‘जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के ख़िलाफ़ अधिकार’ जीवन व समानता के अधिकारों का हिस्सा: कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक पक्षी के निवास स्थान को खोने से बचाए जाने की याचिका सुनते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन की अनिश्चितताओं से अप्रभावित स्वच्छ पर्यावरण के बिना जीवन का अधिकार पूरी तरह से साकार नहीं होता है.

दिल्ली के धुएं और घुटन में हिस्सेदारी का सवाल

पर्यावरण क्षरण और जलवायु आपदाओं को ग्लोबल कहने से यह राय बनती है कि वे सभी को समान रूप से प्रभावित करती हैं, पर सच्चाई ये है कि जलवायु आपदाओं का सार्वभौमिक चरित्र है कि वे उसके दोषी पक्ष को अक्सर कम तथा निर्दोष सामान्यजन को अधिक प्रभावित करती हैं.

गर्मी के कारण होने वाली मौतों की संख्या सालाना पांच गुना बढ़ सकती है: लांसेट अध्ययन

स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लांसेट काउंटडाउन की 8वीं वार्षिक रिपोर्ट में शामिल एक विश्लेषण में कहा गया है कि तापमान में हो रही बढ़ोतरी को प्री-इंडस्ट्रियल लेवेल से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में होने वाली किसी भी तरह की देरी से दुनियाभर में अरबों लोगों की सेहत और अस्तित्व को विनाशकारी ख़तरा है.

पहाड़ों में विकास के नाम पर जो कुछ हो रहा है, क्या वह टिकाऊ है?

मानसून के दौरान पहाड़ों पर साल दर साल आने वाली त्रासदी पहाड़ से बाहर रह रहे लोगों के लिए भले ही हताहतों की संख्या या एक ख़बर भर हो, लेकिन पहाड़ में रहने वालों और वहां की पारिस्थितिकी के लिए ये सुरक्षित भविष्य बनाने की एक पुकार है. क्या सरकारें इसे सुन पा रही हैं?

हिमाचल प्रदेश: क्या जलवायु परिवर्तन कुल्लू के सेबों की मिठास चुरा रहा है?

वीडियो: कृषि की बात के इस एपिसोड में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू क्षेत्र में 'क्लाइमेट चेंज' यानी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की बात की गई है. कुल्लू घाटी के सुदूर गांवों के किसानों से जाना गया कि सेब का उत्पादन मौसम में हो रहे बदलावों से कैसे प्रभावित हो रहा है.

अधिक तीर्थयात्रियों को भेजने के चक्कर में हम पवित्र स्थानों को नष्ट कर रहे हैं: लेखक अमिताव घोष

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक अमिताव घोष ने कहा कि जब जलवायु परिवर्तन असर दिखा रहा है, मानव हस्तक्षेप आपदा को और बढ़ा रहे हैं. जैसा कि जोशीमठ में हुआ. केदारनाथ और बद्रीनाथ की तीर्थ यात्रा पर जाने का पूरा मतलब यह है कि यह कठिन है. लोगों के वहां जाने के लिए परिवहन की व्यवस्था करने का कोई मतलब नहीं है. जहां एक ओर पर्यावरण की रक्षा को लेकर बैठकें हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर खनन के लिए

हिमालय के तीन औषधीय पौधों की प्रजाति पर लुप्त होने का संकट: आईयूसीएन

इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंज़र्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने एक आकलन में संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड लिस्ट में हिमालय के तीन औषधीय पौधों को डाला है. उसका कहना है कि वनों की कटाई, अवैध व्यापार, जंगल की आग, जलवायु परिवर्तन आदि के चलते इनके अस्तित्व पर संकट आ गया है.

उत्तराखंड के पर्यावरणीय ख़तरे समूचे हिमालय के लिए बड़ी चुनौती बन सकते हैं

उत्तराखंड में हाल ही में घटी लगातार आपदाएं हिमालयी जनजीवन के अस्तित्व पर आगामी सदियों के ख़तरों की आहट दे रही हैं. सरकार व नौकरशाही के कामचलाऊ रुख़ से जलवायु परिवर्तन समेत मानव निर्मित गंभीर विषम स्थितियों का सामना करना दुष्कर हो चला है.

