पुस्तक समीक्षा: डॉ. बीआर आंबेडकर की पत्नी डॉ. सविता आंबेडकर की मूल रूप से मराठी में लिखी गई आत्मकथा का अंग्रेज़ी अनुवाद 'बाबासाहेब माई लाइफ विद डॉ. आंबेडकर' के नाम से आया है. यह किताब बाबासाहेब को विशिष्ट विद्वेता या युगांतरकारी छवि से उतारकर एक सामान्य, गृहस्थ के तौर पर सामने रखती है.
1957 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में वाराणसी दक्षिणी निर्वाचन क्षेत्र से एंटी-इंकंबेंसी झेल रहे प्रदेश के मुख्यमंत्री डाॅ. संपूर्णानंद के सामने स्वतंत्रता सेनानी व वामपंथी नेता रुस्तम सैटिन खड़े हुए थे. हालांकि उनकी हिंदू-मुस्लिम एकता की पैरोकारी पर मुस्लिम सांप्रदायिकता की तोहमत लगाकर उन्हें हरा दिया गया.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हमारे लोकतंत्र की एक विडंबना यह रही है कि उसके आरंभ में तो राजनीतिक नेतृत्व में बुद्धि ज्ञान और संस्कृति-बोध था जो धीरे-धीरे छीजता चला गया है. हम आज की इस दुरवस्था में पहुंच हैं कि राजनीति से नीति का लोप ही हो गया है.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पौराणिक कल्पना में रसातल सबसे नीचे है पर कितना नीचे है इसका पता नहीं. देश की राजनीति में घटनाक्रम इतनी तेज़ी से बदलता रहता है कि लगता है कि वह नीचता के और तल पर नीचे उतर गया. रसातल अभी इतना दूर नहीं है.
वीडियो: जम्मू-कश्मीर के हालात, राम मंदिर, सांप्रदायिकता, मोदी सरकार के कामकाज समेत विभिन्न मुद्दों पर जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फ़ारूक़ अब्दुल्ला के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की बातचीत.
चार शंकराचार्यों ने राम मंदिर के आयोजन में शामिल होने से इनकार कर दिया है. उन्होंने ठीक ही कहा है कि यह धार्मिक आयोजन नहीं है, यह भाजपा का राजनीतिक आयोजन है. फिर यह सीधी-सी बात कांग्रेस या दूसरी पार्टियां क्यों नहीं कह सकतीं?
जन्मदिन विशेष: स्वतंत्रता सेनानियों की ‘गांधीवादी-समाजवादी’ जमात के सदस्य और दर्शन व इतिहास के लोकप्रिय व्याख्याता रहे जेबी कृपलानी को उनकी ‘चिर असहमति’ के लिए भी जाना जाता है. इसका नतीजा यह भी रहा कि वे बार-बार अपनी भूमिकाएं पुनर्निर्धारित करते रहे.
पुण्यतिथि विशेष: जनता को जागरूक करने वाली पत्रकारिता के लक्ष्य को लेकर 'महात्मा' हरगोविंद ने 1958 में सहकारिता का सफल प्रयोग करते हुए ‘जनमोर्चा’ का प्रकाशन शुरू किया. पांच लोगों के पंद्रह-पंद्रह रुपयों के योगदान से शुरू हुआ यह अख़बार आज भी व्यक्तिगत मालिकाने के बिना चल रहा है.
पुण्यतिथि विशेष: रामधारी सिंह 'दिनकर' की निगाह से लोहिया को देखना एक मित्र की निगाह से देखना तो है ही, राष्ट्रकवि की निगाह से देखना भी है, सत्ता में बैठी उस पार्टी के नेता की निगाह से देखना भी, जिसे वे उसके सबसे बड़े नेता समेत उखाड़ फेंकना चाहते थे.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: महात्मा गांधी भारतीय मानस में धंस गए हैं और उन्हें वहां से अपदस्थ करने का जो सुनियोजित साधन-संपन्न अभियान भले चल रहा हो, वह कभी सफल नहीं हो सकता.
जन्मदिन विशेष: रामधारी सिंह दिनकर उन कवियों के लिए सबक थे- आज भी हैं- जो कई बार देश ओर कविता के प्रति अपनी निष्ठाओं की क़ीमत पर ‘अपनी’ सरकार के चारण बन जाते हैं.
साक्षात्कार: बेंगलुरू के नेशनल लॉ स्कूल के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कार्तिक राम मनोहरण ने जाति, धर्म और जेंडर से जुड़े मसलों पर विस्तृत शोध किया है. सनातन धर्म पर छिड़े विवाद पर इसकी विभिन्न व्याख्याओं और उत्तर-दक्षिण भारत की राजनीतिक मान्यताओं के अंतर को लेकर उनसे बातचीत.
'सनातन धर्म' को लेकर हालिया विवाद में भाजपा के रवैये के विपरीत हिंदुत्व के सबसे प्रभावशाली विचारक विनायक दामोदर सावरकर ने शायद ही कभी 'सनातन धर्म' को पूरे हिंदू समुदाय से जोड़ा.
कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: आज जब कुछ शक्तियां गांधी को लांछित करने के सुनियोजित अभियान में लगी हैं, तब ‘ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रतिबंधित साहित्य में गांधी’ शीर्षक से प्रकाशित पुस्तक याद दिलाती है कि गांधी कैसे अपने समय के लोकमानस में पैठे हुए थे.
समानता के बिना स्वतंत्रता और स्वतंत्रता के बिना समानता पूरी नहीं हो सकती. बाबा साहब आंबेडकर का भी यही मानना था कि अगर राज्य समाज में समानता की स्थापना नहीं करेगा, तो देशवासियों की नागरिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रताएं महज धोखा सिद्ध होंगी.