कबीर को समझने की नई दृष्टियां

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: बहुत ज़रूरी है कि कबीर को एक कवि के रूप में देखा-समझा जाए जो अपने विचार से कविता की स्वायत्तता को अतिक्रमित नहीं बल्कि पुष्ट करता है.

भारतीय मानस में पश्चिम के समावेशन का उपनिवेशन में बदलना आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी ख़त्म नहीं हुआ

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हम स्वतंत्रता के पहले सर्जनात्मक और बौद्धिक रूप से अधिक स्वतंत्र थे और स्वतंत्रता के बाद पश्चिम के अधिक ग़ुलाम होते गए हैं.

‘असद बज़्मे-तमाशा में, तग़ाफ़ुल पर्दादारी है’

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: ग़ालिब ने अपनी शायरी का आलम घर, आग, तमाशे, ग़मेहस्ती, नाउम्मीदी, तमन्ना, बियाबान और उरियानी से रचा-गढ़ा. दिगंबरता को याने उरियानी को उनके यहां जैसे बरता गया है वह पश्चिमी न्यूडिटी की अवधारणा से बिल्कुल अलग है.

विनोद कुमार शुक्‍ल ने साहित्‍य का जो घर बनाया है, वह रोशनी में दिप रहा है…

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: विनोद जी की आधुनिकता रोज़मर्रा के निम्‍न-मध्‍यवर्गीय जीवन में रसी-बसी रही है. उनके यहां जो स्‍थानीयता आकार पाती है वह मानवीय उपस्थिति, मानवीय विडंबना और मानवीय ऊष्‍मा की एक त्रयी को चरितार्थ, उत्‍कट और सघन करती है.

कवि और उपन्यासकार विनोद कुमार शुक्ल को मिलेगा प्रतिष्ठित पेन/नाबोकोव पुरस्कार

छत्तीसगढ़ के राजनंदगांव में 1937 में जन्मे विनोद कुमार शुक्ल को उनकी विशिष्ट लेखन शैली के लिए पहचाना जाता है. पुरस्कार समारोह 2 मार्च को न्यूयॉर्क में आयोजित किया जाएगा.

‘इस समय मुख्यधारा में अंधभक्ति की स्थिति है, जिसमें असहमति की जगह नहीं है’

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक वाजपेयी ने बताया है कि उन्हें दिल्ली में आयोजित 'अर्थ- द कल्चर फेस्ट' की कविता संध्या में आमंत्रित किया गया था, पर आयोजकों ने राजनीतिक या सरकार की आलोचना करने वाली कविताएं पढ़ने से मना किया. उन्होंने कहा, 'हम असहमत लोग हैं, हमें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आप हमें जगह देते हैं या नहीं.'

रघुवीर सहाय: कुछ न कुछ होगा, अगर मैं बोलूंगा…

जन्मदिन विशेष: रघुवीर सहाय की कविता राजनीतिक स्वर लिए हुए वहां जाती है, जहां वे स्वतंत्रता के स्वप्नों के रोज़ टूटते जाने का दंश दिखलाते हैं. पर लोकतंत्र में आस्था रखने वाला कवि यह मानता है कि सरकार जैसी भी हो, अकेला कारगर साधन भीड़ के हाथ में है.

हिंदी साहित्य के मशहूर आलोचक और लेखक मैनेजर पांडेय का निधन

मैनेजर पांडेय हिंदी में मार्क्सवादी आलोचना के प्रमुख हस्‍ताक्षरों में से एक रहे हैं. दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में प्रोफेसर रहने के अलावा उन्होंने बरेली कॉलेज और जोधपुर विश्वविद्यालय में भी प्राध्यापक रहे थे.

शेखर जोशी जीवन की असाधारण निरंतरता के लेखक थे

स्मृति शेष: नई कहानी भावों, मूड की कहानी थी. यहां वैयक्तिकता केंद्र में थी. पर शेखर जोशी इस वैयक्तिकता में भी एक ख़ास क़िस्म की सामाजिकता लेकर आते हैं, क्योंकि बक़ौल जोशी, लेखन उनके लिए ‘एक सामाजिक ज़िम्मेदारी से बंधा हुआ कर्म है.’

‘इकतारा’ हिंदी में बाल साहित्य बचाए रखने का एक सार्थक प्रयास है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: बाल साहित्य का परिसर कौतूहल रहस्य, जिज्ञासा, सहज सुषमा, आश्चर्य, अप्रत्याशित आदि मनोभावों से समृद्ध होता है. हम एक तरह की अबोधता के अंचल में दाखिल होते हैं जो हमें अपने कई अपरीक्षित, पर गहरे धंसे पूर्वाग्रहों से मुक्त करता है.

हबीब तनवीर, जिनका जीवन पूरी तरह से रंगजीवी रहा

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हबीब तनवीर का रंगसत्य लोग थे: लोग, जो साधारण और नामहीन थे, जो अभाव और विपन्नता में रहते थे लेकिन जिनमें अदम्य जिजीविषा, मटमैली पर सच्ची गरिमा और सतत संघर्षशीलता की दीप्ति थी.

श्रीकांत वर्मा: तुम जाओ अपने बहिश्त में, मैं जाता हूं अपने जहन्नुम में

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: श्रीकांत वर्मा ने कहा था कि ‘कैंसर से मरती हैं हस्तियां/हैजे से बस्तियां/वकील रक्तचाप से/कोई नहीं मरता/अपने पाप से.' क्या हम आज ऐसे ही नीति-शून्य लोकतंत्र में नहीं रह रहे हैं? कवि आपको किसी नरक या पाप से मुक्ति नहीं दिला सकता: वह उसकी शिनाख़्त करने का साहस भर दे सकता है.

गीतांजलि श्री की किताब ‘रेत समाधि’ पर हिंदू भावना आहत करने का आरोप, आगरा में आयोजन रद्द

बीते 29 जुलाई को उत्तर प्रदेश की हाथरस पुलिस द्वारा दर्ज की गई एक शिकायत के बाद आगरा में बुकर पुरस्कार विजेता लेखक गीतांजलि श्री के सम्मान में होने वाले कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया है. शिकायत में आरोप लगाया गया है कि उनकी किताब ‘रेत समाधि’ में भगवान शिव और पार्वती का ‘आपत्तिजनक चित्रण’ है, जो ‘हिंदुओं की भावनाओं को आहत’ करता है.

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक गीतांजलि श्री से विशेष बातचीत

वीडियो: हाल ही में गीतांजलि श्री के उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अंग्रेज़ी अनुवाद ‘टूम्ब ऑफ सैंड’ को अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. इसका अनुवाद इस क्षेत्र की सिद्धहस्त अनुवादक डेज़ी राॅकवाल ने किया है. द वायर के ‘हिंदी की बिंदी’ कार्यक्रम में गीतांजलि श्री से दामिनी यादव से ख़ास बातचीत.

हिंदी साहित्य को केंद्र में लाने के लिए सतत प्रयासों की ज़रूरत: बुकर विजेता गीतांजलि श्री

अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखक गीतांजलि श्री का ​कहना है कि मनुष्यों में एक से अधिक भाषा को जानने की क्षमता है. हमारी ऐसी शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए, जो लोगों को अपनी मातृ भाषा या अन्य भारतीय भाषाओं और अंग्रेज़ी को जानने के लिए प्रोत्साहित करे, इसमें समस्या क्या है, लेकिन इसके राजनीति में घिर जाने से यह एक तरह की अनसुलझी समस्या बन गया है.

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