पिछले कई सालों से पानी की क़िल्लत से परेशान दिल्लीवासी, आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

वीडियो: दिल्ली देश की राजधानी है, लेकिन हर साल गर्मियों के मौसम में मानसून आने से पहले यहां पानी की किल्लत शुरू हो जाती है. दिल्ली को पानी की जितनी ज़रूरत है, उतनी आपूर्ति नहीं होती है. इस वजह से दिल्ली में हर साल पानी का संकट खड़ा हो जाता है.

एनसीईआरटी के पाठ्यक्रम से पर्यावरण संबंधी अध्याय हटाने पर शिक्षकों का समूह नाराज़

टीचर्स अगेंस्ट द क्लाइमेट क्राइसिस ने दावा किया कि एनसीईआरटी ने कक्षा 11वीं के भूगोल विषय से ग्रीनहाउस गैस के प्रभाव से संबंधित पूरे अध्याय को हटा दिया है, जबकि 7वीं के पाठ्यक्रम से मौसम, जलवायु और पानी के अध्याय को हटाया है तथा 9वीं से मानसून से संबंधित अध्याय को हटा दिया है. संगठन ने मांग की कि एनसीईआरटी इन अध्यायों को बहाल करे तथा जलवायु संकट के विषय को सभी भाषाओं में स्कूलों में पढ़ाया जाए.

साल 2021 में जलवायु परिवर्तन और आपदाओं के चलते भारत में क़रीब 50 लाख लोग विस्थापित: यूएन

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में हिंसा, मानवाधिकार हनन, खाद्य असुरक्षा, जलवायु संकट, यूक्रेन में युद्ध और अन्य आपात स्थितियों के कारण दुनियाभर में 10 करोड़ लोग अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए. एजेंसी ने कहा कि बीते दशक में हर वर्ष घर छोड़ने के लिए मजबूर होने वाले लोगों की संख्या दोगुनी हुई है.

2019 में भारत में प्रदूषण के कारण दुनिया में सर्वाधिक 23.5 लाख से अधिक लोगों की मौत: लांसेट अध्ययन

‘द लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ जर्नल’ में प्रकाशित एक नए अध्ययन में साल 2019 में भारत में सभी प्रकार के प्रदूषण के कारण 23.5 लाख से अधिक मौतें समय से पहले हुई हैं, जिसमें वायु प्रदूषण के कारण 16.7 लाख मौतें शामिल हैं. वैश्विक स्तर पर हर साल होने वाली 90 लाख मौतों के लिए सभी प्रकार का प्रदूषण ज़िम्मेदार है.

पर्यावरण में हो रहे बदलाव को किस तरह से झेल रहे हैं हिमाचल प्रदेश के किसान?

वीडियो: कृषि पर जलवायु परिवर्तन का बुरा प्रभाव पड़ रहा है. पर्वतीय राज्य हिमाचल प्रदेश भी इससे अछूता नहीं है. प्रदेश के लाहौल क्षेत्र में किसानों से जलवायु परिवर्तन, पानी की कमी के अलावा, बदलते कृषि पैटर्न आदि पर द वायर के इंद्र शेखर सिंह ने चर्चा की.

उत्तराखंड: कॉमन सिविल कोड से पहाड़ की जनता को क्या मिलेगा

अगर पुष्कर सिंह धामी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार कोई क़ानून लाना चाहती है तो उसके बारे में आम जनता को पहले से तफ़्सील से क्यों नहीं बताया जाता कि उत्तराखंड के लिए इसके क्या फ़ायदे होंगे.

ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती करना ज़रूरी, 2030 के बाद कोई लाभ नहीं होगा: आईपीसीसी रिपोर्ट

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताज़ा रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर अगले कुछ सालों में ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कटौती को लेकर कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया गया तो 2030 के बाद जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए उठाया गया कोई भी क़दम वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा. ग्रीनहाउस गैस वातावरण में गर्मी को बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार होती हैं.

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