सुलोचना ने 250 से अधिक हिंदी और लगभग 50 मराठी फिल्मों में अभिनय किया था. उनकी उम्र 94 साल थी. हिंदी सिनेमा में वह अधिकांशत: हीरो की मां की भूमिका निभाने के लिए जानी जाती थीं. साल 1999 में उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया गया था.
स्मृति शेष: कलाकार के लिए ज़रूरी है वो अपनी रूह पर किरदार का लिबास ओढ़ ले. किरदार दर किरदार रूह लिबास बदलती रहे, देह वही किरदार नज़र आए. सतीश कौशिक को ये बख़ूबी आता था.
अभिनेता और फिल्म निर्देशक सतीश कौशिक का जन्म 13 अप्रैल 1956 को हरियाणा के महेंद्रगढ़ में हुआ था. वह नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) और फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (एफटीआईआई) के पूर्व छात्र थे. उन्होंने अपना करिअर थियेटर से शुरू किया था. हास्य अभिनेता के तौर पर कौशिक ने काफी लोकप्रियता हासिल की थी.
हिंदी फिल्में सफलता के लिए आबादी के हर हिस्से और हर धर्म के दर्शकों पर निर्भर करती हैं. पर इस बार यहां हमारे सामने एक ऐसी फिल्म आई, जिसे सिर्फ (कट्टर) हिंदू दर्शकों की ही दरकार है.
स्मृति शेष: उर्दू साहित्य में लता मंगेशकर सांस्कृतिक विविधता और संदर्भों के बीच कई बार ऐसे नज़र आती हैं जैसे वो सिर्फ़ आवाज़ न हों बल्कि बौद्धिकता का स्तर भी हों.
स्मृति शेष: लता मंगेशकर की अविश्वसनीय सफलता के पीछे उनकी आवाज़ की नैसर्गिक निश्छलता और सरलता का बहुत बड़ा हाथ है. जिस प्रकार उनकी आवाज़ हर व्यक्ति, समुदाय और वर्ग के लोगों को समान रूप से प्रभावित करने में सफल होती है वह इस बात का सूचक है कि वो आवाज़ अपने दैहिक कलेवर से उठकर आत्मा में निहित मानवीयता को स्पंदित करने में सक्षम हो जाती है.
स्मृति शेष: लता मंगेशकर समय की रेत पर उकेरा गया वो गहरा निशान है जिसे गुज़रती घड़ियों की लहरें और गाढ़ा करती जाती हैं.
भारत में लता मंगेशकर को व्यापक रूप से सबसे महान और सबसे सम्मानित पार्श्व गायिकाओं में से एक माना जाता था. भारतीय संगीत उद्योग में उनके योगदान के लिए उन्हें ‘नाइटिंगेल ऑफ इंडिया’, ‘स्वर कोकिला’ और ‘क्वीन ऑफ मेलोडी’ जैसी उपाधियां भी दी गई थीं.
गए बरस इरफ़ान के जनाज़े में शामिल न होने का मलाल लिए जब साल भर बाद मैं उनकी क़ब्र पर पहुंचा तो ज़िंदगी-मौत, सच और झूठ के अलावा मोहब्बत पर भी बात निकली. और जो निकली तो फिर दूर तलक गई.
साल 2018 में ऋषि कपूर के कैंसर से पीड़ित होने के बारे में पता चला था. इसके बाद वे इलाज के लिए अमेरिका चले गए थे और क़रीब एक साल वहां रहने के बाद पिछले साल सितंबर में मुंबई लौटे थे.
साल 2018 में न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर होने के बाद इरफ़ान ख़ान के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो सका था. इरफ़ान की 95 वर्षीय मां का चार दिन पहले ही जयपुर में इंतकाल हो गया था. लॉकडाउन के कारण वह उनके अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके थे.
92 वर्ष के संगीतकार ख़य्याम ने सोमवार रात 9:30 बजे अंतिम सांस ली. फेफड़ों में संक्रमण के चलते उन्हें 10 दिन पहले मुंबई के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था.
क़ादिर ख़ान हिंदी सिनेमा में उस पीढ़ी के आख़िरी लेखक थे, जिन्हें आम लोगों की भाषा और साहित्य की अहमियत का एहसास था. उनकी लिखी फिल्मों को देखते हुए दर्शकों को यह पता भी नहीं चलता था कि इस सहज संवाद में उन्होंने ग़ालिब जैसे शायर की मदद ली और स्क्रीनप्ले में यथार्थ के साथ शायरी वाली कल्पना का भी ख़याल रखा.
वे एक साहित्यिक व्यक्ति थे- जो विश्व साहित्य की क्लासिक रचनाओं के साथ सबसे ज़्यादा ख़ुश रहते थे और उन पर पूरे उत्साह से चर्चा करते थे.
अभिनेता और पटकथा लेखक कादर ख़ान ने 250 से अधिक फिल्मों के संवाद लिखने के अलावा 300 से ज़्यादा फिल्मों में अभिनय किया है.