देश की कमज़ोर अर्थव्यवस्था के बीच प्रचंड जनादेश हासिल करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समक्ष कई बड़ी आर्थिक चुनौतियां मुंह बाए खड़ी हैं.
सूचना के अधिकार के तहत रिज़र्व बैंक से डिफाल्टरों के नाम की जानकारी मांगी गई थी.
आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक पिछले दस सालों में सात लाख करोड़ से ज़्यादा का बैड लोन राइट ऑफ हुआ यानी न चुकाए गए क़र्ज़ को बट्टे खाते में डाला गया, जिसका 80 फीसदी जो लगभग 5,55,603 करोड़ रुपये है, बीते पांच सालों में बट्टे खाते में डाला गया.
सबसे ग़रीब तबकों में बाल मृत्यु दर और कुपोषण के स्तर को देखते हुए यह समझ लेना होगा कि लोक सेवाओं और अधिकारों के संरक्षण के बिना न तो ग़ैर-बराबरी ख़त्म की जा सकेगी, न ही भुखमरी, कुपोषण और बाल मृत्यु को सीमित करने के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकेगा.
जब से नई आर्थिक नीतियां आईं, चुनिंदा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए खुलेआम जनविरोधी नीतियां बनाई जाने लगीं, तभी से देश राष्ट्र में तब्दील किया गया. इन नीतियों से भुखमरी, कुपोषण और ग़रीबी का चेहरा और विद्रूप होने लगा तो देश के सामने राष्ट्र को खड़ा कर दिया गया. खेती, खेत, बारिश और तापमान के बजाय मंदिर और मस्जिद ज़्यादा बड़े मुद्दे बना दिए गए.
देश-विदेश की शीर्ष वित्तीय संस्थाओं से जुड़े अर्थशास्त्रियों ने कहा कि वित्तीय आंकड़े नीतियां बनाने और जनता की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए ज़रूरी है कि इन आंकड़ों को इकठ्ठा और प्रसारित करने वाली संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार न हों और इनकी विश्वसनीयता बनी रहे.
भाजपा ने आम चुनाव में राष्ट्रवाद और पाकिस्तान से ख़तरे को मुद्दा बनाने का मंच सजा दिया है. वो चाहती है कि विपक्ष उनके उग्रता के जाल में फंसे, क्योंकि विपक्षी दल उसकी उग्रता को मात नहीं दे सकते. विपक्ष को यह समझना होगा कि जनता में रोजगार, कृषि संकट, दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार जैसे मुद्दों को लेकर काफी बेचैनी है और वे इनका हल चाहते हैं.
3000 करोड़ रुपये की मूर्ति, 1 लाख करोड़ रुपये की बुलेट ट्रेन उस देश की सबसे पहली ज़रूरतें हैं, जहां छह करोड़ बच्चे कुपोषित हैं, शिक्षकों के दस लाख पद ख़ाली हैं, सवा तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं और 20 करोड़ लोग रोज़ भूखे सोते हैं.
एस्सेल और ज़ी समूह के संस्थापक सुभाष चंद्रा ने वित्तीय संकट के लिए बुनियादी ढांचा क्षेत्र पर आक्रामक तरीके से दांव लगाने और वीडियोकॉन का डी2एच कारोबार ख़रीदने के निर्णय को ज़िम्मेदार बताया.
सुभाष चंद्रा के एक पत्र से ज़ाहिर है कि उनकी कंपनी पर वित्तीय संकट मंडरा रहा है. सरकार के इतने क़रीब होने के बाद भी सुभाष चंद्रा लोन नहीं दे पा रहे हैं तो समझ सकते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था कितनी नाज़ुक हालत में है. इनके चैनलों पर मोदी के बिज़नेस मंत्रों की कितनी तारीफ़ें हुई हैं और उन्हीं तारीफ़ों के बीच उनका बिज़नेस लड़खड़ा गया.
ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2018 में देश के शीर्ष एक प्रतिशत अमीरों की संपत्ति में 39 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि पचास प्रतिशत ग़रीब आबादी की संपत्ति में महज़ 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई.
विनिर्माण क्षेत्र की धीमी रफ़्तार के कारण औद्योगिक विकास नवंबर महीने में सिर्फ़ 0.5 प्रतिशत दर्ज की गई. इससे पहले जून 2017 में यह 0.3 प्रतिशत पर पहुंच गया था.
जीएसटी परिषद ने छोटे कारोबारियों को जीएसटी से राहत देते हुए छूट सीमा को 20 लाख से बढ़ाकर 40 लाख रुपये वार्षिक कर दिया है जबकि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए इसे बढ़ाकर 20 लाख रुपये किया गया है.
वित्त मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने गुरुवार को कहा कि 2000 के नोटों की छपाई भारतीय रिज़र्व बैंक ने 'न्यूनतम' कर दिया है.
जीएसटी रेट एक टैक्स से शुरू होता है और बाद में कई टैक्स आ जाते हैं या बढ़ने लगते हैं. या फिर कई टैक्स से शुरू होकर एक टैक्स की ओर जाता है. इसका मतलब है कि एक टैक्स को लेकर कोई ठोस समझ नहीं है. शायद जनता का मूड देखकर टैक्स के प्रति समझदारी आती है.