इमरोज़ की याद में : यूं ही ख़ामोशी से मर जाया करती हैं सच्ची मोहब्बतें…

स्मृति शेष: चित्रकार इमरोज़ नहीं रहे. जिस ख़ामोशी से वे अमृता प्रीतम की ज़िंदगी में रहे, मोहब्बत इतनी ख़ामोश भी हो सकती है, इसे इमरोज़ को जान लेने के बाद ही जाना जा सकता है.

‘इंडिपेंडेंस’ विभाजन की पृष्ठभूमि में इतिहास और कल्पना का सामंजस्य बिठाने में सफल हुई है

पुस्तक समीक्षा: विभाजन-साहित्य उन असंख्य लोगों का इतिहास है, जिसे शासकीय ब्योरों में भुला दिया गया. चित्रा बनर्जी दिवाकरुनी का उपन्यास 'इंडिपेंडेंस' इसी कड़ी में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ता है, जहां राष्ट्रों के जन्म, विभाजन की हिंसा, उपद्रव और इसके प्रभावों को आम स्त्रियों की दृष्टि से देखा गया है.

आज़ाद औरत का चेहरा अमृता प्रीतम

वीडियो: एक आज़ाद औरत का चेहरा बीते कल से आज तक कितना बदल पाया है, इसी मुद्दे पर अमृता प्रीतम के हवाले से वरिष्ठ पत्रकार प्रियदर्शन के साथ दामिनी यादव की एक ख़ास बातचीत.

चौरासी के दंगों पर दिल्ली हाईकोर्ट का फ़ैसला महान भारत के नागरिकों की निर्ममता के ख़िलाफ़ आया है

2002 की बात को कमज़ोर करने के लिए 1984 की बात का ज़िक्र होता है, अब 1984 की बात चली है तो अदालत ने 2013 तक के मुज़फ़्फ़रनगर के दंगों तक का ज़िक्र कर दिया है.

‘साहिर की शख़्सियत और उनकी शायरी एक-दूसरे में हूबहू उतर गए थे’

पुण्यतिथि विशेष: यह भी एक क़िस्म की विडंबना ही है कि जिस साहिर के कलाम गुनगुनाकर अनगिनत इश्क़ परवान चढ़े, उसकी अपनी ज़िंदगी में कोई इश्क़ मुकम्मल न हुआ.