आईआईएम बेंगलुरु के फैकल्टी सदस्यों ने कॉरपोरेट्स को लिखा- ग़लत सूचनाएं और हेट स्पीच रोकें

भारतीय प्रबंधन संस्थान, बेंगलुरु के लगभग 20 वर्तमान और पूर्व फैकल्टी सदस्यों ने भारतीय कॉरपोरेट्स को संबोधित करते हुए एक पत्र में कहा है कि वे कॉरपोरेट जगत का ध्यान 'देश में हिंसक संघर्षों के बढ़ते ख़तरे के साथ आंतरिक सुरक्षा की नाज़ुक स्थिति' की ओर आकर्षित करना चाहते हैं. 

दुष्प्रचार वाली फिल्मों से लड़ने का एकमात्र तरीका कलाकारों का आवाज़ उठाना है: नसीरुद्दीन शाह

दिग्गज अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने कहा कि कट्टरता और दुष्प्रचार फैलाने के लिए बनाई गई फिल्मों से लड़ने का एकमात्र तरीका कलाकारों का बोलना है. हालांकि उन्होंने अफ़सोस जताया कि बहुत से कलाकार ऐसा करने को तैयार नहीं हैं.

‘मौलाना आज़ाद के विचारों को आम करने की ज़रूरत है’

वीडियो: स्वतंत्रता सेनानी और भारत के प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के विचारों, योगदान, आज के समय में उन्हें याद रखने और उनकी परंपरा को आगे ले जाने की ज़रूरत पर हाल ही में आज़ाद पर प्रकाशित किताब के लेखक और प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफ़ेसर एस. इरफ़ान हबीब से महताब आलम की बातचीत.

जम्मू कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल होनी चाहिए: राहुल गांधी

श्रीनगर में 'भारत जोड़ो यात्रा' के समापन से पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि विपक्ष में मतभेद ज़रूर हैं, लेकिन वह भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ एक साथ खड़ा होगा और लड़ेगा.

भारत जोड़ो यात्रा ने प्रभावी तरीके से ‘पप्पू’ छवि को ध्वस्त किया है

भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस साथ आकर पूरे जी-जान से चुनाव लड़ सकेगी, यह सवाल अब भी बाकी है, मगर जिस बात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है, वह यह है कि राहुल गांधी ने ऐसे समय में जब देश में ध्रुवीकरण बढ़ रहा है, एक वैकल्पिक विचार पेश किया- कि देश को एक बार फिर साथ जोड़ने की ज़रूरत है.

भारत जोड़ो यात्रा में कुछ क़दम

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: इसमें संदेह नहीं कि राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में बिल्कुल निहत्थे चल रहे हैं, उनकी रक्षा के लिए कमांडो तैनात हैं पर वे वेध्य हैं. बड़ी बात यह है कि वे निडर हैं.

भारत जोड़ो यात्रा में न कोई चुनाव परिणाम खोजें और न ही कांग्रेस का पुनरुत्थान

भारत जोड़ो यात्रा एक ऐसी कोशिश है, जिसका प्रभाव निकट भविष्य पर पड़ेगा या नहीं, और पड़ेगा तो कितना, यह कहना मुश्किल है. इसे सिर्फ़ चुनावी नतीजों से जोड़कर देखना भूल है. इससे देश में बातचीत का एक नया सिलसिला शुरू हुआ है जो अब तक के घृणा, हिंसा और इंसानियत में दरार डालने वाले माहौल के विपरीत है.

क्या ग़ैर हिंदुओं के बारे में न जानकर हिंदू सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हैं या दरिद्र

आज के भारत में ख़ासकर हिंदुओं के लिए ज़रूरी है कि वे ग़ैर हिंदुओं के धर्म, ग्रंथों, व्यक्तित्वों, उनके धार्मिक आचार-व्यवहार को जानें. मुसलमान, ईसाई, सिख या आदिवासी तो हिंदू धर्म के बारे में काफ़ी कुछ जानते हैं लेकिन हिंदू प्रायः इस मामले में सिफ़र होते हैं. बहुत से लोग मोहर्रम पर भी मुबारकबाद दे डालते हैं. ईस्टर और बड़ा दिन में क्या अंतर है? आदिवासी विश्वासों के बारे में तो हमें कुछ नहीं मालूम.

