आदिवासी इलाकों में ग्राम सभाओं ने आदिवासियों को सशक्त किया है, गांवों में उम्मीद जगाई है, इसके कई उदाहरण झारखंड के गुमला ज़िले में देखने को मिलते हैं. चैनपुर प्रखंड की आदिवासी महिलाएं बताती हैं कि ग्राम सभा की मदद से ग्रामीणों ने आस-पास के जंगलों, पहाड़ों, चट्टानों, नदियों की सुरक्षा का ज़िम्मा उठाया है.
गुलाम नबी आज़ाद ने अपने नए दल ‘डेमोक्रेटिक आज़ाद पार्टी’ के गठन की घोषणा करते हुए कहा कि वह जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 बहाल करने को चुनावी मुद्दा नहीं बनाएंगे. उनके दल का किसी अन्य राजनीतिक पार्टी से कोई मुक़ाबला नहीं होगा और यह सूबे में शांति व सामान्य स्थिति को मज़बूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करेगी.
मोदी सरकार एक ऐसा राज्य स्थापित करने की कोशिश में है जहां जनता सरकार से जवाबदेही न मांगे. नागरिकों के कर्तव्य की सोच को इंदिरा गांधी सरकार ने आपातकाल के दौरान संविधान में जोड़ा था. मोदी सरकार बिना आपातकाल की औपचारिक घोषणा के ही अधिकारहीन कर्तव्यपालक जनता गढ़ रही है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: श्रीकांत वर्मा ने कहा था कि ‘कैंसर से मरती हैं हस्तियां/हैजे से बस्तियां/वकील रक्तचाप से/कोई नहीं मरता/अपने पाप से.' क्या हम आज ऐसे ही नीति-शून्य लोकतंत्र में नहीं रह रहे हैं? कवि आपको किसी नरक या पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता: वह उसकी शिनाख़्त करने का साहस भर दे सकता है.
सरकार हमें बार-बार कह रही है कि देशवासियों ने अपने अधिकारों की दुहाई दे-देकर पिछले 75 साल बर्बाद कर दिए हैं. वक़्त आ गया है कि वे अब राज्य के प्रति अपने कर्तव्य को याद करें. कर्तव्य में बहुत आकर्षण है. गीता की याद दिलाई जा सकती है. कर्तव्य का नाम लेकर लोगों को शर्मिंदा किया जा सकता है.
नाम बदलकर बदलाव का भ्रम रचना दरअसल ऐसा करने वालों द्वारा यह स्वीकार लेना है कि उनके पास अपने काम से कोई बदलाव लाने का न बूता बचा है, न विवेक. अन्यथा अब तक वे इतना तो समझ ही गए होते कि ग़ुलामी के प्रतीकों की उनकी समझ कितनी नासमझी भरी है.
नागरिकों को कर्तव्यपरायण होने के लिए प्रोत्साहित करना तानाशाही शासन का एक प्रमुख अंग है. इसे पहली बार आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा लाया गया था. तब से जिन सरकारों ने भी आम लोगों के अधिकारों की अवहेलना की, उन्होंने अक्सर अपने फ़र्ज़ की बजाय नागरिकों के कर्तव्यों के महत्व को ही दोहराया.
बुधवार को आयकर विभाग द्वारा इंडिपेंडेंट एंड पब्लिक-स्पिरिटेड मीडिया फाउंडेशन, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च और ऑक्सफैम इंडिया के कार्यालयों में किए गए 'सर्वे' की निंदा करते हुए विभिन्न स्वतंत्र डिजिटल मीडिया संस्थानों के संगठन डिजीपब ने कहा कि यह स्वतंत्र पत्रकारिता पर लगाम कसने की दमनकारी प्रवृत्ति है.
भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमना ने एक समारोह में कहा कि 21वीं सदी की उपलब्धियों की सराहना करने की ज़रूरत है, लेकिन एक राष्ट्र के रूप में हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि करोड़ों भारतीयों के लिए भूख, ग़रीबी, अशिक्षा व सामाजिक असमानता अब भी एक हक़ीक़त है.
ट्विटर के पूर्व सुरक्षा प्रमुख पीटर ज़ैटको ने एक शिकायत में आरोप लगाया है कि भारत सरकार ने ट्विटर को ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों को नियुक्त करने के लिए मजबूर किया जो सरकार के एजेंट थे और जिनकी ट्विटर के वृहद संवेदनशील डेटा तक पहुंच थी.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: धूमिल ने दशकों पहले ‘दूसरे प्रजातंत्र’ की बात की थी, हमें अब अपना पुराना, भले अपर्याप्त, लोकतंत्र चाहिए. वह हमें पूरी तरह से मुक्त नहीं करेगा पर उस ओर बढ़ने की ऊर्जा, अवसर और साहस तो देगा.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लिखे एक आलेख में कहा कि विभाजनकारी राजनीति तात्कालिक फ़ायदा भले पहुंचाए लेकिन यह देश की प्रगति में बाधा खड़ी करती है.
आज़ादी ने हमें लोकतंत्र दिया, जबकि नस्लीय राष्ट्रवाद का परिणाम बंटवारा था, जिसने अपने पीछे खून से लथपथ सांप्रदायिक हिंसा के निशान छोड़े. बेशक राष्ट्रवाद अच्छा है- लेकिन इसने नस्लीय अल्पसंख्यकों, कमज़ोरों और जिन्हें यह अपने यहां का नहीं मानता है, के लिए ख़तरे खड़े किए हैं.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम निस्संदेह अधिकता के समय में जी रहे हैं. चीज़ें बहुत अधिक हो गई हैं और उनके दाम भी. महंगाई बढ़ रही है, विषमता भी. हत्या, बलात्कार, हिंसा आदि में बढ़ोतरी हुई है. पुलिस द्वारा जेल में डाले गए और सुनवाई न होने के मामले भी बढ़े हैं. न्याय व्यवस्था में सर्वोच्च स्तर पर सत्ता के प्रति भक्ति और आसक्ति बढ़ी है.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम ने एक साक्षात्कार में कहा कि संस्थानों को नियंत्रित, कमज़ोर किया जा रहा है या उन पर कब्ज़ा कर लिया गया है. भले ही हमारे पास लोकतंत्र का कवच है, लेकिन भीतर से यह कवच खोखला हो चुका है.