘गुंडाराज’ का आरोप लगाते हुए आसमान सिर पर उठा चुकी होती.

सहारनपुर हिंसा: भाजपा सांसद, विधायकों व पदाधिकारियों समेत 400 पर केस दर्ज

सहारनपुर के सड़क दूधली गांव में गुरुवार को प्रतिबंध के बावजूद निकाली गई आंबेडकर शोभायात्रा के दौरान जमकर हुई थी हिंसा.