चुनावी मौसम में आदिवासियों को ​‘धोखा​’ देने की कोशिश कर रहे हैं पीएम मोदी: मल्लिकार्जुन खरगे

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार चुनावी मौसम में पुरानी विफल योजना का नाम बदलकर आदिवासी समुदाय को ‘धोखा’ देने की कोशिश कर रही है. साथ ही उन्होंने पूछा कि मोदी सरकार के दौरान आदिवासियों के विकास योजना पर किए जाने वाले ख़र्च में भारी कमी क्यों आई है.

वन संरक्षण अधिनियम में संशोधन के ख़िलाफ़ पारिस्थितिकीविदों ने पर्यावरण मंत्री को पत्र लिखा

वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए 400 से अधिक पारिस्थिकीविदों ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे पत्र में कहा है कि यह सिर्फ़ संशोधन नहीं है, बल्कि एक पूरी तरह से नया अधिनियम है. इसके तहत कथित तौर पर बुनियादी ढांचे के वि​कास के लिए आवश्यक मंज़ूरियों से छूट दे दी गई है.

झारखंड के मुख्यमंत्री ने मोदी को लिखा पत्र, नए वन नियमों पर जताई आपत्ति

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि केंद्र के वन संरक्षण नियम 2022 स्थानीय ग्रामसभा की शक्तियों को कमज़ोर करते हैं और वन में रहने वाले समुदायों के अधिकारों को छीनते हैं. पत्र में रेखांकित किया गया है कि नियमों ने ग़ैर-वानिकी उद्देश्यों के लिए वन भूमि का उपयोग करने से पहले ग्रामसभा की पूर्व सहमति प्राप्त करने की अनिवार्य आवश्यकताओं को समाप्त कर दिया है.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने वन संरक्षण नियम 2022 पर मंत्रालय से रोक लगाने को कहा

पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव को लिखे पत्र में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने कहा है वन संरक्षण नियम 2022 ने वन भूमि के डायवर्ज़न से पहले वनवासियों की सहमति लेने की आवश्यकता को पूरी तरह से ख़त्म कर दिया है. पर्यावरण मंत्रालय ने बीते जून महीने में नए नियमों को अधिसूचित किया था. 

क्या वन संरक्षण नियम, 2022 देश के आदिवासियों और वनाधिकार क़ानूनों के लिए ख़तरा है

आदिवासियों ने कई दशकों तक अपने वन अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी, जिसके फलस्वरूप वन अधिकार क़ानून, 2006 आया था. अब सालों के उस संघर्ष और वनाधिकारों को केंद्र सरकार के नए वन संरक्षण नियम, 2022 एक झटके में ख़त्म कर देंगे.

हिमाचल प्रदेश में वन अधिकार क़ानून का हाल बेहाल क्यों है

दिसंबर, 2021 में वन अधिकार क़ानून को पारित हुए 15 साल पूरे हुए हैं, हालांकि अब भी वन निवासियों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. आज जहां पूरे भारत में 20 लाख से अधिक वन अधिकार दावे मंज़ूर किए गए, उनमें हिमाचल प्रदेश का योगदान केवल 169 है, जो प्रदेश को इस क़ानून के क्रियान्वयन में सबसे पिछड़ा राज्य बनाता है.

केंद्र सरकार की कोविड-19 नीति में आदिवासियों की स्थिति क्या है?

कोरोना वायरस महामारी के चलते केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट रूप से दिखता है कि आदिवासियों और वन निवासियों के अधिकारों और उनकी ज़रूरतों की अनदेखी की गई है.

छत्तीसगढ़: वन अधिकार कानून के तहत वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाने के आदेश को सरकार ने वापस लिया

छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वन विभाग को नोडल एजेंसी बनाए जाने पर आदिवासी कार्यकर्ताओं और विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई थी.

कोयला खदान के लिए ओडिशा में करीब 40,000 पेड़ काटे गए: रिपोर्ट

इस कोयला खदान परियोजना का संचालन नेयवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन इंडिया लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है. इस कंपनी ने 2018 में अडानी ग्रुप के साथ माइन डेवलपमेंट और ऑपरेटर कॉन्ट्रैक्ट साइन किया था.

वन भूमि से आदिवासियों को बेदखल करने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को फटकारा

लगभग 11.8 लाख आदिवासियों और वनवासियों को वन भूमि से बेदखल करने के मामले की सुनवाई करते समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नौ राज्यों ने आदिवासियों के दावे ख़ारिज करते समय तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया है.

आदिवासी और वन निवासियों को जंगलों से बेदख़ल करना उनका संहार करने जैसा है

वन अधिकार क़ानून 2006 के तहत ख़ारिज दावा-पत्रों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को जंगल से बेदख़ल करने का आदेश दिया था, जिस पर बाद में रोक लगा दी गई. पर दावा-पत्र खारिज क्यों हुए? केंद्र सरकार ने अदालत से कहा कि दावा-पत्र सही से नहीं भरे गए, जबकि हक़ीक़त यह है कि सरकारों की मिलीभगत से इन्हें ख़ारिज किया गया है ताकि जंगलों में खनिज संपदा के दोहन के लिए लीज़ देने में किसी तरह की परेशानी

क्या राष्ट्र की चिंताओं और विमर्श से आदिवासियों को अधिकारिक तौर पर बाहर कर दिया गया है?

आदिवासियों की जंगल से बेदख़ली का जो सिलसिला आज़ादी के बाद से कभी विकास तो कभी पर्यावरण के नाम पर चला आ रहा है, क्या वह किसी तार्किक परिणति की तरफ बढ़ रहा है? हालांकि जैसे-जैसे आदिवासी तबाह हो रहे हैं, परेडों, संग्रहालयों, कला मेलों और शहरी उत्सवों में उनकी शोभा में वृद्धि हो रही है.

‘जंगल और ज़मीन पर आदिवासियों का हक़ है, हमें यहां से कोई नहीं निकाल सकता’

वीडियो: जंगल से आदिवासियों को बेदख़ल करने के मुद्दे के ख़िलाफ़ नई दिल्ली में विभिन्न आदिवासी संगठनों ने प्रदर्शन किया. उनकी मांग है कि वन अधिकार कानून-2006 को सख़्ती से लागू किया जाए. प्रदर्शनकारियों से संतोषी की बातचीत.

आदिवासियों को जमीन से बेदखल करने के अपने आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि अधिनियम के तहत वास्तव में दावों का खारिज होना आदिवासियों को बेदखल करने का आधार नहीं है. अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके आधार पर दावे के खारिज होने के बाद किसी को बेदखल किया जाए.

देश में आदिवासियों की बस्तियां उजाड़ने की मानसिकता पर कब लगाम लगेगी?

16 राज्यों के करीब दस लाख आदिवासियों को उनका घर-गांव छोड़ने का शीर्ष अदालत का आदेश दिखाता है कि हमारी व्यवस्था एक बार फिर आदिवासियों के हितों की रक्षा करने और उन्हें यह भरोसा दिलाने में विफल रही है कि आज़ाद देश में उनके साथ अंग्रेजों के समय जैसा अन्याय नहीं होगा.