‘सम्राट पृथ्वीराज’ हिंदुत्व के एजेंडा में वहां तक पहुंची है, जहां अब तक कोई फिल्म नहीं गई थी

हिंदी फिल्में सफलता के लिए आबादी के हर हिस्से और हर धर्म के दर्शकों पर निर्भर करती हैं. पर इस बार यहां हमारे सामने एक ऐसी फिल्म आई, जिसे सिर्फ (कट्टर) हिंदू दर्शकों की ही दरकार है.

अब वह भारत भी नहीं रहा, जिसमें जन्म लिया…

जो भारत अब तक बना था, जिसे हम यहां की प्रकृति और किताबों में पढ़ते थे ऐसा लगता है कि वह ‘आज़ादी के अमृत काल’ में विष के समुद्र में लगातार धकेला जा रहा है.

नफ़रत, कट्टरता, असहिष्णुता और झूठ हमारे देश को निगलते जा रहे हैं: सोनिया गांधी

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक अंग्रेज़ी अख़बार के लिए लिखे अपने लेख में कहा है कि भारतीयों को भारतीयों के ख़िलाफ़ ही खड़ा करने की कोशिश की जा रही है. सत्तासीन लोगों की विचारधारा के विरोध में सभी असहमतियों और राय को बेरहमी से कुचलने की कोशिश की जाती है. राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाया जाता है और उनके ख़िलाफ़ पूरी सरकारी मशीनरी की ताकत झोंक दी जाती है.

दामोदर मौउजो को मिले ज्ञानपीठ पुरस्कार के बहाने क्या दक्षिणपंथी अतिवाद पर चर्चा शुरू होगी

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कोंकणी लेखक दामोदर मौउजो के पास वह क्षमता है जो उन्हें तात्कालिक बात से आगे देखने का मौक़ा देती है, जिसने उन्हें इस बात के लिए भी प्रेरित किया है कि वह ताउम्र महज़ कलम और कागज़ तक अपने को सीमित न रखें बल्कि सामाजिक-राजनीतिक तौर पर अहम मुद्दों पर भी बोलें, यहां तक कि समाज में पनप रहे दक्षिणपंथी विचारों, उनकी डरावनी हरकत के बारे में भी मौन न रहें.

त्योहारों की साझा संस्कृति और साझा ऐतिहासिक चेतना आज कहां है

क्या हम पहले के मुकाबले भावनात्मक रूप से अधिक असुरक्षित हो गए हैं? क्या हमारा भाव जगत पहले की तुलना में कहीं संकुचित हो गया है? किसी भी अन्य समुदाय के त्योहार में साझेदारी करने में अक्षम या उस दिन को हथिया लेने की जुगत लगाते हुए क्या हम हीन भावना के शिकार होते जा रहे हैं?

आदित्यनाथ की अमर्यादित भाषा पर पत्रकारों-अधिकारियों के झूठ और धमकियों का पर्दा

योगी शासन की एक प्रमुख निशानी ये है कि उसने मीडिया को चुप कराने के लिए एफआईआर और धमकियों का सहारा लिया है. उनकी अमर्यादित टिप्पणी का वीडियो साझा करने के बाद दी गई एफआईआर की चेतावनियां इसी बात की तस्दीक करती हैं.

क्या भारत कट्टरता के मामले में पाकिस्तान बनने की राह पर है?

बहुत साल पहले पाकिस्तान की कवियित्री फ़हमीदा रियाज़ ने लिखा था कि 'तुम बिल्कुल हम जैसे निकले, अब तक कहां छुपे थे भाई. वो मूरखता वो घामड़पन, जिसमें हमने सदी गंवाई, आख़िर पहुंची द्वार तुम्हारे... देश के आज के हालात में ये पंक्तियां सच के काफ़ी क़रीब नज़र आती हैं.