वीडियो: भारत की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर द वायर ने नई श्रृंखला के दूसरे एपिसोड में भारत सरकार द्वारा स्वास्थ्य सेवाओं पर किए जाने वाले ख़र्च का मुद्दा उठाया गया है. इस विषय पर दो विशेषज्ञों- ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी के इंद्रनील मुखोपाध्याय और आंबेडकर यूनिवर्सिटी की दीपा सिन्हा से बात कर रही हैं आरफ़ा ख़ानम शेरवानी.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसे लागू करने के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखा है और इस साल 31 दिसंबर तक नए नाम के साथ आयुष्मान भारत स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों (एबी-एचडब्ल्यूसी) की तस्वीरें मांगी हैं. इन तस्वीरों को एबी-एचडब्ल्यूसी पोर्टल पर अपलोड करने को कहा गया है. ‘आयुष्मान भारत मंदिर’ के साथ ‘आरोग्यम परमं धनम्’ नाम से टैगलाइन भी दी गई है.
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एक रिपोर्ट के अनुसार, आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत सूचीबद्ध 27,000 अस्पतालों में से केवल 18,783 सक्रिय हैं. इस योजना का लक्ष्य 12 करोड़ से अधिक ग़रीब और कमज़ोर परिवारों को सेकेंड और थर्ड केयर अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार 5 लाख रुपये प्रति वर्ष का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करना है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध संस्था स्वदेशी जागरण मंच ने कहा है कि नई कर व्यवस्था का करदाताओं की बचत पर बुरा असर पड़ेगा. संस्था ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया कि नई कर व्यवस्था में कुछ इस तरह का बदलाव किया जाए, जिससे मध्य वर्ग बचत करने को प्रेरित हो. आरएसएस से ही जुड़े भारतीय मज़दूर संघ ने भी बजट पर निराशा जताई है.
इस नई स्वास्थ्य प्रणाली में उनको शामिल नहीं किया जाएगा जो आयुष्मान भारत योजना के दायरे में हैं. हाल में शुरू इस योजना के दायरे में कुल आबादी का 40 प्रतिशत आता है.
आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि यह एक ऐसी विचित्र योजना है जो लोगों के उपचार के लिए तभी भुगतान करती है जब आप उनके कुछ निर्धारित मानदंडों को पूरा करते हैं, जबकि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में सभी को मुफ्त इलाज मिलता है.
प्रधानमंत्री जी! इतनी लचर तैयारी से तो भारत ‘आयुष्मान’ होने से रहा.