मोदी सरकार दुनिया की सबसे भयावह सरकारों में से एक है: अमर्त्य सेन

वीडियो: नोबेल पुरस्कार विजेता और भारत रत्न से सम्मानित अर्थशास्त्री प्रो. अमर्त्य सेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के सबसे कठोर आलोचकों में से एक रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार करण थापर से बातचीत में उन्होंने मोदी सरकार और मुस्लिमों के साथ सरकार द्वारा किए जा रहे व्यवहार के अलावा अन्य मुद्दों पर चर्चा की.

देश में असहिष्णुता लंबे समय तक नहीं रहेगी, लोगों को मिलकर काम करना होगा: अमर्त्य सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कोलकाता में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि लोग अगर सहमत नहीं हैं या दूसरों की बात नहीं मानते हैं तो उन्हें पीटा जा रहा है. लोगों को मिलकर काम करना होगा. मतभेद दूर किए जाने चाहिए. हमें अपने बीच की दूरियों को कम करने की ज़रूरत है.

कर्नाटक: नागरिकों ने सीएम को पत्र लिख कहा- अल्पसंख्यकों पर हमले से राज्य की बहुलता को ख़तरा

सेवानिवृत्त नौकरशाह, कलाकार और शिक्षाविदों के एक समूह ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई को लिखे पत्र में कहा है कि हाल में मुस्लिम, ईसाई और दलित समुदायों पर विभिन्न प्रकार के हमलों ने राज्य के समावेशी स्वभाव पर गर्व करने वालों को झकझोर कर रख दिया है. समूह ने कहा कि इससे प्रगति में बाधा उत्पन्न होगी, उद्यमियों और निवेशकों का विश्वास कम होगा तथा नागरिकों में असुरक्षा, संदेह, भय और आक्रोश बढ़ेगा.

भारतीयता, परंपरा और आधुनिकता का असल अर्थ क्या है

भारत में जिस दल की केंद्रीय स्तर पर सरकार है और जो ‘स्वयंसेवी संगठन’ वर्चस्व की स्थिति में है उसका दबाव अकादमिक कार्यक्रमों और लोगों के सामान्य वैचारिक निर्माण पर स्पष्ट है. इस प्रक्रिया में किसी शब्द के अर्थ को इतना संकुचित कर दिया जा रहा है कि उसकी अर्थवत्ता ही संदिग्ध हो जा रही है.

हिंदी थोपने की अनावश्यक आक्रामकता ख़ुद उसके लिए नुक़सानदेह है

अक्सर देखा गया है कि ग़ैर-हिंदीभाषियों को हिंदी अपनाने का उपदेश देने वाले ख़ुद अंग्रेज़ी की राह पकड़ लेते हैं. यह प्रश्न बार-बार उठा है कि कितने हिंदीभाषियों ने अन्य भारतीय भाषाएं सीखी हैं?

हिंदी बनाम अन्य भाषाओं की लड़ाई में क्या हम प्रतिभाओं का गला घोंट रहे हैं?

जिस देश में यह कहावत हो कि ‘कोस-कोस पर बदले पानी और चार कोस पर वाणी’, वहां हिंदी बनाम तमिल या अन्य प्रांतीय भाषाओं का विवाद ही ग़लत है.

‘असहमति देशद्रोह नहीं है, लोकतंत्र का सार है’

भारतीय सशस्त्र बल के 114 पूर्व सैनिकों ने हाल ही में संविधान में बताए गए धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के उलट देश में हुई हिंसा की घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है.

क्यों आईआईएम में वंचित समुदाय से आने वाले शिक्षकों के लिए जगह नहीं है?

एक सर्वे के अनुसार, देश के छह आईआईएम में जुलाई 2015 तक कुल 233 शिक्षक थे. इनमें से सिर्फ़ दो अनुसूचित जाति और पांच अन्य पिछड़ा वर्ग से आते हैं. अनुसूचित जनजाति से कोई भी शिक्षक यहां नहीं था.