रामदेव ने शेल कंपनियों के जाल के ज़रिये कैसे खड़ा किया रियल एस्टेट का साम्राज्य?

द रिपोर्टर्स कलेक्टिव की पड़ताल बताती है कि योग गुरु और कारोबारी रामदेव रियल एस्टेट के क्षेत्र के अगुवा हैं, जहां उनके परिवार के लोगों और क़रीबियों ने शेल कंपनियों के ज़रिये हरियाणा में कई एकड़ ज़मीन ख़रीदी-बेची है.

झारखंड के मुख्यमंत्री ने मोदी को लिखा पत्र, नए वन नियमों पर जताई आपत्ति

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि केंद्र के वन संरक्षण नियम 2022 स्थानीय ग्रामसभा की शक्तियों को कमज़ोर करते हैं और वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को छीनते हैं. पत्र में रेखांकित किया गया है कि नियमों ने ग़ैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग करने से पहले ग्रामसभा की पूर्व सहमति प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया है.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने वन संरक्षण नियम 2022 पर मंत्रालय से रोक लगाने को कहा

पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे पत्र में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने कहा है वन संरक्षण नियम 2022 ने वन भूमि के डायवर्ज़न से पहले वनवासियों की सहमति लेने की आवश्यकता को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया है. पर्यावरण मंत्रालय ने बीते जून महीने में नए नियमों को अधिसूचित किया था. 

अडानी की फर्म को ग़लत भूमि आवंटन के चलते गुजरात सरकार को 58 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ

गुजरात विधानसभा के समक्ष पेश अपनी पांचवीं रिपोर्ट में लोक लेखा समिति ने बताया है कि वन और पर्यावरण विभाग द्वारा मुंद्रा पोर्ट और कच्छ में स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (सेज़) में अडानी केमिकल्स को दी गई वन भूमि के अनुचित वर्गीकरण के कारण कंपनी ने राज्य सरकार को 58.64 करोड़ रुपये कम भुगतान किया.

हिमाचल प्रदेश: मेगा सोलर पार्क परियोजना से स्पिति पर मंडराए ख़तरे के बादल

हिमाचल प्रदेश के स्पिति में प्रस्तावित 880 मेगावॉट का सोलर पार्क विश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित परियोजना है, जो इस संवेदनशील इलाके की जनजातीय जनता और दुर्लभ वन्य जीवों के लिए जोखिमभरा साबित हो सकता है.

हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार क़ानून का हाल बेहाल क्यों है

दिसंबर, 2021 में वन अधिकार क़ानून को पारित हुए 15 साल पूरे हुए हैं, हालांकि अब भी वन निवासियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. आज जहां पूरे भारत में 20 लाख से अधिक वन अधिकार दावे मंज़ूर किए गए, उनमें हिमाचल प्रदेश का योगदान केवल 169 है, जो प्रदेश को इस क़ानून के क्रियान्वयन में सबसे पिछड़ा राज्य बनाता है.

जम्मू कश्मीर: वन क्षेत्र बढ़ाने के वादे के उलट प्रशासन ने सशस्त्र बलों को अतिरिक्त वन भूमि दी

साल 2019 में जम्मू कश्मीर का विशेष दर्ज़ा ख़त्म किए जाने के बाद से 250 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि ग़ैर-वन कार्यों के लिए ट्रांसफर किया गया है. ये भूमि पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील है और यहां कई लुप्तप्राय जानवरों की प्रजातियां पाई जाती हैं. इनमें से कुछ इलाकों में रहने वाले लोगों का आरोप है कि जम्मू कश्मीर प्रशासन ने इन प्रस्तावों को मंज़ूरी देने से पहले यहां की पंचायत समितियों या स्थानीय लोगों से परामर्श नहीं किया

केंद्र सरकार की कोविड-19 नीति में आदिवासियों की स्थिति क्या है?

कोरोना वायरस महामारी के चलते केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट रूप से दिखता है कि आदिवासियों और वन निवासियों के अधिकारों और उनकी ज़रूरतों की अनदेखी की गई है.

बोधघाट परियोजना: छत्तीसगढ़ सरकार के सवालों पर लेखक का जवाब

18 जून 2020 को द वायर द्वारा 'बोधघाट पनबिजली परियोजना: जंगल उजाड़कर जंगल के कल्याण की बात' शीर्षक से प्रकाशित लेख पर छत्तीसगढ़ शासन की ओर से सवाल उठाए गए थे. उनका जवाब.

बोधघाट पनबिजली परियोजना: जंगल उजाड़कर जंगल के कल्याण की बात

बीते दिनों केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा दंतेवाड़ा के पास इंद्रावती नदी पर प्रस्तावित पनबिजली परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी दी है. हालांकि इसके लिए चिह्नित ज़मीन पर वन्य प्रदेश और आदिवासियों की रिहाइश होने के चलते इसके उद्देश्य पर सवाल उठ रहे हैं.

वन भूमि से आदिवासियों को बेदखल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को फटकारा

लगभग 11.8 लाख आदिवासियों और वनवासियों को वन भूमि से बेदखल करने के मामले की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नौ राज्यों ने आदिवासियों के दावे ख़ारिज करते समय तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया है.

क्यों झारखंड के आदिवासी किसानों को अपना खेत और घर खोने का डर सता रहा है?

ग्राउंड रिपोर्ट: सूखे की मार झेल रहे हैं झारखंड के चतरा ज़िले के किसानों पर वन विभाग की सख़्ती ने उनकी चुनौतियों को और बढ़ा दिया है. बीते एक साल में चतरा के हज़ारों किसानों की ज़मीन और खेत को वन विभाग ने वनभूमि बताकर उन्हें वहां से बेदख़ल कर दिया है.

आदिवासी और वन निवासियों को जंगलों से बेदख़ल करना उनका संहार करने जैसा है

वन अधिकार क़ानून 2006 के तहत ख़ारिज दावा-पत्रों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को जंगल से बेदख़ल करने का आदेश दिया था, जिस पर बाद में रोक लगा दी गई. पर दावा-पत्र खारिज क्यों हुए? केंद्र सरकार ने अदालत से कहा कि दावा-पत्र सही से नहीं भरे गए, जबकि हक़ीक़त यह है कि सरकारों की मिलीभगत से इन्हें ख़ारिज किया गया है ताकि जंगलों में खनिज संपदा के दोहन के लिए लीज़ देने में किसी तरह की परेशानी

क्या राष्ट्र की चिंताओं और विमर्श से आदिवासियों को अधिकारिक तौर पर बाहर कर दिया गया है?

आदिवासियों की जंगल से बेदख़ली का जो सिलसिला आज़ादी के बाद से कभी विकास तो कभी पर्यावरण के नाम पर चला आ रहा है, क्या वह किसी तार्किक परिणति की तरफ बढ़ रहा है? हालांकि जैसे-जैसे आदिवासी तबाह हो रहे हैं, परेडों, संग्रहालयों, कला मेलों और शहरी उत्सवों में उनकी शोभा में वृद्धि हो रही है.