क्या ग़ैर हिंदुओं के बारे में न जानकर हिंदू सांस्कृतिक रूप से समृद्ध हैं या दरिद्र

आज के भारत में ख़ासकर हिंदुओं के लिए ज़रूरी है कि वे ग़ैर हिंदुओं के धर्म, ग्रंथों, व्यक्तित्वों, उनके धार्मिक आचार-व्यवहार को जानें. मुसलमान, ईसाई, सिख या आदिवासी तो हिंदू धर्म के बारे में काफ़ी कुछ जानते हैं लेकिन हिंदू प्रायः इस मामले में सिफ़र होते हैं. बहुत से लोग मोहर्रम पर भी मुबारकबाद दे डालते हैं. ईस्टर और बड़ा दिन में क्या अंतर है? आदिवासी विश्वासों के बारे में तो हमें कुछ नहीं मालूम.

असम: अदालत में ईश्वर के नाम पर शपथ लेने के ख़िलाफ़ याचिका दायर

गौहाटी हाईकोर्ट के एक वकील ने इसी अदालत में याचिका दायर करते हुए सवाल उठाया है कि कोर्ट में किसी नास्तिक या ईश्वर में विश्वास न रखने वाले को भगवान के नाम पर कसम लेने के लिए क्यों मजबूर किया जाना चाहिए.

धर्म के द्वेष को मिटाना इस वक़्त का सबसे ज़रूरी काम है…

सदियों से एक दूसरे के पड़ोस में रहने के बावजूद हिंदू-मुसलमान एक दूसरे के धार्मिक सिद्धांतों से अपरिचित रहे हैं. प्रेमचंद ने अपने एक नाटक की भूमिका में लिखा भी है कि 'कितने खेद और लज्जा की बात है कि कई शताब्दियों से मुसलमानों के साथ रहने पर भी अभी तक हम लोग प्रायः उनके इतिहास से अनभिज्ञ हैं. हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य का एक कारण यह है कि हम हिंदुओं को मुस्लिम महापुरुषों के सच्चरित्रों का ज्ञान नहीं.'

सावन का महीना डीजे वाले बाबू के साथ

धर्म का एक अभिप्राय है अपने अंदर झांककर बेहतर इंसान बनने की कोशिश करना और दूसरा स्वरूप आस्था के बाज़ारीकरण और व्यवसायीकरण में दिखता है. आस्था के इसी स्वरूप की विकृति कांवड़िया उत्पात को समझने में मदद करती है.

मै नास्तिक क्यों हूं?

मेरे एक दोस्त ने मुझे प्रार्थना करने को कहा. जब मैंने उसे नास्तिक होने की बात बताई तो उसने कहा, ‘अपने अंतिम दिनों में तुम विश्वास करने लगोगे.’ मैंने कहा, ‘नहीं, प्यारे दोस्त, ऐसा नहीं होगा. मैं इसे अपने लिए अपमानजनक तथा भ्रष्ट होने की बात समझता हूं. स्वार्थी कारणों से मैं प्रार्थना नहीं करूंगा.’